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(२८) शिष्यका संदेह निवारणेके लिये गुरु यथार्थ
.. उत्तर कहे है। सवैया ३१ सा. . दयों दान पूजादिक विषय कपायादिक, दुहु कर्म भोग पैं दुहको एक खेत है। ज्ञानी मूढ करम दीसे एकसे पै परिणाम, परिणाम भेद न्यारो न्यारो फल देत है । ज्ञानवंत करनी करें पै उदासीन रूप, ममता न धरे ताते निर्जराको हेतु है | वह करतूति मूढ करे पै मगनरूप, अंध भयों ममतासों बंध ‘फल लेत है ॥. २२ ॥
अव कुंभारको दृष्टांत देय मूढको कर्तापणा सिद्ध करे है । छप्पै. ___ ज्यों माटी मांहि कलश, होनेकी शक्ति रहे ध्रुव । दंड चक्र चीवर कुलाल, वाहिन निमित्त हुव । त्यों पुदगल परमाणु, पुंन वरगणा भेष धरि । ज्ञानावरणादिक स्वरूप, विचरंत विविध परि । वाहिन निमित्त बहि-तरातमा, गहि संशै अज्ञानमति । जगमांहि अहंकृत भावसों, कर्मरूप है. परिणमति ॥ २३ ॥ . . अब निश्चयसे जीवकू अकर्ता मानि आत्मानुभवमें रहे है
ताका महात्म कहे है । सवैया २३ सा. जे न करे नय पक्ष विवाद, धरे न विषाद अलीक न भाखे ॥ जे "उदवेग तले घट अंतर, सीतल भाव निरंतर राखे ॥ जे न गुणी गुण भेद विचारत, आकुलता मनकी सव नाखे । ते जगमें धरि आतम ध्यान, अखंडित ज्ञान सुधारस चाखे ॥ २४॥ . .. अवं निश्चयसे अकंतपणा और व्यवहारसे कर्तापणा . . . . । स्थापन करि वतावे है ॥ सवैया ३१ सा. . . . . . . .. • व्यवहार दृष्टिसों विलोकत वंध्योसों दीसे, निहचै निहारत न वांध्यो