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( ८९ ) 'ठोर साची ठकुराई है ॥ धामकी खबरदार रामकी रमन हार, राधा रस पंथनिके ग्रंथनिमें गाई है ॥ संतनकी मानी निरवानी नूरकी सिसाणी, याते सवुद्धि राणी राधिका कहाई है ॥ ७४ ॥
वह कुब्जा वह राधिका, दोऊ गति मति मान । वह अधिकारी कर्मकी, वह विवेककी खान ॥ ७५ ॥ कर्मचक्र पुद्गल दशा, भावकर्म मतिवक । । जो सुज्ञानको परिणमन, सो विवेक गुणचन ॥ ७६ ॥ जैसे नर खिलार चोपरिको, लाभ विचारि करे चितचाव ॥
धरे सवारि सारि बुधि बलसों, पासा जो कुछ परेसु दाव ॥ कवित्त-तैसे जगत जीव स्वारथको, करि उद्यम चिंतवे उपाव ॥ लिख्यो ललाट होइ सोई फल, कर्म चक्रको यही स्वभाव ॥ ७७ ॥ जैसे नर खिलार सतरंजको, समुझे सब संतरंजकी घात ॥ चले चाल निरखे दोऊ दल, महुरा गिणे विचारे मात ॥ तैसे साधु निपुण शिव पथमें, लक्षण लखे तने उतपात ॥ साधे गुण चिंतवे अभयपद, यह सुविवेक चक्रकी वात ॥ ७८ ॥ सतरंज खेले राधिका, कुब्जा खेले सारि । याके निशिदिन जीतवो, वाके निशिदिन हारि॥७९॥ जाके उर कुब्जा बसे, सोई अलख अजान । जाके हिरदे राधिका, सो बुध सम्यकवान ॥ ८०॥
३१ सा-जहां शुद्ध ज्ञानकी कला उद्योग दीसे तहां, शुद्धता प्रमाण शुद्ध चारित्रको अंश है ॥ ता कारण ज्ञानी सब जाने ज्ञेय वस्तु