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(४६) जीवके जाग्रत दशाका स्वरूप कहे हैं ॥ सवैया ३१ सा. चित्रशाला न्यारी परजक न्यारी सेन न्यारि, चादरभी न्यारी यहां झूठी मेरी थपना ॥ अतीत अवस्था सनै निद्रा बोहि कोड पै न विद्यमान पलक न यामें अब छपना ॥ श्वास औ सुपन दोउ निद्राकी अलंग बुझे, सूझे सव अंक लाख आतम दरपना.॥ त्यागि भयो चेतन अचेतनता भाव छोड़ि, भाते दृष्टि खोलिके संभाले रूप अपना ॥ १४ ॥ ..
दोहा. . . . इह विधि जे जागे पुरुष, ते शिवरूप सदीव । जे सोवहिं संसारमें, ते जगवासी जीव ॥ १५॥ . जो पद भौपद भय हरे, सो पद सेउ अनूप।। जिहि पद परसत और पद, लगे आपदा रूप ॥ १६ ॥ संसारपदका भय तथा झूठपणा दिखावे है ॥ सवैया ३१ सा. .
जव जीव सोवे तव समझे सुपन सत्य, वहि झूठ लागे जब जागे नींद -खोयके | जागे कहे यह मेरो तन यह मेरी सोज, ताहूं झूठ मानत मरण थिति जोइके || जाने निज मरम मरण तव सूझे झूठ, बूझे जब और अवतार रूप होयके ॥ वाही अवतारकी दशामें फिर यहै पेच, याही भांति झूठो जग देखे हम ढोयके ॥ १७॥
ज्ञाता कैसी क्रिया करे है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा. पंडित विवेक लहि एकताकी टेक गहि, इंदुज अवस्थाकी अनेकता हरतु है ॥ मंति श्रुति अवधि इत्यादि विकलपं 'मेटि, नीरविकलप ज्ञान मनमें धरतु है ॥ इद्रिय जनित सुख दुःखसों विमुख व्हैके, परमके रूप है