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(९९) जीव अविनश्वरकी विनश्वर कहीजिये ॥ सद्गुरु कहे जीव है सदैव निजाधीन, एक अविनश्वर दरव दृष्टि दीजिये ॥ जीव पराधीन क्षणभंगुर अनेक रूप, नांहि जहां तहां पर्याय प्रमाण कीजिये ॥ ९ ॥
३१ सा--द्रव्य क्षेत्र काल भाव चारों भेद वस्तुहीमें, अपने चतुष्क वस्तु अस्तिरूप मानिये ।। परके चतुष्क वस्तु न अस्ति नियत अंग, ताको भेद द्रव्य परयाय मध्य जानिये ॥ दरव नो वस्तु क्षेत्र सत्ता भूमि काल चाल, स्वभाव सहन मूल सकति वखानिये ॥ याही भांति पर विकलप बुद्धि कलपना, व्यवहार दृष्टि अंश भेद परमानिये ॥ १०॥
है नांहि नाहिसु है, है है नांहीं नांहि । ये सर्वंगी नय धनी, सब माने सव मांहि ॥ ११ ॥
३१ सा- ज्ञानको कारण ज्ञेय आतमा त्रिलोक मय, ज्ञेयसों अनेक ज्ञान मेल ज्ञेय छांही है ॥ जोलों ज्ञेय तोलों ज्ञान सर्व द्रव्यमें विज्ञान, ज्ञेय क्षेत्र मान ज्ञान जीव वस्तु नांही है ॥ देह नसे जीव नसे देह उपजत लसे, आतमा अचेतन है सत्ता अंश मांही है ॥ जीव क्षण भंगुर .. अज्ञेयक स्वरूपी ज्ञान, ऐसी ऐसी एकांत अवस्था मुढ पाही है ॥ १२ ॥
कोड मूढ कहे जैसे प्रथम सावारि भीति, पीछे ताके उपरि सुचित्र आयो लेखिये ॥ तैसे मूल कारण प्रगट घट पट जैसो, तैसो तहां ज्ञानरूप कारिज विसेखिये ।। ज्ञानी कहे जैसी वस्तु तैसाही स्वभाव ताको, ताते ज्ञान ज्ञेय भिन्न भिन्न पद पेखिये ॥ कारण कारिज दोउ एकहीमें निश्चय पै, तेरो मत साचो व्यवहार दृष्टि देखिये ।। १३ ॥ - कोउ मिथ्यामति लोकालोक व्यापि ज्ञान मानि, समझे त्रिलोक पिंड