________________
(२३) तृतीय कर्ताकर्मक्रियाद्वार प्रारंभः ॥ ३॥
२
यह अजीव अधिकारको, प्रगट वखान्यो मर्म। अब सुनु जीव अजीवके, कर्ता क्रिया कर्म ॥१॥ . अब कर्मकर्तृत्वमें जीवकी कल्पना है सो भेदज्ञानसे छूटे है . . .. तातें भेदज्ञानका महात्म कहै है ॥ ३१ सा. . . .
प्रथम अज्ञानी जीव कहे मैं सदीव एक, दूसरो न और मैंही करता करमको ॥ अंतर विवेक आयो आपा पर भेद पायो, भयो बोध गयो.मिटि भारत भरमको ।। भासे छहो दरवके गुण परजाय सब, नासे दुख लख्यो मुख पूरण परमको ॥ करमको करतार मान्यो पुदगल पिंड, आप करतार भयो.आतम धरमको ॥२॥ . . . ..जाही समै जीव देह बुद्धिको विकार तने, वेदत स्वरूप - निजं भेदत भरमको ॥ महा परचंड मति. मंडण अखंड रस,. अनुभौ अभ्यास परका-- सत परमको | ताही समे घटमें न रहे विपरीत भाव, जैसे तम. नासे भानु प्रगटि धरमको ॥ ऐसी दशा आवे जब साधक कहावे तब, करता व्है कैसे करे पुद्गल करमको ॥ ३ ॥ . - अब प्रथम आत्माकू कर्मको कर्त्ता माने पीछे अकर्ता माने है। .
... . सवैया ३१ सा. .... जगमें अनादिको अज्ञानी कहे मेरो कर्म, करता मैं याको किरियाको प्रतिपाखी है। अंतर सुमति भासी जोगसू भयो उदासी, · ममता मिटाय
.