________________
(८४) यथा सूत संग्रह विना, मुक्त माल नहिं होय । तथा स्याद्वादी विना, मोक्ष न साधे कोय ॥ ४० ॥ पद स्वभाव पूरव उदै, निश्चै उद्यम काल । पक्षपात मिथ्यात पथ, सर्वगी. शिव चाल ॥४१॥
३१ सा--एक जीव वस्तुके अनेक गुण रूप नाम, निन योग शुद्ध पर योगसों अशुद्ध है ॥ वेदपाठी ब्रह्म कहे, मीमांसक कर्म कहे, शिवमति शिव कहे बौध कहे वुद्ध है । जैनी कहे जिन न्यायवादी करतार कहे छहों दरसनमें वचनको विरुद्ध है। वस्तुको स्वरूप पहिचाने सोई परवीण, वचनके भेद भेद माने सोई शुद्ध है ।। ४२ ॥ ___ वेदपाठी ब्रह्म माने निश्चय स्वरूप गहे, मीमांसक कर्म माने उदैमें रहत है । बौद्धमती बुद्ध माने सूक्षम स्वभाव साधे, शिवमति शिवरूप कालको कहत है । न्याय ग्रंथके पढैय्या थापे करतार रूप, उद्यम उदीरि उर आनंद लहत है ॥ पांचो दरसनि तेतो पोपे एक एक अंग, जैनी जिनपंथि सरवांग नै गहत है ॥ ४३ ॥ - निहचै अभेद अंग · उदै गुणकी तरंग, उद्यमकी रीति लिये उद्धता शकति है... परयायं रूपको प्रमाण सूक्षम स्वभाव, कालकीसी ढाल परिणाम चक्र गति है ॥ याही भांति आतम दरवके अनेक अंग, एक माने एककों न माने सो कुमति है ॥ एक डारि एकमें अनेक खोजे सो सुवुद्धि, खोजि जीवे वादि मरे सांची कहवति है ।। ४४ ॥ . . . - एकमें अनेक है अनेकहीमें एक है सो, एक न अनेक कछु कह्यो न. परत है ॥ करता अकरता है भोगता अभोगता है, उपजे न उपजत मरे