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(३६) अथ पंचम आश्रवद्वार प्रारंभ ॥५
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दोहा. .
पाप पुन्यकी एकता, वरनी अगम अनूप । .. .. अब आश्रव अधिकार कछु, कहूं अध्यातम रूप ॥१॥ आश्रव सुभटको नाश करनहार ज्ञानं सुभट है .
तिस ज्ञानकू नमस्कार करे है ॥ ३१ सा. जे जे जगवासी जीव थावर जंगम रूप, ते ते. निज वस करि राखे वल तोरिके ।। महा अभिमान ऐसो आश्रव अगाध जोधा, रोपि रण थंभ गड़ो भयो मूछ मोरिके | आयो तिहि थानक अचानक परम धाम, ज्ञान नाम सुभठ सवायो वल फेरिके आश्रव पछान्यो रणथंव तोड़ि डायो ताहि, निरखी वनारसी नमत कर जोरिके ॥ २॥ .
द्रव्यआश्रवका भावआश्रवका अर सम्यकज्ञानका. लक्षण . . कहै है ॥ सवैया २३ सा. • दर्वित आश्रव सो कहिये जहिं, पुद्गल जीव प्रदेश गरासै ॥:भावित आश्रव सो कहिये जहिं, राग विमोह विरोध विकासे ॥ सम्यक् पद्धति सो कहिये हिं, दर्वित भावितं आश्रव नासे || ज्ञानकला प्रगटे तिहि स्थानक, अंतर वाहिर और न भासे ॥ ३ ॥