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(१३) है और न गहत है । सम्यक दरस जोई आतम सरूप सोइ, मेरे घट प्रगटो बनारसी कहत है।॥ ७॥
___ अव जीवद्रव्य व्यवस्था अग्निदृष्टांत ॥ सवैया ३१ सा. __ जैसे तृण काष्ट वास आरने इत्यादि और, ईंधन अनेक विधि पावकमें दहिये ॥ आकृति विलोकत कहावे आगि नानारूप, दीसे एक दाहक स्वभाव जव गहिये ॥ तैसे नव तत्वमें भया है बहु भेषी जीव, शुद्धरूप मिश्रित अशुद्धरूप कहिये ॥ जाहीक्षण चेतना सकतिको विचार कीजे, ताहीक्षण अलख अभेदरूप लहिये ॥८॥
पुनः जीवद्रव्य व्यवस्था वनवारी दृष्टांत ॥ ३१ सवैया सा. - . जैसे वनवारीमें कुधातुके मिलाप हेम, नानाभांति भयो पै तथापि एक नाम है ॥ कसीके कसोटी लीक निरखे सराफ ताहि, वानके प्रमाणकरि लेतु देतु दाम है ॥ तैसेही अनादि पुदगलसौ. संजोगी जीव, नवतत्वरूपमें अरूपी महा धाम है ॥ दीसे अनुमानसौ उद्योतवान औरठौर, दूसरो न और एक आतमाही राम है ॥९॥
अब अनुभव व्यवस्था सूर्यदृष्टांत ॥ सवैया ३१ सा. जैसे रवि. मंडलके उदै महि मंडलमें, आतम अटल तम पटल विलातु है ॥ तैसे परमातमको अनुभौ रहत जोलों, तोलों कहूं दुविधान कहुं पक्षपात है ॥ नयको न लेस परमाणको न परवेस, निक्षेपके वंसको विध्वंस होत जातु है । जेजे वस्तु साधक है तेऊ तहां बाधक है, वाकी रागद्वेषकी दशाकी कोन वातु है ॥ १० ॥