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".चारं पुरुषार्थ ऊपर ज्ञानीका अर अज्ञानीका विचार कहे है।
सवैया ३१ सा. कुलको विचार ताहि मूरख धरम कहे, पंडित धरम कहे वस्तुके स्वभावकों ॥ खेहको खनानो ताहि अज्ञानी अरथ कहे, ज्ञानी कहे अरथ दरव दरसावकों ॥ दंपत्तिको भोग ताहि दुरबुद्धि काम कहे सुधी काम कहे अभिलाप चित्त चावकों ॥ इंद्रलोक थानको अजान लोक कहे मोक्ष, सुधि मोक्ष कहे एक बंधके अभावकों ॥ १३॥ . आत्मरूप साधनके चार पुरुषार्थ कहे है ॥ सवैया ३१ सा.
धरमको साधन जो वस्तुको स्वभाव साधे अरथको साधन विलक्ष द्रव्य षटमें ॥ यहै काम साधन जो संग्रहे निराशपद, सहज स्वरूप मोक्ष शुद्धता प्रगटमें ॥ अंतर सुदृष्टिसों निरंतर विलोके बुध, धरम अरथ काम मोक्ष निज घटमें ॥ साधन आराधनकी सोज रहे जाके संग, भूल्यो फिरे मूरख मिथ्यातकी अलटमें ॥ १४ ॥
वस्तुका सत्य स्वरूप अर मूढका विचार ॥ सवैया ३१ सा. तिहूं लोक मांहि तिहूं काल सव जीवनिको, पूरव करम उदै आय रस देत है । कोऊ दीरघायु धरे कोऊ अल्प आयु मरे, कोऊ दुखी कोऊ सुखी कोऊ समचेत है।या ही मैं जिवाऊ याहि मारूं याहि सुखी करूं, याहि दुखी
करूं ऐसे मूढ मान लेत है। याहि अहं बुद्धिसों न विनसे भरम भूल, यहै ।, मिथ्या धरम करम बंध हेत है ॥ १५ ॥. . .
. जहालो. जगतके निवासी जीव जगतमें, सवे असहाय कोळ काहुको न' धनी है ।। जैसे जैसे पूरव करम सत्ता वांधि जिन्हे, तैसे तैसे उदैमें अवस्था
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