Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 113
________________ १०४ रिटणेमिचरिउ घत्ता जीव-णिहायहो किं दढ-वंधणु भुवणुत्तम विविह-परिग्गहु गेहिणि-सणेहु पुरिसोत्तम ।। [११] किं मणुयत्ति सासयं मिहिरि-कोडी-दित्ती ए णक्खत्त णेमि ससि-संख-सेय कित्ती ॥ १ (हेला) परमेसरु साहइ जेम जेम हरिसिज्जइ सहायणु तेम तेम सोसिय-सुय-वयणामिय-रसस्स तित्ति ण संभवदि हु केसवस्स ण करणसिदस्स दीवायणस्स ण कुसुमसरस्स सिणिणंदणस्स ण सिणिस्स जरस्स ण सच्चइस्स संवस्स ण तित्ति ण दुंदुहिस्स भाणुस्स सुभाणुहि सुझुवस्स भगदस्स जगस्स सढावियस्स तित्ति ण सारस्स ण सारणस्स तित्ति ण णंदस्साणंदणस्स भोयस्स देवसेणस्स तस्स ण भवदि ससिमुद्द-सणेउरस्स किसमब्भुद्देसंतेउरस्स तित्ति ण पउरस्स महायणस्स सस्सुद्दुसिस्स ण रिसि-गणस्स +++++++++++++ [ढक्काभासा-कवडयं] किय-सर-मउलिहि जिह णरहं तेव सुरवर-वरहिं वि धरणिंदाइहिं णवि होइ तित्ति विसरिहि वि॥ [१२] तहिं पत्थावि णाहि-किय-परम-वंदणेण। रोहिणि-दस-दसार-लहु-भाइ-णंदणेण ।। १ (हेला) कर कोपलु करेवि सुरसारउ चलणि पपुच्छिउ णेमि-भडारउ कहि परमेसर इह दारावइ धणय-विणिम्मिय सुरपुरि णावइ वहु-पुण्णोदएण गोविंदहो विद्धिए गच्छिय मज्झि समुद्दहो तुह जम्मु वि भणेवि जणु वंदइ कित्तिउ कालु सतोरण णंदइ आयहो णामु तिलोय-पगासु वि जिण-सत्थे ण अस्थि विणासु वि अण्णु वि पर-बल-वणतिण-डहणहो कित्तिउ कालु विजउ महुमहणहो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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