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दोही. यह निचोर या ग्रंथको, यहे परम रस पोख ।
तजे शुद्धनय बंध है, गहे शुद्धनय मोखं ॥ १३ ॥ अव जीवके बाह्य विलास अंतर विलास बतावे है । सवैया ३१ सा.
करमके चक्रमें फिरत जगवासी जीव, व्है रह्यो वहिरमुख व्यापत विषमता ॥अंतर सुमति आई विमल बड़ाई पाई, पुद्गलसों प्रीति टूठी छूटी माया ममता ॥ शुद्धनै निवास कीनो अनुभौ अभ्यास लीनो, भ्रमभाव छांडि दीनो भीनोचित्त समता ॥ अनादि अनंत अविकलप अचल ऐसो, पद अबलंवि अवलोके राम रमता ॥ १४ ॥ अब आत्माका शुद्धपणा सम्यकदर्शन है तिसकी प्रशंसा
___करे है । सवैया ३१ सा.. ____ जाके परकाशमें न दीसे राग द्वेष मोह, आश्रव मिटत नहि बंधको तरस है । तिहुं काल नामें प्रतिबिंबित अनंतरूप, आपहुं अनंत सत्ता ऽनंततें सरस है ।। भावश्रुत ज्ञान परमाण जो विचारि वस्तु, अनुभौ करे न जहां वाणीको परस है ॥ अतुल अखंड अविचल आविनासी धाम, चिदानंद नाम ऐसो सम्यक् दरस है ॥ १५ ॥ .
॥ इति पंचम आश्रव द्वार समाप्त भयो ॥५॥ .