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(२७) ज्ञान चलिये ॥ तैसे घट पिंडमें विभावता ज्ञानरूप जीव भेद ज्ञानरूप ज्ञानसों. परखिये ॥ भरमसों करमको करता है चिदानंद, दरव विचार करतार नाम नलिये ॥ १६ ॥
दोहा. ज्ञान भाव ज्ञानी करे, अज्ञानी अज्ञान । द्रव्यकर्म पुद्गल करे, यह निश्चै परमाण ॥ १७ ॥ ज्ञान स्वरूपी आतमा, करे ज्ञान नहि और । द्रव्यकर्म चेतन करे, यह व्यवहारी दोर ॥ १८॥ .
॥ अव शिष्य प्रश्न-कर्तृत्व कथन ॥ सवैया, २३ सा. पुद्गल कर्म करे नहिं जीव, कही तुम मैं समझी नहि तैसी ॥ कौन करे "यह रूप कहो, अब को करता करनी कहु कैसी ॥ आपही आप मिले विठुरे जड़, क्यों करि मो मन संशय ऐसी ॥ शिष्य संदेह निवारण कारण, बात कहे गुरु है कछु जैसी ॥ १९ ॥
दोहा. पुद्गल परिणामी द्रव्य, सदापरणवे सोय। याते पुद्गल कर्मका, पुद्गल कर्ता होय ॥२०॥ . .
अव पुनः शिष्य प्रश्नः- ॥ छंद अडिल्ल. . . ज्ञानवंतको भोग निर्जरा हेतु है . । अज्ञानीको भोग बंध फल देतु. है ॥ यह अचरजकी वात हिये नहि आवही । पूछे कोऊ शिष्य गुरू समंझावही ॥ २१॥ . .