Book Title: Samaysar Natak
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(१०६) गुरु उपदेश कहां करे, दुराराध्य संसार । वसे सदा जाके उदर, जीव पंच परकार ॥१५॥ दुंधा प्रभु चूंघा चतुर, सूंघा रुंचक शुद्ध । ऊंघा दुर्बुद्धी विकल, धूंगा घोर अबुद्ध ॥ १६ ॥ जाके परम दशा विषे, कर्म कलंक न होय । डूंघा अगम अगाधपद, वचन अगोचर सोय ॥ १७ ॥ जो उदास व्है जगतसों, गहे परम रस प्रेम । सो चूंघा गुरुके वचन, चूंघे बालक जेम ॥ १८॥ जो सुवचन रुचिसों सुने, हिये दुष्टता नांहि । .. परमारथ समुझे नहीं, सो सूंघा जगमांहि ॥ १९॥ जाको विकथा हित लगे, आगम अंग अनिष्ट । सो विषयी दुखसे विकल, दुष्ट रुष्ट पापिष्ट ॥२०॥ जाके वचन श्रवण नहीं, नहिं मन सुरति विराम । जड़तासो जड़वत भयो, चूंघाताको नाम ॥ २१ ॥ . चौपाई-डूंघा सिद्ध कहे सब कोऊ । सूंघा ऊंधा मूरख दोऊ ।। चूंधा घोर विकल संसारी । चूंघा जीव मोक्ष अधिकारी ॥ २२ ॥ चूंधा साधक मोक्षको, करे दोष दुख नाश । ... लहे पोष संतोपसों, वरनों लक्षण तास ॥ २३ ॥ : कृपा प्रशम संवेग दम, अस्ति भाव वैराग। ये लक्षण जाके हिये, सप्त व्यसनको त्याग ॥ २४ ॥ चौपाई-जूवा अमिष मदिरा ढारी आखेटक चोरी परनारी ।। येई सप्त व्यसन दुखदाई । दुरित मूल दुर्गतिके भाई ॥ २५ ॥

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