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ध्यान धरे करि इंद्रिय निग्रह, विग्रहसों न गिने जिन नत्ता ।। त्यागि विभूति विभूति मढे तन, जोग गहे भवभोग विरत्ता ।। मौन रहे लहि मंद कपाय, सहे वध बंधन होइ न तत्ता ।। ए करतूति करे सठ पैं, समुझे न अनातम आतम सत्ता ॥ ९॥ चौ०-जो विन ज्ञान क्रिया अवगाहे । जो विन क्रिया मोक्षपद चाहे ॥ जो विन मोक्ष कहे मैं सुखिया । सो अजान मूढनिमें मुखिया ॥ १० ॥ गुरु उपदेश करे पण मूढ नहीं माने तिस ऊपर चित्रका
दृष्टांत कहे है ॥ सवैया ३१ सा. जगवासी जीवनिसों गुरु उपदेश करे, तुम्हें यहां सोवत अनंत काल वीते है ।। जागो व्है सचेत चित्त समता समेत सुनो, केवल वचन नामें - ‘अक्ष रस जीते है | आवो मेरे निकट बताऊं मैं तिहारे गुण, परम सुरस
भरे करमसों रीते है। ऐसे वैन कहे गुरु तोउ ते न धरे उर, मित्र कैसे पुत्र किधो चित्र कैसे चीते है ॥ ११ ॥
दोहा. • ऐतपर पुनः सद्गुरु, बोले मचन रसाल । . शैन दशा जाग्रत दशा, कहे दुहूंकी चाल ॥ १२॥
जीवके शयन दशाका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा. काया चित्र शालामें करम परजंक भारि, मायाकी सवारी सेज चादर कलपना ॥ शैन करे चेतन अचेतता नींद लिये, मोहकी मरोर यहै लोचनको ढपना ॥ उदै वल जोर यहै श्वासको शवद धोर, विष सुख कारीजाकी दोर यहै सपना ॥ ऐसे मूढ दशामें मगन रहे तिहुं काल, धावे भ्रम जालमें न पावे रूपं अपना ॥ १३ ॥