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(११०) . कोउ ज्ञानवान कहे ज्ञानतो हमारो रूप, ज्ञेय पट् द्रव्य सो हमारो? रूप नाहीं है ॥ एक नै प्रमाण ऐसे दूजी अब कहूं जैसे, सरस्वती अक्षर अरथ एक ठांही है। तैसे ज्ञाता मेरो नाम ज्ञान चेतना विराम, ज्ञेयरूप शकति अनंत मुझ मांहीं है । ता कारण वचनके भेद भेद कहे कोउ, ज्ञाता ज्ञान ज्ञेयको विलास सत्ता मांही है ॥ ४३ ॥
चौ०-स्वपर प्रकाशक शकति हमारी । ताते वचन भेद भ्रम भारी ॥ ज्ञेय दशां द्विविधा परकाशी । निजरूपा पररूपा भासी ॥ ४४ ॥ निजस्वरूप आतम शकति, पर रूप पर बस्त। जिन्ह लखिलीनो पेच यह, तिन्ह लखि लियो समस्त ४५
करम अवस्थामें अशुद्ध सों विलकियत, करम कलंकसों रहित शुद्ध . अंग है ॥ उभै नय प्रमाण समकाल शुद्धा शुद्धरूप, ऐसो परयाय धारी जीव नाना रंग है । एकही सममें त्रिधा रूप.पै तथापि याकी, अखंडित . चेतना शकति सरवंग है। यह स्यादवाद याको भेद स्यादवादी जाने, मूरख न माने जाको हियोग भंग है ॥ ४६॥ ... ...
निहचे दरव दृष्टि दीजे तव एक रूप, गुण परयाय भेद भावसों बहुत है ॥ असंख्य प्रदेश संयुगत सत्ता परमाण, ज्ञानकी प्रभासों.. लोकाऽलोकमान जुत है ॥ परले तरंगनीके अंग छिन भंगुर है, चेतना. शकति सों अखंडित अंचुत है । सो है जीव जगत विनायक जगतं सार, जाकी मौज महिमा अपार अदभुत है ॥ ४७ ॥ . .. .
विभाव शंकति परणतिसों विकल दासे, शुद्ध चेतना विचार ते सहज संत है ।। करम संयोगों कहावे गति जोनि वासि, निहंचे स्वरूप सदा .