Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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बिउत्तर-सउमो संधि
घत्ता जण-मणे उवसमु णेइ जगे समवसरणु संचरइ। सासय-पुर-गमणाई चउब्विह-पुज्जा-करणइं॥
पवर-सयल-चक्काहिव-वम्मह-णारय-रुद्दहं कामपाल-णारायण-महपडिसत्तु-णरिंदहं तिविह-भोग-भूमी-माणुस-जिण-सासण-देवहिं जक्ख-देव-विज्जाहर-देवहिं जिणंघि-सेवहिं णाम-जाइ-संघासंगत्तण-वल-वीरत्तई अंतराउच्छाया-गुण-विक्कम-गंभीरत्तई सिय-विहोय-सुपरक्कम-पोरिस-साहस-सहसइं हि-णिहाण-रयणुब्भव-मेहलि-णिवह-विसालई वर-कुमार-मंडलिय-विजय-महियल-परिभमणइं संगरे खग-पत्तण जिणवर-वंदण-गमणइं अंग-जाय-अंतेउर-किंकर-मंति-पमाणई वेय-दुंदुहि-सिइंत-मउडाहिव-वर-विसयाणइं
घत्ता सुह-दुह-विच्छायइं इंदिय-परिसमणासमणई। तव-चरण-तवणाई सासय-गइ-दुग्गइ-गमणइं॥
[८]
मंदर-णंदण-वण-कुलगिरि-गण-णव-णव-पसगणवर (?) देवय-परिभूसिय-भवणुब्भासिय-सकमल-कमल-सर जिण-ण्हवण-सिलायल-सिंग-समहियल-कूडई मणहरई णाणा-मणि-भित्ति-मत्तग्गय-कित्तिम-जिणहरई णइ-णिवडण-कुंडई वर-वित्थिण्णइं चक्काल-हुय-मह-सरिउ
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