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परजाय बुद्धि नाखी है ॥ निरभै स्वभाव लीनो अनुभौको रस भीनों, कीनो व्यवहार दृष्टि निहचेमें राखी है | भरमकी डोरीतोरी धरमको भयो धोरी, परमसों प्रीत जोरी करमको साखी है ॥ ४ ॥
ज्ञानको सामर्थ्य कहे है ॥ ३१ सा.
जैसे जे दरव ताके तैसे गुण पराजय, ताहीसों मिलत पै मिले न काहुं आनसों ॥ जीव वस्तु चेतन करम जड़ जाति भेद, ऐसे अमिलाप ज्यों नितंब जुरे कानसों | ऐसो सुविवेक जाके हिरदे प्रगट भयो, ताको भ्रम गयो ज्यों तिमिर भागे भानसों || सोइ जीव करमको करतासो दीसे पैहि, अकरता कह्यो शुद्धताके परमानसों ॥ ५ ॥
अव जीवके और पुद्गलके जुड़े जुड़े लक्षण कहे हैं । छप्पै छंद. जीवन ज्ञानगुण सहित, आपगुणं परगुण ज्ञायकं । आपा परगुण लखे, नांहि पुद्गल इहि लायक | जीवरूप चिद्रूप सहज, पुद्गल अचेत जड़ । जीव अमूरति मूरतीक, पुद्गल अंतर वढ़ | नवलग न होड़ अनुभौ प्रगट, तवलग मिय्यामति से । करतार जीव जड़ करमको, सुबुद्धि विकाश यहु भ्रम नसे ॥ ६ ॥
दोहा. कर्ता परिणामी द्रव्य कर्मरूप परिणाम |
क्रिया पर्यायकी फेरनी, वस्तु एक त्रय नामं ॥ ७ ॥ कर्त्ता कर्म क्रिया करे, क्रिया कर्म कर्तार ।
नाम भेद बहुविधि भयो, वस्तु एक निर्धार ॥ ८ ॥ एक कर्म कर्त्तव्यता, करे न कर्ता दोय ।
दुधा द्रव्य सत्ता सु तो, एक भाव क्यों होय ॥ ९ ॥