________________
(२५)
कर्ता कर्म और क्रियाको विचार कहे है ॥ सवैया ३१. सा. ___ एक परिणामके न करता दरव दोय, दोय परिणाम एक द्रव्य न धरत: है॥ एक करतूति दोय द्रव्य कबहूं न करे, दोय करतूति एक द्रव्य न करत है । जीव पुदगल एक खेत अवगाहि दोउ, अपने अपने रूप कोऊ न टरत है ॥ जड़ परिणामनिको करता है पुदगल, चिदानंद चेतन स्वभाव आचरत है ॥ १०॥
मिथ्यात्व और सम्यक्त्व स्वरूप वर्णन करे है सवैया. ३१. सा. ___ महा धीट दुःखको वसीठ पर द्रव्यरूप, अंध कूप काहूरै निवायो नहिं गयो है। ऐसो मिथ्याभावलग्यो जीवके अनादिहीको, याहि अहंबुद्धि लिये
नानाभांति भयो है ॥ काहू समै काहूको मिथ्यात अंधकार भेदि, ममता 8... उछेदि शुद्ध भाव परिणयों है ॥ तिनही विवेक धारि बंधको विलास डारि,
आतम सकतिसों जगत जीति लियो है ॥ ११ ॥
अव यथा कर्म तथा कर्ता एकरूप कथन ॥ सवैया ३१ सा.
शुद्धभाव चेतन अशुद्धभाव चेतन, दुहूंको करतार जीव और नहिं मानिये ॥ कर्मपिंडको विलास वर्ण रस. गंध फास, करता दुहूंको पुदगल परवानिये ॥ ताते वरणादि गुण ज्ञानावरणादि कर्म, नाना परकार पुदगलरूप जानिये ॥ समल' विमल परिणाम जे जे चेतनके, ते ते सब अलख पुरुष यों बख़ानिये ॥ १२ ॥ .. .. .. . ... .....
अव ये वातके रहस्यकू मिथ्यादृष्टी जानेही नहीं है ते ..... . ऊपर दृष्टांत कहे है ॥ सवैया ३१.सा.. . .
जैसे गजराज नान घासके गरास करि, भक्षण स्वभाव नहीं भिन्न