Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 102
________________ बिउत्तर - सउमो संधि [१०] -पोग्गल - संजम-पत्तदाणई जीवाजीव - काल-वलधम्माहम्म- परिणाम - काल-समय-पणामई मोक्ख-सुसोक्ख - हेउ - वर - मोक्ख - मग्गय - झाणई वंधव - सुगंध - हेउ - धुय-समिइ - महागुण - जोय - भाणइं लोयालोय - दिक्ख- अणुवेक्खा-णय - अणिउयदारइं वेजावच्च-गुत्ति - उच्छ - गुच्छेण दंसण- सरीरइं इंदिय - दव्व - विणय - वइराय - णास - णिग्गंथ-मयणायया लेसा - रिद्धि-लद्धि-दोस - सेव - पायड-भव - कसायया पायच्छित्त - अप्प - सब्भाव-सील - अण्णाण- संवरा गुणथाणोववास- जिण- पुज्जा- नियम विसुद्धि- णिज्जरा सुक्कासुक्क-सुद्ध-सम्मत्त-भाव- गारव - चत्तइं तच्च भेय-वुद्धि-रसमउणई पोस - विहाणइत्तइं घत्ता आराहय-आरद्ध-परमाराहण- फल-सुत्तरं । उज्जम - णिव्वहणाई सोहण - णिरिक्खण- णिउत्तई ॥ Jain Education International [११] सत्तरय दय-रुंदत्तइं अंगुड वि अंतर- अहिहाणई सेढि - णिबद्ध-पइव्वय - लक्खई वरणाराइआउस-उच्छेयइं वइतरणी-इ-रस-वस- पाणइं असिपत्त-वण- णिगोयई थाणई णारइएकमेक्क- वह - करणई कप्पण-भक्खण-रुंधण - सहणई वालण- वलण - वलण संतलणइं - पडल- विडप्प - पमाण- मंदत्तइ खर - पंक- प्पभाव - परिमाणई सावहि- सेढि -गय- लक्खई अब्भंतरई तं दुहई अणेयई छिंद-भिंदण - णिंदण-धरणई हिट्टिम - भूइ - असुर-पइसरणइं विंधण - बंधण - रुंधण - डहणई गालण- पीलण - पोलण-दलणई कंद - हणण-यम्म-संभरणई For Private & Personal Use Only ४ ८ ९३ १२ १३ ४ ८ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122