Book Title: Samaysar Natak
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(१०१)
' डगमें ॥ समकिती जीव शुद्ध अनुभौ अभ्यासे ताते, परको ममत्व त्यागि
करे पगपगमें । अपने स्वभावमें मगन रहे आठो जाम, धारावाही पथिक कहावे मोक्ष मगमें ॥ १८ ॥ ___ कोऊ सठ कहे जेतो ज्ञेयरूप परमाण, तेतो ज्ञान ताते कछु अधिक न
और है ॥ तिहुं काल परक्षेत्र व्यापि परणम्यो माने, आपा न पिछाने ऐसी मिथ्याग दोर है ॥ जैनमती कहे जीव सत्ता परमाण ज्ञान, ज्ञेयसों अव्यापक जगत सिरमोर है। ज्ञानके प्रभामें प्रतिबिंबित अनेक ज्ञेय, यद्यपि तथापि थिति न्यारी न्यारी ठोर है ॥ १९ ॥ ___ कोउ शुन्यवादी कहे ज्ञेयके विनाश होत, ज्ञानको विनाश होय कहो
कैसे जीजिये ॥ ताते जीवितव्य ताकी थिरता निमित्त सब, ज्ञेयाकार परि• ‘णामनिको नाश कीजिये ॥ सत्यवादी कहे भैया हूने नाहि खेद खिन्न,
ज्ञेयसो विरचि ज्ञान भिन्न मानि लीजिये । ज्ञानकी शकति साधि अनुभौं दशा अराधि, करमकों त्यागिके परम रस पीजिये ॥ २० ॥ ___ कोऊ क्रूर कहे काया जीव दोउ एक पिंड, जव देह नसेगी तवही जीव मरेगो ॥ छाया कोसो छल कीधो माया कोसो परपंच, काया समाइ फिरि कायाको न धरेगो।। सुधी कहे देहसों अव्यापक सदैव जीव, समै पाय - परको ममत्व परिहरेगो । अपने स्वभाव आइ धारणा धरामें धाइ, आपमें मगन हैके आप शुद्ध करेगो ॥ २२ ॥
ज्यों तन कंचुकि त्यागसे, बिनसे नांहि भुजंग। . त्यों शरीरके नाशते, अलख अखंडित अंग ॥ २२ ॥
३१ सा-कोउ दुरखुद्धि कहे पहिले न हूतो जीव, देह उपजत उपज्यो है जव आइके || जोलों देह तोलों देह धारी फिर देह नसे, रहेगो

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