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(५२) है जिनके दृढ़ आतम ज्ञान, क्रिया करिके फलको न चहेंगे ॥ . ते सु विचक्षण ज्ञायक है, तिनको करता हमतो न कहेंगे ॥४४॥
ज्ञानीका आचार विचार कहे है ॥ सवैया ३. सा. . जिन्हके सुदृष्टीमें अनिष्ट इष्ट दोउ सम, जिन्हको आचार सुविचार शुभ ध्यान है ॥ स्वारथको त्यागि जे लगे है परमारथको, जिन्हके वनिनमें न नफा है न ज्यान है ॥ जिन्हके समझमें शरीर ऐसो मानीयत, धानकीसो छीलक कृपाणकोमो म्यान है ॥ पारखी पदारथके साखी भ्रम भारयके, तेई साधु तिनहीको यथारथ ज्ञान है ।। ४५ ॥ ____ ज्ञानीका निर्भयपणा वर्णन करे है ॥ सवैया ३१ साः .
जमकोसो भ्राता दुखदाता है असाता कर्म, ताके उदै मूरख न साहस गहत है ।। सुरगनिवासी भूमिवासी औ पतालवासी, सवहीको तन मन कंपत रहत है। ऊरको उजारो न्यारो देखिये सपत भैसे, डोलत निशंक भयो आनंद लहत है ॥ सहन सुवीर जाको सास्वत शरीर ऐसो, ज्ञानी जीव आरज आचारज कहत है ।। ४६ ॥.
.. दोहा. . इहभव भय परलोक भय, मरण वेदना जात।। अनरक्षा अनगुप्त भंय, अकस्मात भय सात ॥४७॥ ॥अब सात भयके जुदेजुदे स्वरूप कहे है । सवैया ३१ सा--
दशधा परिग्रह वियोग चिंता इह भव, दुर्गति गमन भय परलोक मानिये ॥ प्राणनिको हरण मरण भै कहावै सोइ, रोगादिक कष्ट यह वेदना वखानिये ।। रक्षक हमारो कोड नाही. अनरक्षा भय, चोर भय