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(९८) . अथ श्रीसमयसार नाटकको एकादशमो..
स्यादाद द्वार प्रारंभ ॥ ११ ॥ चौपाई-अद्भुत ग्रंथ अध्यातम वाणी । समझे कोई विरला प्राणी ॥ या स्यादवाद अधिकारा । ताको जो कीजे विसतारा ॥ १॥ . . तोजु ग्रंथ अति शोभा पावे । वह मंदिर यह कलश कहावे ॥ तब चित अमृत वचन गट खोले । अमृतचंद्र आचारज बोले ॥ २ ॥
कुंदकुंद नाटक वि, कह्यो द्रव्य अधिकार। ... " स्याद्वाद नै साधि मैं, कहूं अवस्था द्वार ।।३॥ .. - कंहूं मुक्ति पदकी कथा, कहूं मुक्तिको पंथ । ..
जैसे घृतकारिज जहां, तहां कारण दधि मंथ ॥४॥ चौपाई-अमृतचंद्र बोले मृदुवाणी । स्यादवादकी सुनो कहानी । कोऊ कहे जीव जग माही । कोऊ कहे जीव है नाहीं ॥ ५ ॥ .
एकरूप कोऊ कहे, कोऊ अगणित अंग। . क्षणभंगुर कोऊ कहे, कोऊ कहे अभंग ॥६॥
नय अनंत इहविधी है, मिले न काहूं कोय।। . . .. जो सब नय सांधन करे, स्याद्वाद है सोय ॥ ७॥
स्याद्वाद अधिकार अव; कहूं जैनका मूल। . . .
जाके जाने जगत जन, लहे जगत जल कूल ॥८॥ ३१ सा--शिष्य कहे स्वामी जीव स्वाधीनकी पराधीन, जीव एक है कीधो अनेक मानि लीजिये ॥ जीव है सदीवकी नाही है जगत माहि,