Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 14
________________ तिणवइमो संधि [९] कह कह-व किलेसें णरवरिंदु उम्मुच्छिउ पुच्छिउ मुणिवरिंदु कहि-त्तणउ एउ वर णारि-रयणु तहो अक्खिउ तं णिसुणेवि वयणु लवणोवहि-वेढिए जंबुदीवे कुरु-जंगले गंगा-णइ-समीवे णामेण हत्थिणायउरु तेत्थु जाणिज्जइ दोमइ वसइ जेत्थु कोसावहि कुवलय-गंधु जाहे को वण्णेवि सक्कइ रूउ ताहे केत्तहे-वि कहि-वि गउ अवदुवारु वसुहाहिव-गत्तई तवइ मारु पउमइ-मि ण इच्छइ पउमणाह चंदणु-वि णिरारिउ करइ डाहु भावंति ण सीयल सुरहि वाय एवं तहो विरहावत्थ जाय घत्ता वणु कहि-मि पइडु लग्गु सुरिंदहो साहणहो। वहुरूविणि-मंतु सिद्ध आसि जं रावणहो। [१०] सुरु साहिउ संगम-णाम-धारि सावहि कियंत-रूवाणुकारि णिय-वइयरु कहिउ असेसु तासु ण णिहालिय जइ तो महु विणासु गउ गयउरु सुरवरु साणुराउ सुह-सुत्त णिसासु हरेवि आउ स-विमाण भवण-उज्जाणे मुक्क क-वि देवय ठाणहो णाई चुक्क जाणाविउ आणिउ पासु ताहे णिसि-णिग्गमे उग्गमे दिवस-णाहे वोल्लाविय कह-वि विउद्ध वाल णं भसलालाविय कुसुम-माल आणाविय तुहं मई करेवि गाहु लइ अमरकंक-ईसु(?) पउमणाहु घुम्माविअच्छि णिद्दावभुत्त सुविणंतरु भणेवि ++++ सुत्त ४ ८ घत्ता मिगमय-गंधेण णव-णीलुप्पल-दल-स्सेण । मयणे ससि-जलेण णं उप्पाइय विभिएण । [११] कह-कह वि विणिद्द विउद्ध वाल णं काम-कंडे-कोंदड-साल कल-किंकिणि-मुहलु विमाणु दिलु पर-पुरिसु अवर परयार-धिट्ठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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