Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAKRIT TEXT SERIES NO. 37 SVAYAMBHUDEVA'S RITTHAŅEMICARIYA (HARIVAŃSAPURĀNA) PART IV (1) UTTARA-KANDA EDITED BY RAM SINH TOMAR PRAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD 2000 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAKRIT TEXT SERIES NO. 37 : General Editors : D. D. Malvania H. C. Bhayani SVAYAMBHŪDEVA'S RITTHANEMICARIYA (HARIVAŃSAPURĀŅA) PART IV (1) UTTARA-KANDA EDITED BY RAM SINH TAMAR PRAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD 2000 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by: Harivallabh Bhayani Secretary, Prakrit Text Society, Ahmedabad-380 009. © Ram Sinh Tomar First Edition 2000 Price: Rs. 75/ Printed by: Ramaniya Graphics 44/451, Greenpark Appartments, Sola Road, Naranpura, Ahmedabad-380 063. Ph. 7451603. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत ग्रन्थ परिषद् : ३७ कइराय-सयंभूदेव - किउ रिट्टणेमिचरिउ (हरिवंसपुराणु) चतुर्थ खंड (प्रथम भाग ) उत्तर-कंडु संपादक : राम सिंह तोमर प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद २००० Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम संधि पृष्ठांक तिणवइमो संधि चउणवइमो संधि पंचाणवइमो संधि छण्णवइमो संधि सत्ताणवइमो संधि अट्ठाणवइमो संधि णवणवइमो संधि सउमो संधि एक्कुत्तर-सउमो संधि बिउत्तर-सउमो संधि तिउत्तर-सउमो संधि Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Foreword With this fourth part the publication of Svayambhûs' Ritthaņemicariya also called Harivassapurāņa is completed. This part contains a portion of the Uttarakamda. In the manuscripts Sandhis 93 to 112 cover the Uttarakamda. But the present part, eventhough it is the last part gives the text up to Sandhi 103 only. The reason for omitting the remaining Sandhis is stated in the Preface. At the time of the publication of this number of the P. T. S. Series, it is very sad that Dalsukhbhai Malvania is no more with us. He passed away on the 28th January. He was the architect of the Prakrit Text Society. His loss is irrepairable for the Indology. We thank Dr. R. Tomar for waiting for several years. With this part the publication of Svayambhu's great epic is completed. - H. C. Bhayani General Editor Preface In the Introduction to Svayambhū's Paumacariya (Part I PP. 18-20, 42-44 : SJS, No. 34, 1953), I have shown that there were three hands in the composition of the Uttarakamda of the Ritthaņemicariya. Saṁdhis 93 to 99 are by Svayambhū. Samdhis 100 to 104 are by Svayambhū's son Tribhuvana. Samdhis 105 to 112 are by Tribhuvana and Yaśahkirti Bhattāraka who flourished in the fifteenth century. This information we can gather from the colophons given at the end of Samdhis 100 to 112 (see Paumacariya, Part 1. Introduction, p. 125-127). Svayambhū's own statement clearly says that his muse was tired. This implies that due to failing health he could not complete the Aritthanemicariya and possibly shortly he passed away. It seems that some parts of the Samdhis 105 to 112 were missing in the manuscript that used by Yaśahkirti Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ and he made good that loss by himself filling the gap. We have included here only Tribhuvana's contribution. Moreover the readings of the manuscript in the case of Samdhis 105 to 112 are considerably corrupt. So we thought it advisable to omit it. Tomar's text of Saṁdhis 97 to 103 was revised by Bhayani in view of metrical consideration and of observing consistency of grammatical form. Dr. Ramanik Shah assisted by Saloni Joshi prepared a copy of the text of Samdhis 103 to 112 on the basis of Bh. manuscript. But as said previously we have excluded the last nine Sardhis. At numerous places in the later part the readings are doubtful and the meaning obscure. To indicate this we have put questionmarks. But actually the text is unclear to us at many more places. Our only excuse to publish such a text is to make available the way the topics covered by this part were treated by Svayambhū and Tribhuvana. In the second Kadavaka of Samdhi 104 (not included in the published part), Tribhuvana has given a long list of earlier Sanskrit, Prakrit and Apabhraíśa poets. The list is important from several points of view. But there is a number of copyist's errors and the identification of the poets some known, many unknown poses another problem. In some commentaries of Hāla's Gāhākosa also we find the author name appended to each Gātha and there also forms of many names are obviously corrupt. Tribhuvana's list would require a special treatment. 1-5-2000, Ahmedabad H. C. Bhayani Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचरिउ (हरिवंसपुराणु) उत्तर-कंडु Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिणवइमो संधि जरसंधे समरे समत्तए हरि वारवइ पईसरइ। तव-कारणे णेमि गिरि- उज्जतहो णीसरइ । [१] एत्तहे विणिवाइउ मगह-राउ एत्तहे वसुएवहो विजउ जाउ वेयड्ढहो दाहिण-सेढि सिद्धि पज्जुण्ण-संवु-पण्णत्ति-रिद्धि वत्ताउर गय पिउहे पासु हरि-वइयरु अक्खिउ तेहिं तासु चक्काहिउ जिउ चक्केण भिण्णु जिह णिवडिउ साल-दुमो व छिण्णु ४ जिह सुर-णर-परिमिउ सावलेवु णारायणु णवमउ वासुएउ विजाहर जे जे जगे अजेय जायवहं जाय ते वस-विहेय दिण्णउ कण्णउ हरि-णंदणाहं सोहग्ग-रूव-धण-जोव्वणाहं एत्तहे मरंतउ कुरुव-राउ सत्थारे महारिसि तुरिउ जाउ सण्णास-विहाणे पाण मुक्क पय पंच जेण मासेण मुक्क गउ सग्गहिं सत्तु-समूह-वत्त जायव जरसंधहो पासु पत्त घत्ता संकारिय सव्व जे जे विणिवाइय राय रणे। णं गिंभ-दवेण सुक्क महा-दुम दड्ड वणे॥ [२] अट्ठारह अक्खोहणिउ जेत्थु को डज्झउ रुज्जउ कवणु तेत्थु गोविंदें तो-वि भडग्गि दिण्णु सिज्झविउ सव्वु जो जेवं तिण्णु पए पए चियाइं पज्जालियाई छुडु छुडु अंगई पक्खालियाई तहिं अवसरे पर-णरवर-णिसिद्ध सोणासण-महारहु वसह-चिंधु वारवइहे आउ समुद्दविजउ सज्जणे मि कुमारें लद्ध-विजउ स-दसारुह खेमाखेमि हूव थिय एक्कहिं णिम्मल-कुल-पसूय पुणु गय गंगा-णंदणहो पासु गुरु भणेवि ति-भामरि दिण्ण तासु तहिं हंस-महारिसि-परमहंस वंदेप्पिणु विण्णि-वि किय-पसंस ८ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ घत्ता तुम्हिहिं दिखेहिं सुह-रस-पसरिय-परिमलई । कर-गिज्झइं होति सग्ग-मोक्ख-सुक्खई फलई ।। ४ सायर-गंभीर-महासरेहिं आसीस दिण्ण परमेसरेहिं जम-जलण-पवण-वइसवण-खंद कुल-सेल-समुद्द-दिसा-गइंद णक्खत्तई चंदाइच्च जावं महि भुंजउ णीसामण्ण तावं णंदउ हरि-वंसु अणेक्क-काल जिह तिण्णि चक्क हल चक्क-पाल हरि-वल तित्थंकर परम देव अमरेहिं करेवी जाह सेव कोती-णंदण णंदंतु सव्व जिण-सासण-वच्छल परम भव्व गंगेउ खमाविउ खमहि ताय महि-कारणे केण ण दिण्ण घाय तुम्हह आसीस-तरंडएण उत्तिण्ण किलेसहो खंडएण घत्ता आएहिं णियाइं दुक्खइं भयई अमंगलई । पर दिट्ठई ताय एवहिं सव्वइं मंगलई।। ४ सर-णियरालिंगिय-विग्गहेण वुच्चइ मयरद्धय-णिग्गहेण दुजोहण-मागह हीण-सत्त णिय-णिय-दुच्चरिएहिं मरण पत्त तुम्हइं धर-धीर महाणुभाव महि भुंजहु चंदाइच्च जावं मई खमिउ असेसह खमहु तुम्हि लइ ढुक्कु पयाणउ जाहुं अम्हि आउच्छिय सयल-वि किय-णिसल्लु एत्तडउ भणेवि जइ किय-महल्लु तो माणुसु कहि-मि ण दद्धु जेत्थु मइ गंपि डहेज्जहु णवर तेत्थु विण्णवइ जुहिट्ठिलु णवेवि पाय हउं पेसणु एउ करेमि ताय वोल्लंतहो ए आलाव तासु कंठ-ट्ठिय पाण पियामहासु महरिसिहिं पघोसिउ कण्ण-जाउ वंभुत्तरु गउ असरीर-भाउ णीलइ हरिहे उत्तर-गंड-सेले सिर-सिहरे दड्डु मज्झण्ह-वेले Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिणवइमो संधि घत्ता ता उट्ठिय वाणि एत्थु दड्ढ गंगेय-सउ दो दोण-सयाई कण्णज्जुणहं पमाणु णउ ॥ सच्छंद-मरणु मुउ भीसु जेत्थु पुण्णाउस अमर पडंति जावं । पल्लोवरि ससि-रवि-असुरमंति संवच्छर काह-मि ओणु पल्ल णक्खत्तहं पल्ल-चउत्थ-भाउ वंधव पट्ठवेवि कियंत-साल महि अचल जुहिट्ठिल हुव काहं किं णल-णहुस-वलि-रावणाहं किं चक्कवइहिं किं हलहराहं अजरामरु माणुसु कवणु तेत्थु सामण्ण-णरेहिं को गहणु तावं सम-लक्खु सहसु सउ ते जियंति अवसेस पंच-अद्भुट्ठ पल्ल दुइ तेत्तीसोवहि सुर-णिकाउ जीवेसहि तुहु केत्तडिय काल किं मागहणाह-दुजोहणाहं किं सिवि-दिलीवि-सहसज्जुणाहं किं तित्थयरहं किं कुलयराहं ८ घत्ता मुय णरवर-लक्खु तव-णंदण तो-वि अमर-सहस वंभाण-सय। काह-मि पच्छए महि ण गय॥ १० गउ तव-सुउ कहिउ सहोयराहं जलु देमि जाम मेलविय पाणि इह सउ गंगेयहं दड्ड आसि उपण्ण चोज हरि-हलहराहं थोवंतरु तहिं अच्छंति जाम वेयड्डहो तिण्णि-वि साणुराय पडिवत्ति जहारुह करेवि तेहिं चउ-दिसु संवच्छर भमेवि अट्ठ वलएव-सामि-दामोयराहं उच्छलिय ताम णहे दिव्व वाणि दो दोणहं कण्णज्जुणहं रासि सामंतहं मंतिहिं किंकराहं जणे उठ्ठिउ तूर-वमालु ताम पज्जुण्ण-संव-वसुएव आय पुणु दिण्णु पयाणउं जायवेहिं पुणु सरहस दारावइ पइट्ठ ८ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिहणेमिचरिउ उप्पज्जइ चक्कु पाविज्जइ रज्जु घत्ता समरे णिहम्मइ वइरि-वलु। एउ पुराइउ पुण्ण-फलु ॥ परिओसिय सयल-वि णियय-वंधु अहिसित्तु सउरि किउ पट्ट-वंधु वसुएवहो दाहिण सेणि दिण्ण पंचास-महापुर-भेय-भिण्ण महुरहिं पइसारिउ उग्गसेणु वसुहद्ध विहंजिउ जिह सुहेण कुरु-जंगल-मंडलु पंडवाहं अवरई पुणु अवरहं वंधवाहं महि पालइ गयउरु धम्म-पुत्तु णय-विक्कम-विणयायार-जुत्तु धयरट्ठहो कम-कमलई थुणंतु. गंधारि जणेरि व जय भणंतु ताइ-मि चिंतंतइ धम्मु मोक्खु वीसरियई पुत्तहं तणउं दुक्खु वहु-कालहो णारउ आउ पासु किउ सव्वहिं अब्भुट्ठाणु तासु __घत्ता गहियारिसाए णिय-सरीर-मंडण-मइए। णारउ पइसंतु णवर ण जोइउ दोमइए। [८] आसीविस-विसहर-विसम-चित्तु देव-रिसि हुवासणु जिह पलित्तु विच्छोइय जाम ण अज्जुणासु कउ ताम मणोरहु महु मणासु स-विमाणु स-धयवडु अंवरेण । __ गउ धायइ-संडु खणंतरेण जहिं पुरवरु णामें अमरकंक वित्थरेण परिट्ठिय णाई लंक ४ वसुहाहिउ दीसइ पउमणाहु दीहर-पारोह-पलंव-वाहु पडिवत्ति जहारुह किय णिवेण दक्खविउ जुवइयउ पत्थिवेण लइ पेक्खु मणोहर-देहियाउ सग्गे-वि अत्थि जइ एहियाउ तेण-वि दरिसाविय पडिम तासु णं हत्थ-भल्लि मयरद्धयासु घत्ता सहसत्ति णरिंदु दोमइ-पडिमए दिट्ठियए। मुच्छविउ णाई उरे कण्णीए पइट्ठियए । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिणवइमो संधि [९] कह कह-व किलेसें णरवरिंदु उम्मुच्छिउ पुच्छिउ मुणिवरिंदु कहि-त्तणउ एउ वर णारि-रयणु तहो अक्खिउ तं णिसुणेवि वयणु लवणोवहि-वेढिए जंबुदीवे कुरु-जंगले गंगा-णइ-समीवे णामेण हत्थिणायउरु तेत्थु जाणिज्जइ दोमइ वसइ जेत्थु कोसावहि कुवलय-गंधु जाहे को वण्णेवि सक्कइ रूउ ताहे केत्तहे-वि कहि-वि गउ अवदुवारु वसुहाहिव-गत्तई तवइ मारु पउमइ-मि ण इच्छइ पउमणाह चंदणु-वि णिरारिउ करइ डाहु भावंति ण सीयल सुरहि वाय एवं तहो विरहावत्थ जाय घत्ता वणु कहि-मि पइडु लग्गु सुरिंदहो साहणहो। वहुरूविणि-मंतु सिद्ध आसि जं रावणहो। [१०] सुरु साहिउ संगम-णाम-धारि सावहि कियंत-रूवाणुकारि णिय-वइयरु कहिउ असेसु तासु ण णिहालिय जइ तो महु विणासु गउ गयउरु सुरवरु साणुराउ सुह-सुत्त णिसासु हरेवि आउ स-विमाण भवण-उज्जाणे मुक्क क-वि देवय ठाणहो णाई चुक्क जाणाविउ आणिउ पासु ताहे णिसि-णिग्गमे उग्गमे दिवस-णाहे वोल्लाविय कह-वि विउद्ध वाल णं भसलालाविय कुसुम-माल आणाविय तुहं मई करेवि गाहु लइ अमरकंक-ईसु(?) पउमणाहु घुम्माविअच्छि णिद्दावभुत्त सुविणंतरु भणेवि ++++ सुत्त ४ ८ घत्ता मिगमय-गंधेण णव-णीलुप्पल-दल-स्सेण । मयणे ससि-जलेण णं उप्पाइय विभिएण । [११] कह-कह वि विणिद्द विउद्ध वाल णं काम-कंडे-कोंदड-साल कल-किंकिणि-मुहलु विमाणु दिलु पर-पुरिसु अवर परयार-धिट्ठ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ ४ सो पभणइ धायइ-संडु केत्तु चउ-लक्ख-परम-जोयण-पमेत्तु कालोवहि-वेढिए तहिं असंक णामेण एह पुरि अमरकंक हउं पउमणाहु इह भुंजमाणु विहवेण सक्कु साहण-समाणु वामोरु णियंविणि तुह कएण णवि महु दिहि चंदण-पंकएण ण जलद्दए ण मयलंछणेण आणाविय तें तुहुं कारणेण लइ देसु असेसु वि पुरवराई धय-चिंधई छत्तइं चामराई घत्ता लइ मणि-रवणइं रह-गय-तूरई वसणउं । उल्हावि वलंतु पिय महु विरह-हुवासणउ॥ [१२] तं णिसुणेवि पभणइ दुमय-पुत्ति आसंक-विवज्जिय धुत्त-धुत्ति गंधव्व पंच पच्छण्ण-वेस कंपति जाहं अमर-वि असेस ते जले थले णहयले परिभमंति अणिवारिय-गोयर संचरंति जे जे जुआण मई अहिलसंति ते ते गंधव्वहं खयहो जंति भंजंति णरिंदाणंदिराई पायार-पओलिउ मंदिराई अहिलसिय आसि हउं कीयएण सो चूरिउ दइवें वीयएण जिह तइं तिह हरिय जयबहेण पच्चेडिउ सो-वि जयद्दहेण मासावहि जइ ते कह-वि णाय तो जंभावइ तं करहि राय घत्ता सिरे वेणि णिवद्ध चत्ताहार किलेस-सह। थिय णिरलंकार णं दुक्कइ-किय कव्व-कह॥ [१३] पंडवेहिं ताम वसुमइ गविट्ठ चक्कवइहे केण-वि कहिय वत्त किर खेडा भमाडइ णियय-सेण्णे माणिज्जइ धायइ-संडु दीउ णउ कहि-मि धणंजय-धणिय दिट्ठ णिय कंत कण्ह करि विजय-जत्त देव-रिसि पराइउ लग्गु कण्णे तहिं पउमणाहु णिय-कुल-पईउ ४ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिणवइमो संधि तहे कारणे तेण जि साहिएण णिय एत्थहो देवे भावणेण अवरोप्परु वट्टइ संधि-कज्जु तो वारिय वंधु जणद्दणेण आराहण-मंताराहिएण अवहरेवि सीय जिह रावणेण को जाणइ होसइ काइं अज्जु गउ गयउरु एक्के संदणेण पत्ता टोटके दोमइ कुढे लग्गु सहुं पंडवेहिं अणिंदिएहिं । मणु णाई पय? पेरिउ पंचहिं इंदिएहिं ।। [१४] आराहिउ सुत्थिउ सुरवरिंदु उत्तारिय तेण महा-समुद्दु णिय तेत्तहिं जेत्तहिं जण्णसेणि हरि-जमल-जुहिट्ठिल-भीमसेण धाइय पहरण-किण-कढिण-पाणि घण-घट्टण-घग्घर-घोर-वाणि सारंगु लइउ दामोयरेण करे फेरिय लउडि विओयरेण णउलेण पदरिसिउ कुंत-मग्गु सहएवं कड्डिउ मंडलग्गु तव-सुएण सत्ति समरुज्जएण विणिवारिउ णवर धणंजएण कुरुवाएं खंडव-डामरेण वहु-तालुयवम्म-खयंकरेण दुजोहण-धण-परियत्तणेण संसत्तग-सेण्ण-विहत्तणेण ४ घत्ता लइ अच्छहु सव्व भुवणुच्छलिय-महागुणेण । मई एक्के इत्थु किं ण पहुच्चइ अज्जुणेण ॥ आउरिउ संखु पयट्ट पत्थु महुमहेण-वि पूरिउ पंचयण्णु तं वाणेहिं लइउ कइद्धएण विहलंघलु पर-वल-दिण्ण-भंगु गयणत्थे कण्हें णयर-सारु गय-घायहिं भीमें मंदिराई उदंड-कंड-कोयंड-हत्थु सण्णहेवि पधाइड वइरि-सेण्णु पिय-परिहव-वेहाविद्धाएण पइसारिउ पुरवरे वइरियंगु पाडिउ पाएण पओलि-दारु चूरियइं कियइं पक्कंदिराई Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ भउ जाउ महंतु णराहिवासु विहडफ्फडु गउ दोमइहे पासु परमेसरि पभणइ अभउ देति मई अक्खिउ जिह गंधव्व एंति . घत्ता तिण-दंतु णरिंदु सव्वेहिं पाएहिं पाडियउ। विडु अ-विणयवंतु कउण होइ विब्भाडियउ॥ . [१६] सा पंकयणाहेण सरहसेण मेल्लाविय पत्थहो जण्णसेणि परिपुण्ण मणोरह तुहि जाय पडिवारा छ-वि छहिं रहेहिआय परिपूरिउ कुरु-गुरु-घायणेहिं णिय-जलयरु णर-णारायणेहिं जणु वहिरिउ कंवुअ-महसरेहिं णं गज्जिउ विहिं खय-जलहरेहिं तो चंपापुरि-परमेसरेण कविलेण अद्ध-चक्केसरेण जिणु पुच्छिउ वम्मह-मय-विमद्दु एहु कहो णिसुणिज्जिइ संख-सद्दु वजरइ भडारउ णिरवलेउ एहु जंबूदीवहो वासुएउ पेक्खणहं णराहिउ विणयवंतु विणिवारिजंतु-वि गउ तुरंतु ८ घत्ता अवरोप्परु दिनु उप्परि लवण-महण्णवहो । ण विरुज्झइ जेम जिण-भासिय-परमागमहो। [१७] चंपा-परमेसरु पडिणियत्तु कुरु-जंगलु देसु अणंतु पत्तु पंचालए सहुं वोल्लंतु जाइ धट्ठज्जुणु दुमउ सिहंडि णाई अच्चंत सिंघ गयणम्मि धुत्त ओयरेवि जउण थिय पंडु-पुत्त ल्हिक्कियइं सव्वई तारणाई णं कियई विरोहहो कारणाई तो कण्हु स-कण्णु स-सूउ पत्तु। कालिंदि-महद्दह पुलिणु जत्तु परिपुच्छिय पंच वि विण्ण केवं स-तुरंग स-सारहि ण किय खेव ताह-मि मुह-कुहरुच्छलिय वाय भुय-दंड-तंरडउ करेवि आय पह-परिसमिएण-वि केसवेण स-तुरंग स-दोमइ स-धुरितेण (?) ८ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिrasat संधि घत्ता रहु लइउ करेण लक्खिज्जइ णाई कणय - कवय-पहरण - भरिउ । गिरि- गोवद्धणु उद्धरिउ || [१८] जायव - णिवण जिह सो तिह ते वि परमेसरु पर पर देंतु जाइ उत्तिण्णु जउण-जलु उण्ह - मेत्तु मणे दुम्मिउ दुद्दम-दणु-दमणु जसु सयल-काल-कुल- पक्खवाउ सो-वि ते वि सव्व पट्टणु पट्ठ तहे तणय-तणउं णामेण अज्जु पंडवह - मि दाहिण- महुर सिद्ध अलि-वलय- जलय- कुवलय-सवण्णु णारायणु घत्ता रहवर - झिंदुएण रमंतु णाई तो भीमें आणिउ जाणवत्तु कंतारे दुरुत्तरे खेड्ड कवणु चिंतिज्जइ तहो किर किह अपाउ महुमण सुद्दा विदिट्ठ तो दिज्जइ कुरु - जंगलउ रज्जु वहु-दिवसेहिं ते तेत्त पट्ठ णिय - - पुरवरु पवण्णु तहो तो पडिवत्ति किय । रज्जु सई भुंजंत थिय ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभूएव - कए तेयाणमो ( तिणवइमो ) संधि समत्तो । *** ४ ९ ९ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउणवइमो संधि पंडव दाहिण-महुर गय वारवइहिं पइट्ठ जणद्दणु । ताम ण णावइ केण णिउ अणिरुद्ध अणंगहो णंदणु ॥ [१] स-भुव-वसीकय-णरवर-विंदहो अत्थाणत्थहो तहो गोविंदहो केण-वि कण्णउडंतरे सीसइ देव देव अणिरुद्ध ण दीसइ चउ-दिसु विदिसु पत्ति परिपेसिय तेहिं वसुंधर सयल गवेसिय पडिणियत्त विण्णत्तु जणद्दणु कहि-मि ण दिडु अणंगहो णंदणु तहिं वाहाउव्वाहुल-वाहें मुक्क धाह दारावइ-णाहें मुक्क धाह देवइ-वसुएवेहिं मुक्क धाह रोहिणि-वलएवेहिं मुक्क धाह रुप्पिणि-पज्जुण्णेहिं सिव-समुद्दविजय-मुह-वुण्णेहिं मुक्क धाह पट्टणेण असेसें मुक्त धाह णियडेण विसेसें ४ पत्ता उव्वाहुलुग्गुप्पायणउं हरि-राउलु विणु अणिरुद्धे । णं विदाणउं कमल-वणु णहे दिणयरेण अविरुद्धे । तो सकसाउ जाउ गोविंदहो जेण विओइउ सजण-विंदहो णंदण-णंदणु वालु महारउ आउ कियंतु तासु हक्कारउ जइ-वि पवणु वइसवणु पुरंदरु वरुणु कुवेरु थेरु जमु हरि हरु मरइ तो-वि महु दुक्किय-गारउ ताम महारिसि आयउ णारउ सो पभणइ कह-कह-वि कुमारहो पट्टणु सयलु रुवंतु णिवारहो पिय-हियवउं णामय-रस-छिक्कउं सोय-विमुक्कु थक्कु तुण्हिक्कउं कहइ महारिसि सग्ग-णिसेणिहे गिरि-वेयड्डहो उत्तर-सेणिहे सो णिय-पुरि णामेण पसिद्धी वहु-धण-वहु-जण-कणय-समिद्धी ८ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउणवइमो संधि घत्ता तहिं वाणाहिउ सहस-भुउ वाणासण-वाण-भयंकरु । हरि णामेण तुहारएण पज्जलइ जेम वइसाणरु ॥ [३] चवइ अत्थाणे ताम किय-जोहेहिं अवरुप्परु उप्पण्ण-विरोहेहिं केण दिण्ण पसंस सिंहडिहे केण-वि गुण णिव्वण्णिय पंडिहे केण-वि दिण्ण लीह अहिमण्णुहो घाइउ जेण पुत्तु सयमण्णुहो केण-वि दुमय-मच्छ-धट्ठज्जुण केण-वि जमल-राय भीमज्जुण केण-वि सच्चइ-णिसढ-दसारुह केण-वि कामपाल-कुसुमाउह मई पुणु वासुएउ पोमाइउ चक्काहिवइ जेण विणिवाइड पत्ता जसु गोवद्धण-उद्धरणे रस रसइ सुसइ मुच्छिज्जइ। तहो देवहो णारायणहो वलु वाण काइं पुच्छिज्जइ ॥ ४ तो विज्जावर-वइ आरुट्ठउ णं विसमाहि महा-विस-दुट्ठर कहि देवरिसि गंपि गोविंदहो जइ पइसरइ सरणु अमरिंदहो जइ-वि कुवेरहो वरुणहो रुद्दहो जइ-वि करइ रइ मज्झे समुद्दहो तो-वि जियंतु ण चुक्कहि वाणहो दस-सय-कर-गहिय-किवाणहो ४ . भणु हेवाइउ तुहुं जरसंधे पाडमि उत्तमंगु सहुँ खंधे एत्तिउ कालु किण्ण परियाणिउं जहिं सो हुयवहु तहिं हउं पाणिउ जहिं सो पारावारु भयंकरु तहिं हउं अमिय-विरोलणु मंदरु जहिं सो णिसि-तमु तहिं हउं वासरु जहिं सो फणि तहिं हउ-मि खगेसरु ८ पत्ता चुक्कड़ पर जीवंतु महु णंतो कल्लए लइउ मई गय संखु चक्कु धणु अप्पेवि॥ भु-दंड-सहासें चप्पेवि ॥ तो मणे चिंतिउ खणे अवदारें कलि करेमि अवरेण पयारें Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ कुसुम-वाण जिह होइ कुमारहो लहु अणिरुद्ध-पडिम उप्पाइय उसहे समप्पिय ताए वि दिट्ठी वम्मह-हत्थ-भल्लि णं लग्गी दाहिण-मारुउ परिसंतावइ कमल-सेज कप्पूरु अ-सीयलु पंचमु पंचम-वाणु अणंगहो जिह परिओसु पवड्डइ मारहो णं अहिणव-सोहग-पडाइय विरह-भल्लि णं हियए पइट्ठी णवमी कामावत्थ वलग्गी चंदण-लेउ जलद्द ण भावइ मण-परिपीडणु सव्वु अ-कोमलु सो-वि सुहच्छी जणइ ण अंगहो ८ __घत्ता अहिणव-पड-पच्छिम-छलेण तहुं (?दुहु) जमेण तिंव पाविय। वम्मह-सुय-णट्टावएण रस-भाव सव्व णच्चाविय॥ गउ देवरिसि परिट्ठिय राणी तुहिणाहय व णलिणि विद्दाणी चित्तलेह तहिं काले पराइय णाई सुरंगण सग्गहो आइय वुच्चइ ताए काइं अविचित्ती लइ आहरणइं होहि सइत्ती लइ तंवोलु विलेवणु फुल्लई लइ देवंगई अंगे अमुल्लई करि मुहयंदु चंद-विवुजलु अलयावलि वले विच्छुहि कजलु ता वाणाहिव-दुहियए वुच्चइ करमि सव्वु जइ काइ-मि रुच्चइ आएं सुहएं हउं संताविय कवण अणंगावत्थ ण पाविय पभणइ चित्तलेह एउ कित्तिउ महु असेसु जगु गोप्पय-मेत्तउ पत्ता पढमु णिहालमि वारवइ पच्छए महि सयल गवसमि। पुणु तइलोक्कु परिभमेवि अवसें पडिविंवु लहेसमि। तं पड-पडिम लेवि सुमणोहरि दिट्ठ गविट्ठ सयल दारावइ । कामु स-कामपालु हरि जोइउ तिण्णि-मि अणुहरंति णेवत्थें गय गयणंगणेण विजाहरि णव-जुवाणु तहे को-वि ण भावइ तिहि-मि ताहिं पडिछंदु ण ढोइउ वलु अंतरिउ वण्णवइ हत्थे Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ चउणवइमो संधि वडंतरेण सउरि-वड्डेरउ मयरकेउ ईसेस-खरेरउ पुणु अणिरुद्ध दिडु सो जुज्जइ जसु लायण्णे को-वि ण पुज्जइ जसु सोहागु ण लंघिउ कामें झिज्जइ कुसुम-वाणु जसु णामें णिरलंकारु में होतउ सोहइ जइ मंडिउ तो तिहुयणु मोहइ पत्ता लद्धावसरए णहयरिए णिउ हरेवि अणंगहो णंदणु । वाणंगरुहहे मेलविउ रुप्पिणिहे जहासिउं जणद्दणु ॥ [८] जाम तेत्थु अणिरुद्ध विवुज्झइ ताम णवल्लु सव्वु णउ वुज्झइ कण्णा-रयणु तिलोय-सुहंकरु दिव्व-तूलि-पल्लंकु मणोहरु घरु माणिक्क-सहासेहिं जडियउ तुट्टेवि सग्ग-खंडु णं पडियउ मणि-माणिक्क-टिक्क-कर-रंजिउ । कुवलय-दल-रसेण सम्मज्जिउ लंवियाइं सिय-मोत्तिय-दामई पउमराय-मणि-गुच्छ-पगामइं कंचण-दीविएहिं रविकंतई सयल-काल अच्छंति वलंतई सयल-पणालिएहिं ससिकंतई रत्ति-दिवसु अच्छंति झरंतइं मणे उप्पण्णु चोजु तहो वालहो जम्माउब्बु दिहु वहु-कालहो घत्ता दिडु कुमारि णारि-रयणु रणरणउं जणइ जं अंगहो। ललिउ सुहावउं कोमलउं णं मोहणु दिण्णु अणंगहो। विण्णि णिएवि परोप्परु रूवई किउ परिणयणु अग्गि पज्जालेवि णिरुवमु अहर-पाणु पारंभइ धाइय वंध-करण-सर-करणेहिं णह-लेहण-सिक्कार-वियारेहिं रमियई ताम जाम रवि उट्ठिउ आइउ चित्तलेह तहिं अवसरे अमिय-रसेणातित्तीभूयई खणु-वि ण सक्कियाई पडिवालेवि रइ-रस-वस अणंगु पवियंभइ भावालिंगण-चुंवण-वरणेहिं अण्णेहि-मि अण्णण्ण-पयारेहिं विहि-मि पड्डियाउ परितुट्ठउ सहि एवहिं उपाउ को वासरे Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ महु विणासु तुह अयसहो मरणउं अज्जु-वि तुहुँ पइट्ठ कहो सरणउं ८ घत्ता जाम ण साहणु अच्छहइ पट्टविउ समर-सरु वाणें। ताम माए वरि केत्तहे-वि तिण्णि ओसरहुं विमाणे॥ [१०] तं णिसुणेवि वयणु अणिरुद्धं सासय-कित्ति-समागम-लुढे मंभीसियउ वे-वि कहो संकहो पर-वलु खयहो जाइ महु एक्कहो सूरु व सूरू सूरु चिरु होतउ अंधयविट्ठि पुट्ठि ण देंतर सावलेउ वसुएउ महारणे को ण भगु तें रोहिणि-कारणे - ४ हरि-साहसु तुम्हेहिं विवुज्झिउ सहुँ पत्थिवेण जेण जगे जुज्झिउ मयरकेउ अच्चंतु वहुज्जउ कुसुमवाणु उच्छुहणु-वि दुजउ णंदणु तासु कासु आसंकमि णिम्मलु णउ हरिवंसु कलंकमि जसु लक्खह-मि ण सेउ वलग्गइ एक्कु वाणु तहो केत्तहो लग्गइ ८ घत्ता मा चिंतवहु अणाडहउ भुय-दंडहिं वइरि हणेसमि। रह-गय-तुरय-णराहिवइ ताई [जि] पहरणइं करेसमि ॥ [११] ताम पंचचामरु वसुचंदउ मोहण-थंभण-मारण-विजउ तो परिहविय-पुरंदर-लीहहो जम-कयंत-कलिकाल-समाणहो देव देव देवाह-मि दुजउ तेण तुम्हारी दुहिय विणासिय ताम थोव-कोवग्गि-सणाहें पेसिय पहरण-पाणि पधाइय वेढिउ एक्कु अणेएहिं जोहेहिं उसए सखग्गु दिण्णु वसुणंदउ थिउ रण-मणु वल-विक्कम-तिजउ सोणियपुरि-परिपालण-सीहहो आरक्खिएहिं कहिज्जइ वाणहो अच्छइ एक्कु जुवाणु रणुज्जउ णलिणि व कुंजरेण विद्धंसिय विजाहर विज्जाहर-णाहें दप्पुब्भड केत्तहि-मि ण माइय रह-गय-तुरय-विमाणारोहेहिं ८ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउणवइमो संधि १० घत्ता तेण-वि ते एक्कल्लएण जय-लच्छि -वरंगण-लुद्धे। हरिणइं हरिणाहिवेण जिह णरवर णिरुद्ध अणिरुद्धं ॥ [१२] णवरि य गुरु-संपहारो पहायम्मि पारंभिओ तेण तेहिं पढुक्कंत-लल्लक्क-पाइक्क-मुक्केक्कहुंकार संकायणो। अणवरय-रसंत-गंभीर-भेरी-दडी-झल्लरी-काहला-ली+मु-ताल-तालोलिसंखोह-ढक्केक्क-पाणी-समुटुंत-कोलाहलो॥ हय-खुर-खय-खोणि-खुब्भंत-धूली-कयंधार-पब्भार-पूरिज्जमाणंधरा होय-दूरंतउद्देस-ओसारिआसेस-देवासुरो। सरहस-अणिरुद्ध-दोदाहिणंगुट्ठ-सव्वंगुली-गाढ-गीढासिधारा-णिहम्मंत-मायंगकुम्भत्थलाभोय-णिग्गन्त-मुत्ताहलो ॥ कहिं-पि आहया हया वसुंधरं गया गया कहिं-पि वाण-किंकरा कया णिरंधि णिक्करा कहिं-पि भग्ग-संदणा ठिया णरिंद-णंदणा कहिं-पि छिण्ण-गत्तया पडत आयपत्तया कहि-मि कुद्ध-अणिरुद्ध-छाइया जहिं पडंति भड-थड-णिहाइया कहि-मि सकवय-ससिक्क-जायया दोण्णि दोण्णि दीसन्ति भायया कहि-मि जाय रणमहि एक्कंगिणी कहि-मि पहाविय रत्त-तरंगिणि कहि-मि कवंध-णिवहु णच्चाविउ णहे गिव्वाण-सत्थु तोसाविउ घत्ता एक्केण जे वसुणंदएण एक्केण जे वर-करवालें। सुण्णउ सोणीपुरु करेवि जम-रुडु वसाविउ कालें। [१३] केण-वि कहिउ ताम तहो वाणहो देव देव एक्कहो जे जुवाणहो हय गय रह सामंत समत्ता सयल-वि समर-वसुंधरि पत्ता णउ सामण्णु को-वि सो वालउ रणमुहे वावरंतु असरालउ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ जेत्तहे रमइ दिट्टि सो तेत्तहिं णीलु जेम दीसइ सव्वत्तहिं रहे रहे तुरए तुरए गए गयवरे धए धए छत्ते छत्ते णरे णरवरे का-वि अउव्व भंगि तहो केरी किय स-कण्ण वाहिणि विवरेरी तो सोणीपुर-वर-परमेसरु झत्ति पलित्तु णाई वइसाणरु देवावियइं असेसई तूरई रसियई तडि-घण-कुलई व कूरइं ८ पत्ता वहु-रहु वहु-गउ वहु-तुरउ वहु-वाहु वहु-जल-पहरणु। वाण-णराहिउ णीसरिउ णं मेरु फुरिय-तारायणु ।। [१४] तेण जणद्दण-णंदण-णंदणु अणिक्कअ-भिच्चु अणासु अ-संदणु परिवेढाविउ णरवर-विंदेहिं रहवर-पवर-तुरंगम-गइंदेहिं णं पंचाणणु हरिण-सियालेहिं णं दिवसयरु महाघण-जालेहिं णं खगवइ विस-विसम-भुवंगेहिं णं परम-रिसि परीसह-संगेहिं एक्क-किवाणु एक्क-वसुणंदउ णं णव-मेहु स-विजुल-चंदउ हम्मइ हणइ वणइ ण वणिजइ पर-वलु जिणइ णं केण-वि जिज्जइ वियरइ वलइ धाइ पडिपेल्लइ अ-मुअ अराइ कयाइ ण मेल्लइ सरवर-णियर णिवारिय खगें खगवइ फणि जिह चंचू-मग्गे घत्ता कालदंडु जिह पडइ सिरे विजुल जिह कहि-मि ण संठइ। पीडइ अट्ठमु चंदु जिह संमुहउ सुक्कु जिह उट्ठइ॥ [१५] तहिं अवसरे हउं आयउ एत्तहो तुम्हइं वल-नारायण जेत्तहो एउ ण जाणहुं वइरि-णिरुद्धहो का होसइ अवत्थ अणिरुद्धहो केसव-कामपाल कुढे लग्गा गरुड-सीह-वाहिणिहिं वलग्गा मयरकेउ णिय-विजापाणे चलिउ णहंगणे पवर-विमाणे तिण्णि-वि रहसें कहि-मिण माइय वेय१त्तर-सेणि पराइय एक्कहिं मिलिय चयारि-वि सज्जण णं हरि-हर-वम्भाण-णिरंजण Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चणवइमो संधि भुवण - भयंकर-कर-परिहच्छे धणु फेरंतु फुरंतु पधाइ घत्ता जं अणिरुद्ध उव्वरिउ पर- वलु घोलाघोलि किउ [१६] ण - विकण्ण-जाउ तहो दिज्जइ देव देव दारावर जेत्तहे आणिउ ताएं अणंगहो णंदणु दुहिय तुहारी लइय विवाहें हिउ जेण चक्काहिउ विग्गहें दुक्करु जिणणह जाइ रणं तहो तो विज्जाहर - सेण - पहाणें को णारायणु को तालद्ध घत्ता अच्छमि वइरि वहंतु किर महुस जे समावडिय एम भवि विज्जाहर - णाहें लइयई पंच सय कोयंडहं धाइउ हणु भणंतु गोविंदहो आइउ सिरु वहंतु णिय-खंधे गिरि - गोवद्धणेण उद्धरिएं हउं पुणु वाणु पहाणु णरिंदहं भणइ अणंतु अज्जु सई हत्थें तं कोव - कसायाउण्णेहिं णारायण - वल-पज्जुण्णेहिं || पूरिउ पंचयण्णु सिरि-वच्छे वाहिं वाणु णिरंतरु छाइउ [१७] णिरवसेसु वित्तंतु कहिज्ज रणिहिं चित्तलेह गय तेत्तहे तरुणी-घण - थणवट्ट-विसट्टणु कवण केलि सहुं पंकयणाहें सो किं चड ण यिय- परिग्गहें वलिकिज्जउ थुइ - वाउ अणंतो णिय- भुय - सहसु विउव्विउ वाणें को अणिरुद्ध को व मयरद्धउ अज्जु कल्ले पडिलग्गमि । सिर- सेज्जहे किह ण वलग्गमि ॥ सुरवर - जयसिरि-संगम - लाहें करे करे लक्खु लक्खु किउ कंडहं जंतु इंदु मदहो हरि वा तुहुं जरसंधे कालिय- सेहरेण जज्जरिएं +++++++++++++ लायम परं जरसंधहो पंथें १७ ८ ४ ८ ९ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ एय चवंत परोप्परु धाइय घत्ता वंध-करण -कइयव - कुसलु दविड- विलासिणि- सुरउ जिह [१८] विणि-वि वावरंति सम - घाएहिं वच्छदंत-थिय (?) - थूणाकण्णेहिं जुज्झिता जाम हु छाइउ जुज्झिय ताम जाम चमु चूरिय जुज्झिय ताम जाम सर घोसिय जुज्झिता जाम ध खंडिय जुज्झिता जाम पुणु उट्ठिय जुज्झिय ताम जाम रुहिरोल्लिय घत्ता जुज्झिय ताम जाम समरे रुहिर - समुद्दे तरावियई [१९] तो माहवेण महाहवे ताडिय वे उव्वरिय सीसु किर छिंदइ देव देव अहो देव - परायण वरु अणिरुद्धु ससुरु मयरद्धउ तो - विणिहम्मइ वप्पु महारउ कुसुमवाण-करुणामय - सित्तेंरणु दिण्ण कण्ण अणिरुद्धहो वाणें किउ कर गहणु सइंदहो णावइ अच्छर अमर णिहाला आइय सर-घाय - मुच्छ - उप्पायणु । रणु जाउ वाण-णारायणु ॥ णच्चियां अणेय - कवंधई । छत्तई धय- चामर - चिंधई ॥ वाह वाह रहंगें पाडिय रायउत्ति तहिं अवसरे कंदइ देहि जणेर - भिक्खणारायण तुहुं भत्तार - पियामहु लद्धउ जीवइ सुय-संवंधि तुहाउ परिहरिउ भाम-वरइत्तें सहु हियइच्छिण अण्णाणें गय जण्णत्त पत्त दारावइ रिडणेमिचरिउ तीरिय- तोमर - खुर-णाराएहिं ओएहिं अवरेहि-मि अण्णण्णेहिं वाण-जालु केत्तहि-मिण माइउ हय-गय- णरवरिंद सर - पूरिय सुर र रिक्सेस परिओसिय चामर - छत्तेहिं रण-महि मंडिय घण घण-पहरणोह- परिणिट्ठिय स- गिरिस - सायर वसुमइ डोल्लिय ८ ८ ९ ४ ९ ४ ८ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चउणवइमो संधि घत्ता संखेहिं तूरेहिं मंगलेहिं हरि भवणु पइड तुरंतउ । णिय-वंधव-सयणावरिउ थिउ रअ सई भुंजंतउ॥ इय रिहणेमिचरिए धवलइयासिय-संयभुएव-कए चउराणमो (चउणवइमो) सग्गो॥ * ** Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाण-1 - विमद्दणहं पंचाणवइमो संधि सज्जन-णंदणहं अणिरुद्ध-मयण-संकरिसणहं । - फलु कुसलाकुसलु णं आउ वसंतु गवेसणहं ॥ १ [१] ताह - मि विजय पइसरइ वसंतु लद्ध-पसरु कलु कोइल-कलयलु उच्छलिउ धाइ सीय मंथर-गमणु जय कमल रइ-मंदिरई हिंदोलउ गिज्जइ सुंदरिहिं पव-मंडव देति अणाणियइं पाणिउ झरंति णिज्झर-झरइं गज्जइ स-मुद्द स-वसंत - सिरि णंदणु कुसुमसरु वच्छत्थले वर सिरि घत्ता णव - कोमल - कोंपल जाय तरु दमणुल्लउ दिज्जइ णव - फलिउ णव- चंदणहु दाहिण -पवणु परिमल - पहि- इंदिंदिरई वज्जंति मुयंगा चच्चरिहिं पंथियहं इक्खु - रस - पाणियई वेणवउ देति णं वहु-परइं मउरिउ कुसुमिउ उज्जेत - गिरि तित्थयरु स - हलहरु भाइणरु । रइ-वहु-वरु साहीण- सिरि सई माह अवसें एइ घरु ॥ ९ [२] जत्थ पयंड-पंडुच्छु-दंड-खंडाहि - घाय - उच्छलिय - सरस-मायंद-गोंदि - णिद्दलिय - कलम- कणिस - हल-भार-भज्जंत - भिसिणि- पब्भार- भिडण - भंगुरिय- भमरभमरोली दीसइ घोलंती पंथिएहिं वण-लच्छि-वेणि व्व । जत्थ य णवल्ल-कंकेल्लि-मल्लिया - तिलय-वउल- पुन्नाय चंपय-विणिद्द - रुंदारविंदमयरंद-मंद-णीसंद-संदोह कंदरिदिंदिरावली-भमई- विब्भलुब्धंता दीसइ वसंतलच्छीए रोम-र‍ -राइ व्व पहिएहिं ॥ जत्थ य णीसंत - णिम्मल - पहाय सीयल-सुगंध-मंथर-वहंत- गिरि-मलयमारुयंदो [लि] - दुम-वण- वोढ-मोघाय - णिहसणुड्डीण मत्थि - थिप्पंत- थोर-महुथेव-भरिय-णलिणि-उडं पिज्जंत पंथियहिं हि धुत्ती - अहर व्व धुत्तेहिं । - - Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचाणवइमो संधि जत्थ य अणंग-पिहिय-द्धय-चूय-णव-कुसुम-मंजरी-रेणु-पुंज-पिंजरिय-मुहलकल-कोइलालाव-दिण्ण-दुह-झीण-गयवइ-गुरु-णियंव-परिगलिय-मेहला-दामं दीसइ जणेण सहसत्ति सुत्त-गोवाहि-वलयं व। जत्थ य मणोहरागय-वसंत-संगम-पभिण्ण-करि-करड-तड-विणिग्गंतमहुयरायण-मय-सरी-पउर-पूरंत-वाहिणी-वाहिणि-मजाविओ स-मुद्दा विणच्चइ महल्ल-कल्लोल-करयलो मत्तवालो व्व।। जत्थ य विलासिणी-रय-विलास-कवरी-णिवद्ध-परिगलिय-सुरभि-णव-कुसुमरेणु-कप्पूर-पउर-तंबोल-वहल-परिमिलंत-मत्तालि-वलय-झंकार-मणोहरालाविणी-कलुग्गयंत-कंदप्प-कण्ण-कंडुयण-पेहुणं पिव सुहावेइ ॥ ६ [छम्मालागाहो णाम छंदो] घत्ता तहिं तेहए समए तामरसमए माहव-दंसण-मय-मुइय-मइ। पल्लव-लोल-कर लद्धावसर णं णच्चिय सरहस वारवइ॥ ७ अत्थाणे परिट्ठिउ चक्कहरु अणिरुद्ध संवु सच्चइ पवरु आलाव जाय तो जायवहं अवरेहिं पोमाइउ महुमहणु रह-चूरणु रिट्ठ-कंठ-दलणु चाणूर-कंस-चेझ्य-महणु अवरेहिं अणिरुद्धहो दिण्णु जउ वलु अवरेहिं अवरेहिं पंचसरु जं आयहो वलु तं णेक्कहो-वि तित्थंकर हलहरु कुसुमसरु अंकूर विओरहु गउ अवरु वण्णिय वलइं तहिं पंडवहं गोवद्धण-गरुय-भर-उव्वहणु 'कालिय-सिर-सेहर-दरमलणु जरसंध-कयंत वाण-दमणु अवरेहिं वण्णिउ सिणि-तणय-मउ हलहरेण पसंसिउ तित्थयरु ण मियंकहो अक्कहो सक्कहो-वि घत्ता पभणइ महुमहणु परिकुविय-मणु मइं चंगउ विक्कमु वुज्झिउ। अपमेय-वलु संभरइ छलु सो अच्छइ कवणु अ-जुज्झिउ॥ १० Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटुणेमिचरिउ [४] उप्पण्णु कोउ तो हलहरहो अहिखेउ ण किजइ जिणवरहो परमेसरु सव्व-जणत्ति-हरु तइलोक्कहो णाहु ति-णाय-धरु जइ कह-वि ण उब्भइ धरणियलु तो किं णासइ तहो तणउं वल जइ थाणहो ण चलइ मेरु-गिरि तो किं फिट्टइ तहो तणिय सिरि ण मुअइ मज्जाय समुद्द जइ तो किं ण होइ सरियाहिवइ जइ उप्परि पडइ ण घण-पडलु तो किं ण होइ तं गयणयल जइ पवणु ण दावइ अप्पणउं किं फिट्टउ घणहं झडप्पणउं जइ ण डहइ सिहि तो किं सु लहु जइ इह ण इंदु तो किं ण णहु घत्ता सच्चउ धीरिमउ गंभीरिमउ विक्खंभ-वलइंदुच्चालियइं। तावं जि सारइं गरुयारइं तवंतेहिं जावं ण मइलियइं॥ णारायणु पभणइ कोड्डु महु जाणिजइ कहो केत्तडउं वलु सक्कंदणु मज्जण-वालु जसु जसु ण्हवण-वीढु गिव्वाण-गिरि किर कवण केलि तउ तेण सउं पाविहसि जंण पत्तो सि हरि तुहं मसउ महा-गिरि णेमि-जिणु हेवाइउ महुमहण + र-मुरेहिं जुज्झेवउ सिवि-णंदणेण सहुं वलएवहो वियसिउ मुह-कमलु खीरोवहि-खीर-भरिय-कलसु कम-कमलेहिं वसइ तिलोय-सिरि ४ जो अव्वउ अक्खउ परम-पउ महु तणउं णिवारिउ कियउ वरि जुज्झेवउ कवणु वलेण विणु जरसंध-कंस-वाणासुरेहिं घत्ता अच्छउ विहिं रणु करि महु वयणु णह-कुलिस-कोडि-किरणुजलिय। तो तई सव्वु किउ तइलोक्कु जिउ जइ वलिय कुमारहो अंगुलिय॥ ९ जं एम पयंपिउ हलहरेण णं णिग्गय णाइणि चंदणहोणं तं वाह पसारिय जिणवरेण वज-सूइ सक्कंदणहो Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचाणवइमो संधि णं उक्क णहंगण-आयवहो णं करण-लट्ठि अइरावयहो णं णव-णीरहरहो विज्जुलिय णं भव-मयरहर-विरोलणिय णं भव्वाभव्व-गवेसणिय णं डाल महा-वड-पायवहो णं तडिणि महा-कुल-पावयहो णं जिणवर-धम्महो जीव-दय णं पुण्ण-पाव-भर-तोलणिय णं मोक्ख-मग्ग-दरिसावणिय ++ ++ +++ ++++ ++ घत्ता अच्छउ भुय-णय-लइय अइ-वलवइय कंचण-केऊरालंकिय। जिणहो जणद्दणेण महुमहणेण अंगुलिय-वि वलेवि ण सक्किय ॥९ ४ ८ णीलुप्पल-मरगय-सामलिय जंवलेवि ण सक्किय अंगुलिय तं मउलिउ महुमह-मुह-कमलु दसण-च्छवि-केसरु अहर-दलु गउ णाहु णिहेलणु अप्पणउं आढत्तु अणंतें मंतणउं असरालु वालु अपमेय-वलु ता अच्छउ वाहु-दंड-जुयलु जसु वलेवि ण तीरइ तज्जणिय सो वसुमइ हरइ महुत्तणिय ' संकरिसणु पभणइ कवणु डरु एहु धुउ वावीसमु तित्थयरु ण करेइ रज्जु तइलोक्क-गुरु इह भवे पावेसइ मोक्ख-पुरु हरि हरिसिउ तो वरि करमि तिहं अरेण तवो-वणु जाइ जिहं घत्ता जायव मेलवहो जले खेलवहो आढवहो कुमारहो परिणयणु। पेक्खेवि सावयई वहु-भय-गयई चिंतवइ जेण परिणिक्खवणु॥ [८] णारायण-मणे जं जेम थिउ अण्णहिं वासरे तं तेम किउ उववण-विहार-तूरइं हयइं जय-णंद-वद्ध-माण-सयइं हरि-वल पयट्ट उज्जेत-गिरि पेक्खणहं अउव्व वसंत-सिरि अणिरुद्ध-संवु-पज्जुण्ण गय अंकूर-विओरह-सिणितणय स-कलत्त दसारुह दस-वि जण अवर-वि जायव वण-रमण-मण ९ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरित चलियई सव्वई अंतेउरई सकलाव-सडोर-सणेउरई धय-चामर-छत्त-विहूसियई सवियार-वेससरमासियई भलउलई(?) ताम पधाइयइं गंधव्वई कहि-मि ण माइयइं ८ घत्ता मुहई विलासिणिहिं पिय-भासिणिहिं सिरिखंड-पंक-धवलीक्यिई। णिएवि ण भमर थिय अवहेरि किय कउ कमल-दसण-पयंकियइं॥ ९ [९] ८ विणिएवि णरिंदंतेउरई जायई रिच्छियइं भयाउरई हंसउलई कहि मि समुट्ठियई गइ-चोर होति जे दुट्ठियइं ण परिट्ठिय चक्कवाय णइहे ण पहुत्तणाई थण-संगइहे कमलई विमलई ण छज्जियई णं कामिणि वयण-परज्जियइं मलयाणिलु मुह-पवणाहिहउ तं देसु वि छंडेवि णाई गउ कलकंठिउ कल-कंठिहिं जियउ णीसद्दउ होएवि णं थियउ हरिणई णासंति पलज्जियई णं णारी-णयण-सोह-जियई सिहिउलई कलाव-किलामियई णं णट्ठई चिहुरोहामियई __ घत्ता अवयव-चोरियहिं विणु गोरियहिं वणे पइसेवि जाइं जियंताई। ताई पणट्ठाई उत्तट्ठाई अवरई वसंति णिच्चिंताई। [१०] कत्थइ दासेरउ आरडइ कत्थइ कंठाल-मलव पडइ कत्थइ मंदुरियहं कलहणउं उस्सारे तुरंगमु अप्पणउ महु तणउ तुरंगमु जाउ वरि मारेसइ णवर णरिंद-करि संकडए पंथे णं दोण्णि थिय अवरोप्परु पाडावाडि किय अवरहं पवहणइं पणट्ठाई । अवरें वलिवंडे घट्ठाई अवरहं कर-कंडई लग्गाई अवरहं रह-चक्कई भग्गाई अवरहं सेहरई विहट्टाई अवरहं आहरणइं तुट्टाई अवरहं पडियई कडिसुत्ताई अवरहं पावरणइं गुत्ताई Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचाणवइमो संधि ४ ८ घत्ता एवं पहाणएहिं तहिं राणएहिं बहु-कालेहिं लद्ध-सुसेवयहो। कडिएहिं कंठएहिं पडितुट्टएहिं किय पुज्जा णाई पह-देवयहो। [११] तओ तेहिं दिट्ठो गिरी उज्जयंतो करिंदु व्व चंदक्क-घंटा धुणंतो णरिंदो व्व दो-दप्पणे पेच्छमाणो महा-इंदणील-प्पहा-लिजमाणो दिणे सूरकंतग्गिणा पज्जलंतोणिसा-चंदकंतंवुणा पज्झरंतो तमालेल-कंकोल-कंकेल्लि-रिद्धो सुणासीर-णारी-रयंता-सुविद्धो दुरेहावली-कोइलालाव-रम्मो लया-मंडवोच्छाहिउच्छिण्ण-घम्मो समुत्तुंग-सिंगग्ग-लग्गंत-रिक्खो गुहा-गुत्ति-अंधारिया-दुण्णिरिक्खो पभिण्णेभ-दाणेण पक्खालियंगो विहंगावली-सेविओ भव्व-संगो महा-सिद्ध-खेत्तं पवित्तं पुराणं सिवादेवि-दायाय-कल्लाण-थाणं घत्ता मोक्ख-दुअक्खलउ जगे अग्गलउ अमुणिज्जइ णिरुवमु केण किउ। हरेवि तिलोय-सिरि उज्जेत-गिरि मंडणउं सुरट्ठहो होवि ठिउ॥ - [१२] गिरिदेक्कदेसे विमुक्कं पयाणं जलं सीयलं जत्थ वालाहियाणं पडिग्गाहिया वल्लरी मंद-दक्खा वि-पासाविया वेस रुद्दक्ख-रुक्खा लइजंति ठाया ठविजंति हट्टा विमुच्चंति मंजूस-माणिक्क-पेट्टा वणिज्जोवजीवी पसारंति सव्वं जिणाकारणा तस्स तं देति दव्वं एहविजंति सुस्साम-कण्णा तुरंगा जलं ति तंवेरमा तिमिरयंगा णिहम्मति खुंटा तडिजंति दूसा पुरोवारिया कामिणी लेंति भूसा तरिजंति अण्णा सिडिंगेहिं पच्छा रविक्का-विगुप्पंतरि च्छुट्ट-कच्छा दरुम्मिल्ल-णाही-अहोहुत्त-देसा गलंतीसि-धम्मेल्ल-घोलंत-केसा घत्ता दिण्णालिंगणउं पेल्लिय-थणउं अंगुलि-रय-लील-विलंवियउं । पाविय-सुह-रसउ मुच्छावसउ गंडयलेहिं णवर ण चुंवियउ॥ ९ ४ ८ ९ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ रिट्ठणेमिचरिउ तहिं अवसरे णेसरु अत्थमिउ अइ-दीहर-णह-पह-परिसमिउ णं जलणिहि-दहे दडत्ति पडिउ उडु-गणु सीयर-णियरु व चडिउ दस-दिसिहिं पधाइय तिमिर-छवि सूर-क्खए कहो अंधारु ण-वि वाहरिय परिट्ठिय जामिणिहिं आवाणउ किज्जइ कामिणिहिं दुमे दुमे अंदोलइ तरुणियणु महु पिज्जइ गिजइ महुमहणु तो चंदहो एक्क-कलुग्गमिय णं णह-वहु णह-वय-सोह थिय तले रइयई कुसुमत्थरणाई दिण्णइं पल्लव-उवहाणाई दंपत्तिई सुत्तई विब्भमेहिं गय सयल रत्ति रय-परिसमेहिं घत्ता उग्गउ ताम रवि जइ रयणि णवि हरि-काय-कंति-तम-ढक्कियइं। रयइं पसत्ताइं असमत्ताइं उग्घाडीकरेवि ण सक्कियइं॥ [१४] तो वण-विहारु पारंभियउ णर-णारि-णियरु पवियंभियउ क-वि केण सहु पयट्ट धणिय वण-हत्थि-गुत्त णं हत्थिणिय क-वि कहो-वि देइ मुह-मंडणउं क-वि कहो-वि देइ अवरुंडणउं क-वि कंपि रमेवउं सिक्खवइ क-वि कासु-वि णह-वय दक्खवइ ४ क-वि कासु-वि चुंवइ मुह-कमलु तंवोल-वहल-परिमल-वहलु ढिल्लारउं करेवि पइंधणउं . णं दावइ सव्वसु अप्पणउं काहे-वि केण-वि सहु रूसणउं क-वि करइ दूइ-संपेसणउं क-वि कहो-वि पउंजइ अणुणयणु गय का-वि स-णाह लया-भवणु ८ पत्ता णिएवि स-णेउरई अंतेउरई पल्लव-फल-फुल्ल-गहण-मणइं । वड्डिय-मुह-रसई कररुह-वसई णं वामणिहोएवि थियई वणइं॥९ _ [१५] मुहु णिएवि सवत्तिहे रत्तियहे क-वि काहे-वि कहइ महंतियहे मई काई हयासए जीवियए विरहाणल-जाला-लीवियए Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचाणवइमो संधि वरि वेल्लिहे तणउ सणेहडउ सा जइ पर मरणे ओसरइ क-वि कुसुमेहिं वंधइ वल्लहउ क-वि चूव-कुसुम-मंजरि खुडइ । काहे वि थणवट्टे लग्गु भमरु पल्लवियउ फलियउ फुल्लियउ जो को-वि अवरुंडिउ रुक्खडउ महु घइं पुणु पिउ अण्णहे वरइ मरु मारमि मरेण मरंति हउं सहुं ताए दुरेह-पंति पडइ णं थरहरंतु कंदप्प-सरु । णं वियउ जे लइउ णवल्लियउ लियर ८ घत्ता , मंद-मंद-गइउ मजण-मइउ गोविउ गोविंदाइ ठियउ। वण-विहारु करेवि जिणु करे धरेवि स-विलासउ सलिले पइट्ठियउ॥ ९ [१६] सव्वउ सव्वालंकारियउ परिभमिर-भमर-झंकारियउ सव्वउ फल-फुल्लालुद्धियउ कइयव-सोहग्ग-समिद्धियउ सव्वउ णव-जोव्वणइत्तियउ चंदण-घण-रसेण पलित्तियउ सव्वउ णह-दसण-वयंकियउ गंडुवहो वासालंकियउ सव्वउ झल-रवियर-तावियउ मयरद्धय-गुरु-णच्चावियउ सव्वउ परिसम-पासेइयउ कुसुमक्खलण-क्खय-खेइयउ सव्वउ सारंगि-परिग्गहिउ थण-भारोणामिय-विग्गहउ सव्वउ सहसत्ति णिवुड्डियउ णं जलेण लेवि अवरुंडियउ घत्ता भावालिंगणेहिं परिचुंवणेहिं जंणेमि-कुमारहो लग्गियउ। वरुणु विवोहियउ मणे मोहियउ णं जोयई करेवि विणिग्गउ । [१७] काहे-वि कडिल्लु उत्थल्लियउ णं वम्मह-तोरणु हल्लियउ काहे-वि उग्घाडिउ रमण-मुहु णं मोक्ख-वारु अपरिमिय-सुहु काहे-वि रोमावलि मंडविय णं अलि-रिंछोलि स-मंडविय काहे-वि दिट्ठई थण-मंडलई णं जल-मयगल-कुंभत्थलई काहे-वि मुह-पंडु समुट्ठियउ मउलेविणु कमल-संडु ठियउ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ रिट्ठणेमिचरित काहे-वि णयणुल्लउ विगय-मलु । णं वम्मह-हत्थ-भल्लि-जुयलु काहे-वि उब्भंगुर भू-लइय णं काम-चाव-लट्ठि लइय काहे-वि सिर-कमले रेणु पडिउ सेहरउ णवल्लु णाई घडिउ घत्ता काउ-वि हतियउ उप्पत्तियउ जं सलिलब्भंतरे दिट्टियउ। चंद-दिवायरहं मयणाउलहं णिय-णिय-कंतउ उट्टियउ॥ [१८] संकरिसणु केसउ णेमि-जिणु तिण्णि-वि रमंति मच्छरेण विणु गोविंदें सण्णिउ गोवियणु उद्धाइउ सरहसु रमण-मणु सिव-णंदणु सित्तु मणोहरिहिं रयणायरु जेम महा-सरिहिं जल-जंतेहिं सिंगेहिं अंजलिहिं गंडूसय-सयल-पणावइहिं चंदण-कप्पूर-करंवियई सव्वुसिण-जलेहिं अलि-चुंवियई अवरोप्परु हम्मइ उप्पलेहिं णव-कुसुमेहिं कोमल-कोपलेहिं अद्दद्द-महिसि-घण-कद्दमेहिं अवरेहि मि मणोरह-मद्दवेहिं णच्चिज्जइ गिज्जइ रम्मइ-वि णासिज्जइ उप्परि गम्मइ-वि घत्ता हरि-कुल-उप्पत्तियउ उप्पोत्तियउ सलिलंतराले जंण्हाइयउ। जिणेण दयालुएण लज्जालुएण णिय-कंतिए णं पच्छाइयउ॥ . [१९] उत्तिण्णई दिण्णई अंवरइं . अइ-हलुवई पिहुलई दीहरई णारायणेण जिणु सण्णियउ । जइ देवरु जइ-वि वहुण्णियउ तो काहे-वि उप्परि पोत्ति घिवे चरणेण करग्गें माहिं छिवे जंववइ तेण समल्लविय परिपीलणमंतरेण घिविय तो संवुहे मायरि कुविय मणे . णिब्भच्छिउ णेमि-कुमारु खणे जसु महि तिखंड चरणेहिं पडइ सारंगु जासु करे कडयडइ जो णाग-लोग-सेजहे सुवइ जसु पंचयण्णु मुहे घुग्घुवइ महु सो-वि ण पेक्खु देइ हरि को तुडं जो घिवहि पोत्ति उवरि ८ । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचाणवइमो संधि घत्ता दुव्वयणई सुणेवि अंगई धुणेवि रुप्पिणिए णिवारिय जंववइ । मं अहिधिवहि हले जिणे अतुल-वले कहिं लग्गइ तेरउ चक्कवइ ॥ [२०] - जिणेसरहो आरुट्ठो परममयरहरु जासु जल- विंदुवउ गयणयलु विहत्थी - मेत्तडउ - इह लोक्क - सिहरु जसु वइसणउं गिरि - मसयहं अंतरु जेत्तडउं किं परं ण दिड्डु णिय-दइय-वलु जहिं जिणेण पसारिय वाहुलिय तं रुप्पिणि-जंववइहिं तणउं को मल्ल जग-तय-सेहरहो गिव्वाण महागिरि कंदुवउ महि-मंडलु गोप्पर जेत्तडउ घत्ता गउ जिणु मणे धरेवि वणु परिहरेवि संखाउरणउं हरि पूरणउं होसइ सिद्धालए पइसणउं तित्थयर - रहंगिहिं तेत्तडउं जुज्झणहं समिच्छिउ करेवि छलु तहिं चलेवि ण सक्किय अंगुलिय णिसुणेवि अवरोप्परु हलहणउं *** इय रिट्ठणेमि - चरिए - धवलइयासिय सयंभुएव - कए पंचम ॥ स जणद्दणु स-वलु दुवारवइ । आढवइ सयं भुअणाहिवइ ॥ २९ ४ ८ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छण्णवइमो संधि - सिरि- रामालिंगिय देहेण धणु णामिउ जलयरु पूरियउ [3] तो कंदप्प - दप्प - रिउ - मद्दणु दिट्ठ तेण सा सज्झस-गारी अडइ-व वाणासण - संपण्णी तिणयण-तणु व सुअंग-भयंकरि जम-णयरि व वहु माणुस - मारी सुरगिरि-लच्छि व कणय- समिद्धी अट्ठमि अद्धचंद-दरिसावणि सरसी व चक्कालंकिय-देही पइसेप्पणु णेमि - कुमारेण दिई दूसइ परलोइय - । भीम भुयंग- सई जिएण ( सेज्ज - ठिएण ? ) । तिण्णि-वि एक्क - वार कियउ ॥ १ घत्ता [२] जहिं च वच्छंदतया जहिं विहत्थि - मत्तया वराहकण्ण- कण्णिया जहिं च पट्टसालया जहिं च थूणकेण्णया खुरुप्प - भल्ल - तोमरा तिसूल - सत्ति-सव्वला सुरासुरेहिं दिण्णया आउह साल ढुक्कु सिव- णंदणु - दणु-दप्प - हरण-पहरण - धारी सरवर-गय- सारंग - रवण्णी जिणवर - पडिम व णरय - खयंकरी आवण - पंति व पट्टिस- सारी पुन्नालि व पर- पुरिस-पइद्धी कुइ व सूईमुह-संकामणि पुणु-वि महाउह- साल जे जेही । दुद्दम - देह - वियारणई | दुरिसणाई इव पहरण || फणि व्व विप्फुरंतया करिंद - कुंभ- भेत्तया अय-वण्ण-वणिया - महा भुयंग मायया सुवण- विंदु छण्णया मुसुंढि कुंत मुग्गरा कुढार - खग्ग-लंगला अणेय भेय- भिण्णया - ४ ८ ९ ४ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छण्णवइमो संधि घत्ता सारंगु लउ जिण - णाहेण जइ वि महा-करि-कप्पणउं । गुणवंत मोक्खहो भायणु तं किं जिणहो अणप्पणउं ॥ [३] लइउ सरासणु एक्वें हत्थें विणि-वि लेवि जग-तय-सारउ तामणिवारिउ आउह-पालें संखुण पूरिज्जइ सामण्णें तिणि-वि सहइ णवर गोविंदहो आरक्खियहो धरंत-धरतहो वाम - करेण स-चरणंगुट्टे अवरें पंचयण्णु संभाइउ घत्ता फणिचूरि चाउ चडावियउ हरि - जलयरु परिपूरियउ । सो को वि णयरब्भंतरे [४] - घणेण वियंभिउ अंवरे गजिउ जलरु जिण - मुह-वाएं णं दुंदुहि देवाविय इंदें णं खयसंखुणफुण जइ पुणु सव्वायामें पूरइ तो- वि तुरंत तुरंगम तट्ठा जिणवर - वयण-पवण - पब्भारें णिहेलणु तुट्टई घर - सिहर जणु झूरिउ चलिय धराधरेंद धर डोल्लिय अवरें पंचयण्णु वीसत्थें किर सेज्जहिं आरुहइ भडारउ एउ चाउ ण चडप्पड़ वालें नाग - सेज्ज ण मलिज्जइ अण्णें दुसहई पर होज्जइ अमरिंदहो सुत्तु भुअंगम-तलिणे अणं हो चाउचाउ मणे परितुट्ठे चंदु विडप्पे णं मुहे लाइउ 1 - विहिन विसूरियउ ॥ णं खीरोवाहि मंदर - घाएं णं ओरालिउ पलय - मगिंदे विडिउ विज्जु-पुंजु णं महिहरे तं किरणेमि - कुमारहो खेलणु तो तइलोक्क - चक्कु मुसुमूरइ भग्गालाण महा-गय णट्ठा पडिय पओलिय समउ पायारें फणिवइ-फण- कडप्पु संचूरिउ चंदाइच्च स सज्झस झोल्लिय ३१ ४ ८ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता मज्जाय मुक्क भयरहरेण दिसउ फुडंति गयणु भमइ। करवालु लइउ गोविंदेण जाय विसंठुल वारवइ । तो जाणाविउ आउह-पाले पूरिउ पंचयण्णु हु वालें तुम्हहिं सव्व जेण सहुं कीलिय जसु जंववइए पोत्ति ण पीलिय तिहुयणु तेण कुमारे भामिउ मलिय भुवंग-सेज धणु णामिउ भणइ जणद्दणु कवड-सणेहउ हउं धण्णउ जसु भायरु एहउ जसु तइलोक्कु णमइ सव्वंगें तहो किर कवणु गहणु सारंगें जसु अंगुलिय-वि वलेवि ण तीरइ तासु भुवंगमेहिं किं कीरइ जो गिरि मेरु तलप्पइ चूरइ सो किं पंचयण्णु णाऊरइ मंछुडु जाय वुद्धि परिणेवए रमणि मणोहर- गणि रमेवए घत्ता जइ इंदिय-विसय-वसंगउ कह-वि तवोवणु परिहरइ । तो तिहुवणु अम्हहुं भुंजइ इंदु-वि परम सेव करइ ।। - अहो अहो कामपाल जग-सारहो किज्जइ पानिग्गहणु कुमारहो जाहं जाहं घरे काह-मि कण्णउ लढि-लायण्ण-वण्ण-संपण्णउ संजुगीण सुकुलीण पहाणा लहु मेलावहि ते ते राणा एम भणेवि गउ तहिं उच्छाहें पूरिउ पंचयण्णु जहिं णाहें ४ किय पसंस पर तुम्हहं छज्जड़ को अहि-सेज्जहिं अवरु णिमज्जइ कंवुअ-कंठु केण पूरिज्जइ केण सरासणु दुगुणीकिज्जइ अवरहो कहो एवड्डु परक्कम महिम-महणु भाउ वलु विक्कम णिग्गय वे-वि महाउह-सालहो णं गयवर गिरि-विसम-खयालहो ८ घत्ता वलु धवलउ मज्झे परिट्ठियउ कसणहं जिण-णारायणहं । लक्खिजइ जायव-लोएण चंदु णाई विहिं णव-घणहं ।। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छण्णवइमो संधि ४ तो संकरिसणेण पिय-पुव्वेहिं लेह-जोह-पाहुडेहिं अउव्वेहिं संमाणिय णरिंद ते आइय णाणाविह-वाहणेहिं पराइय अंतेउरेहिं विलासिणि-सत्थेहिं मालइ-माला-कोमल-हत्थेहिं वत्थाहरण-विहूसण-वित्तेहिं . चामर-छत्त-चिंध-वाइत्तेहिं दुसावासेहिं विविह-पयारेहिं कोस-महाणस-कोट्ठागारेहिं मंदुर-हत्थिसाल-सुहि-सालेहिं छप्पर-चउरी-घरेहिं विसालेहिं चच्चर-हट्ट-मग्ग-चउहट्टेहिं पण्ण-फुल्ल-फल-संखा-टिंटेहिं दोसिय-गंधिय-गंधव-सारेहिं । कंदुइ-पेडइएहिं पसारेहिं णरवइ णिरवसेस आवासिय चंदाइच्च-णाग-णल-वंसिय घत्ता छड-तोरण-मंडव-कणिसेहिं रंगावलियहिं मंगलेहिं । आढत्तु विवाहु कुमारहो आयहिं लीलहिं हरि-वलेहिं ।। [८] अणेत्तहे पेसिय वर तलवर तेहिं सयल मेलाविय वणयर वल्लरि-कंटय-रुक्ख-सहासेहिं तट्टी-वेढउ किउ चउ-पासेहिं हंस-मइंद-चक्क-मय-मोरहं खमइ कोपि किं अवयव-चोरहं मई धर धरिय भणेवि वोलंतउ सूयारु तेण णाई दुहु पत्तउ मई ससहरे णिय णाउं चडाविउ ससउलु तेण णाई संताविउ सुरवाहण-गव्वेण महाइय वणयर तेण णाई संताविय णक्क-गाहोहार-रउद्दहो अम्हेहिं कड्डिय वेय समुद्दहो अलिय-अवग्गल-दुण्णय-भरियइं तेण णाई मीण-उलइं धरियइं घत्ता खडु खंतई वणे णिवसंतई अवर-तत्ति-परियत्ताई। णिद्दोसइं आमिस-कारणे मिगइ मि वंधु ण पत्ताई ।। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ रिट्ठणेमिचरिउ अण्णहिं वासरे णयणाणंदिरे खेड भमाडिय मंदिरे मंदिरे लेंतु पसाहणाई णर-णारिउ रय-विलासु विलसंतु कुमारिउ पेक्खणाई दावेंतु सु-वेसउ जिह विजुलउ फुरंतु असेसउ कंचण-मंचेहिं ठंतु पहाणा जे विवाह-संबंधिय राणा अक्खिउ जेवं तेवं संसारिउ किउ तासु-वि वड्डियउं णिरारिउ थामे थामे तोरणइं णिवद्ध थामे थामे गेयई पारद्धई थामे थामे थिउ णायरिया-यणु का विहि पेक्खेसहुंणारायणु का विहि णेमि-रूउ जोएसडं भव-किय-दुक्किएण मुच्चेसहुं पत्ता पवणुद्धय-धय-मालाउल णिएवि मणोहर वारवइ । का विहि कुमारु घरु एसइ थिय पसाहणे राइमइ । [१०] दविड-कण्णाडि-अंधीहिं परिवारिया कामएवेण णिय रइ व संचारिया भूरि-परिभमिर-भमरोह-झंकारिया सग्ग-भट्ठच्छरा इव्व ओयारिया सक्क-रायग्ग-महिसी-समुप्पण्णिया रूव-सोहग्ग-लायण्ण-संपण्णिया हार-केऊर-कंची-कलावंकिया णव-तुलाकोडि-मणि-कुंडलालंकिया ४ सिग्गिरी-छत्त-पालिद्धओहाउला णाह-कर-मेलणा मयण-उक्कंठुला पत्त सत्तट्टमी-वम्महावत्थिया णिमिय-पडिमालणा-सार-असमत्थिया तिव्व-विरहग्गि-जाला-पलित्तंगिया कमल-कंकेल्लि-णव-पल्लवालिंगिया चंदणद्दद्द-कद्दम-जलद्दोल्लिया चामरुक्खेव-पड-वायण-रंखोल्लिया ८ घत्ता तहिं अवसरे पुर-वाहिरे कलयलु वहलु समुच्छलिउ। हरि-हलहर-णेमि-भडारउ विहव-णिहालउ उच्चलिउ ।। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छण्णवइमो संधि ३५ [११] तिण्णि-वि रहवरेहिं तिहिं चडिया सगहो सक्क तिण्णि णं पडिया सोलह-आहरणालंकरिया तिण्णि-वि विजु-पुंज णं फुरिया तिण्णि-वि णिग्णय पच्छिम-वारें हय-गय-रह-णरिंद-पब्भारें सिगिरि-धयवड-चामर-सोहें चलिया पालिद्धय-संदोहें काहल-संख-मुइंग-णिणदें मागह-सूय-वंदि-जय-सदें जोइय चउ-दुवार दारावइ धणय-णयरि आवासिय णावइ दिट्ठइं णंदण-वणइं विचित्तई पण्ण-फुल्ल-साहाराइत्तई दिट्ठ समुदु तरंग-तरंगेहिं णच्चिउ णं कल्लोल-वरंगेहिं छत्ता महु तिण्णि-वि आइय पाहुणइं वलु णारायणु तित्थयरु । मणि-रयण-महग्घ-विहत्थउ णं थिउ अग्गए मयरहरु । [१२] परिभमंत गय तिण्णि-वि तेत्तहे कंचण-मंचेहि थिउ जणु जेत्तहे दिट्ठउ जुवइउ जोव्वणइत्तिउ णं सीयालए दिणयर-दित्तिउ सव्वाहरण-विहूसिय-देहउ णं फुरमाणउ ससहर-लेहउ कूर-पिक्क-विंवा इव वालउ सव्व-जुवाण-जणाणिय-लालउ णं अहिणव-विज्जउरछल्लिउ(?) णिसिय णाई मयरद्धय-भल्लिउ दिट्ठउ णर-विजाहर-दुहियउ पुण्णिम-इंदु-मणोहर-मुहियउ ताहि-मि दिट्ठ भडारउ एंतउ दस-विह कामावत्थउ देंतउ हरि दक्खवइ देव तुहारी दीसइ उह राइमइ भडारी ४ घत्ता णव-जोव्वणु णाह तुहारउ मणहरु एहु कलत्तडउ। सुहि अम्हई वल-णारायण फलु संसारहो एत्तडउ । तो जाणिय-परमागम-सारे वय-विट्टतरे मुक्ककंदहो विविह-णिरिक्खण-णेमि-कुमारे सद्दु सुणिज्जइ वणयर-विंदहो Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ संवर-पसव-रोज्झ-सस-सूयर णं पिसुणंति रक्ख परमेसर अम्हई णिरवराह विणिवाइय गुत्ति-वासे गिंभे इव ताविय पुच्छिउ सारहि परम-जिणेदें वणयर धरिय काइं गोविंदें आएहिं कवणु कज्जु भणु पेक्खहुँ जम्माउव्वु जेण वरि सिक्खहुं सूएं सूइइ जइ-वि ण रुच्चइ सामि पसुहं वासउ एहु वुच्चइ वणयर हणेवि णियंतहं तुम्हहं दिजउ मंसु सयल-सामंतहं वइयरु कहिउ जं जे जत्तारें धुणियइं अंगई णेमि-कुमारें घत्ता रहु धरहि तुरंगम खंचहि अवसरु को जाएवाहो। जहिं एक्कु-वि जीउ णिहम्मइ तहो णिवित्ति परिणेवाहो ॥ [१४] खंचिउ रहवरु तो जत्तारें पुणु पुणु वुच्चइ णेमि-कुमारें सारहि सुहइं असउ जइ एहउ दुहइं असउ पुणु होसइ केहउ जीव वहेविणु जहिं परिणिज्जइ तिण कांई संगेण वि किज्जइ अच्छउ कण्ण-करंगुलि-धारणु आरंभु जे संसारहो कारणु अच्छउ भोयणु तं आवग्गउं आपोसणु पढमु गले लग्गउ अच्छउ विसु जं जेण मरिज्जइ माणसु गंधेण जे धारिज्जइ अमिय-महारसु दुक्ख-द्दारहं णारि-णिमित्तु मोक्खु संसारहं चउ-गइ-भव-गमणु जे जइ रम्मइ परिहरिए पर-लोयहो गम्मइ पत्ता जो आइउ जेण दुवारेण पडिमउ तं दुवारु रमइ। सो अहिणव-गंधायड्डियउ पंकय-भमरु जेम मरइ ।। [१५] भव-भय-लक्खुप्पाइय-डाहें होउ होउ महु सरिउ विवाहें जहिं विणासु वणयरहं वरायहं सस-सारंग-तुरंगुग्घायहं अपरिग्गह-तणु-तोयाहारहं सिंग-खुरट्ठि-रोम-णीसारहं जिह जिह णाहु विसायहो वच्चइ तिह तिह मणे णारायणु णच्चइ ४ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छण्णवइमो संधि ३७ अज्जु समुद्दविजय-सिह भग्गी अज्जु जाय महु मही आवग्गी ताम णेमि-किय-कारिय-सेवहिं पडिवोहिउ लोयंतिय-देवहिं साहु साहु चिंतविउ महत्तरु एउ णिरवज्जु कज्जु लोगुत्तरु पिय-हिय-वयणु जणिय-जण-उवसमु एवहिं वहउ तित्थु वावीसमु घत्ता मेल्लाविय जीव जिणिंदें तिह वुच्चइ तहुं आरक्खियहुं । धणु दिण्णु सयं भुव-दंडेहिं दीणाणाहहुं दुक्खियहुं॥ ८ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-संयभुएव-कए छण्णवइमो सग्गो॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ताणवइमो संधि वसु वसुमइ छत्तरं वइसणउं उम्माहउ वारवइहे करेवि [3] भइ देह - भारु अजरामर - पुर- परमेसरेण लइ माए खमेज्जहि जामि तेत्थु जहिं सण सुम्मइ इंदियाहं - हिं इण विज्झइ णारि-रूवे कालिंद-भुवंगमु जहिं ण खाइ जहिं वेज्झु ण वेज्झइ अहिमुहेहिं जहिं जीवहो जीविउ सयल-कालु घत्ता आवासु करेवउ माइ मई अच्छणहं ण सक्कमिहत्थु हउं सव्वई मेल्लेवि जेम तिणु । गउ उज्जेतहिं णेमि - जिणु ॥ [२] लइ जामिमाए मं करि अवक्ख चउ-गइ-संसारावत्थ दिट्ठ सहियई दुक्ख णाणाविहाई अच्छिउ अणेय - सायर- पमाणु अच्छिउ वहु- समयई अणुससंतु अच्छिउ पज्जालिए जलण-जाले अच्छिउ वइतरणिहिं रुलुघुलंतु अवर - वि दरिसाविय दुक्ख लक्ख आउच्छिय जणणि जिणेसरेण उप्पत्ति-जरा-मरणई ण जेत्थु ण कसायहं मह - रिसि-निंदियाहं किमि-कीड-कुरुड-आसार-सारु डिज्जइ जहिं संसार - कूवे जम-काउ करोडिहिं जहिं ण ठा माणुसु मउ दुक्ख - सिलीमुहेहिं जहिं वसइ एक्कु पर सिद्ध- - कालु तहिं अजरामर देसडहिं । भव-संसार - किलेसडरं ॥ d हिंडिउ चउरासी - जोणि- लक्ख अणुहवि र णारयहं पिट्ठ गिव्वाण - महागिरि-सण्णिहाई जिह गोंदल झिंदुउ हम्ममाणु गिरि - चप्पिउ सिरे अंगई धुणंतु असि - सम-असिपत्त-वणंतराले खारुण्ह - कसायई जल पियंतु कंदंतह केण वि ण किय रक्ख - ४ ४ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rashif घत्ता णारइय- घाय- - घुम्मा वियउ उज्जेतहो जंतर माए - हउं [३] रय-समुद्दत्तिणएण तं कवणु दुक्खु जं मई ण पत्तु सो कवण जोणि जेत्त ण छुटु तं व विंधणु जहिं ण वद्धु तं कवणु सलिलु जगे जो ण धाउ तं व जंतु जेत्तण छुण्णु हम्मंतु हणंतु मरंतु जंतु मेल्लंतु लयंतु कलेवराई अज्जु - वि सुमरमि मुच्छणउं । तेण करमि आउच्छणउं ॥ घत्ता अद्भुवहे असारहे असरणहे कह-कह-व लडु मणुयत्तणउं [४] मणुयत्तणे तहि-मि महंतु दुक्खु विवरीय - सरीरु अणालवालु खंधोवखंध- १ -भुव-दंडड-डालु कर-पल्लव-ह- णव - कुसुम - भारु दुम्महिल-दु-लय-आलिंगियंगु दुवंधव - दुप्पारोह- वद्धु पंचेंदिय-चोर-गणावयासु धम्मु पावो ण भाइ जच्चंधु णउंस पंगुलउ उप्पण्णु अय- भवंतरेहिं घत्ता पुणु तिरिय - गइहे उप्पण्णएण जो कवणु पसु ण जहिं विहत्तु तं कवणु कलेवरु जं ण वूदु सो कवणु तिणंकुरु जं ण खद्ध सो कवणु सुजेत्तण जाउ तं कवणु कलुणु जं मई ण रुण्णु खज्जंतु खंतु दुक्खई सहंतु अच्छिउ अणेय जम्मंतराई तिरिय - गइहे कह तणउं सुहु । जामि माए मरिसिज्ज तुहुं ॥ जं जणु अम्हारिस- चंग - चक्खु सिर- केस - परिट्ठिय-मूल-जालु दुव्वयण- तिक्ख- कंटय करालु परमाउ- णिवंधणु परम - सारु ४ दुणंदण - दुष्फल - णिवह संगु दुव्वाहि-जरुदें हियहिं खड दुव्विसह विसय-विसहर - णिवासु कोहग्गे इज्झेवि खयहो जाइ - दूहउ जणणि- विवज्जियउ । तेण माए गमु सज्जियउ ॥ ३९ ८ ८ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० [4] देवत्तणे हि - महंतु दुक्खु जं दीस सक्कहो तणिय रिद्धि जं फलु विलसिज्जइ अच्चइण्णु भग्ग-क्खए जं णिय-था-भं सोहग्ग- रूव - संपय-पवण्ण जं छिवणु ण लब्भइ जम्मवारु अण्णण्ण-अण्ण-सुरर- भायणेहिं सय-वार- दिण्ण-परियत्तणेहिं घत्ता सव्वहं मणुयत्तणु वड्डिमउं जेण विढप्पइ मोक्ख- सिरि । णिव्विण्णउ दुक्ख-परंपरहिं तेण जामि उज्जेत - गिरि । [६] णव मास वसिउ तउ तणए देहे हरि - हलहर भायर वे - वि दिट्ठ मई खपि खमंतु असेस- बंधु आउच्छिय जणणि जिणेण जं जे मुच्छा-विहलंघल सिढिल-गत्त पव्वालिय चंदण-कद्दमेण विज्जिय चामीयर - चामरेहिं कह-कह व समुट्ठिय लद्ध चाय - घत्ता ताई आपइं मई हए किलेसहो भायणए [७] तुहु सुंदर सुंदर वालु वालु अज्ज - वित्तंगु ण रज्जु भुत्तु उप्पज्जइ जं जिउ होइ रिक्खु किज्जइ पडिहारिहिं पडिणिसिद्धि जं को -विण अच्छइ अणवइण्णु जं लग्गइ सिरे पर-पाय- पंसु जं सुरह - मिसुर वुज्झंति अण्ण को विसवि सक्क तं णिरारु माणसिय- दुक्ख - उप्पायणेहिं किं माए तेहिं देवत्तणेहिं वीमि समुह विजय - गेहे वोल्लाविय सण विट्ठि इट्ठ ओड्डेव संजम - भरहो खंधु सिवएवि महीयले पडिय तं जे कह-कह-व ण मरणावत्थ पत्त कप्पूर - पउर-परिमल - खमेण उक्खेवेहिं पडेहिं पडावरेहिं स- कलत्त दसारह तहिं जि आय माय वुत्तु रुवंतियए । पावए काई जियंतियए ।। -वि पावज्जहे कवणु कालु ज - वि तूले ण पल्लंके सुत्तु अज्ज-1 अज्ज रिट्टणेमिचरिउ ४ ४ ८ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ सत्ताणवइमो संधि अज-वि ण उंजिय राय-लील -वि कंदुय-सलीलुजाण-कील अज्ज-वि णारूढु तुरं. मेहिं अज-वि ण चडिउ तंवेरमेहिं अज-वि छत्तई ण समुब्भियाइं अज-वि चिंधई ण वियंभियाई अज्ज-वि जंपाणेहिं ण-वि वलगु अज्ज-वि पर-गरहं ण माणु भगु नज-वि राइमइहे करे ण लग्गु तहे तणे फंसणे सा पिवग्गु अज्ज-वि जोइयई ण पेक्खणाई अज्ज-वि अंगई सुह-लक्खणाई अज्ज-वि चंदणहं ण पूर आस अज्ज-वि ण दिट्ठ एक्क-वि विलास घत्ता जो णिवडिउ केण-वि विहि-वसेण जहिं धुर धरइ ण जक्ख-सरु । तहिं तुहुं कुल-धवलु महु-त्तणउ खंधु देवि उतारु भरु ।। [८] नहुं हरि वलु तिण्णि-वि जगहो णाह तुम्हेहिं तिहिं होतेहिउं सणाह तुम्हेहिं तिहिं होंतेहिं विजउ अज्जु तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं सयलु रज्जु तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं रयण-रिद्धि तुम्हेहिं तिहिं होतेहि परम सिद्धि तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं तिण्णि लोय वेवंति देति करु दाण-भोय तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं सयल देव दिवे दिवे करंति पर मोवसेव तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं दस दसार तियसह-मि रणंगणे दुण्णिवार तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं जमु जे भीरु तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं जलु जे खीरु तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं महि सुवण्णु तुम्हेहिं होतेहिं तिणु जे धण्णु घत्ता तुम्हेहिं तिहिं होतेहिं एत्थु पुरे दिहि मंगलु सव्वहो जणहो । अणुहुंजइ काम-भोय-सुहइं पुत्त म जाहि तवोवणहो । ८ परमेसरु पभणइ माए माए णिय-पुत्त-कलत्तइं गामे गामे सस-दुहिय-जणेरिउ जाउ जाउ छंडियई सरीरइं जाइं जाई एक्कोयर भायर थाए थाए वहु-वंधव-सयइं थामे थामे केत्तियउ गणेसहुं ताउ ताइ भुवणंतरे मंति ण ताई ताई Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ जइ केण-वि रइयाहार-रासि तो मेरु महा-गिरि होंतु आसि परिपीयइं सलिलई जेत्तियाई रयणायरु दुक्करु तेत्तियाई केत्तियहं करेसमि परम-णेहु को कासु सव्वु वामोहु एहु कहो तणिय माय कहो तणउ वप्पु +++++++++++++ घत्ता उज्जेतहो सिहरे समारुहेवि घोरु चरेवउ तव-चरणु । उप्पज्जइ केवलु णाणु जिहिं छिज्जइ जाइ जरा मरणु॥ मलाइ सिवएवि पयंपइ धुणेवि देहु तुहुं वालउ अंगई कोमलाई णं सहति महा-मल-पडल-धरणु इंदियई होति अइ-दूसहाई दुप्पालई वयई कसाय घोर जीवहो जीवत्तणु भूय-गामे ण मरंतु को-वि अणुहवइ सुक्खु अण्णाणु ण जाणइ अंतराले तव-चरणहो अवसरु कवणु एहु अज-वि कुवलय-दल-सामलाई सज्झाय-झाण-तव-णियम-करणु विसमइ वावीस परीसहाई .. चोरंति चरित्तइं विसय-चोर दीसइ अण्णेहि-मि ण कहि-मि थामे णउ जीवमाणु परिसरइ मोक्खु सिद्धतणु कउ एत्तडए काले ८ पत्ता तो वुच्चइ णेमि-भडारएण जइ अण्णाणु जीजु मरइ । तो किं अम्हारिसु को-वि णरु दस जम्मतरु संभरइ ।। जीवहो जीवत्तणु सयल काल जिह अग्गि अणग्गि व धुंधणेण वज्झइ परमाणु पुरोगमेहिं परिणाम-कम्म-देहिदिएहिं गब्भावयार-वालत्तणेहिं अवरेहि-मि अवत्थहिं वहुविहेहिं जीविउ जीवइ जीविसइ जेण संसारिउ वहइ सरीर-माल तिह जीउ अंजीउ व वंधणेग मिच्छत्त-कसायासंजएहिं अवरेहिं असारेहिं णिदिएहिं वालय-जुवाण-वुढत्तणेहि अहिणव-मुइंग-कक्कर-णिहेहिं जीवहो विणासु ण कयावि तेण Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ताणवइमो संधि अच्छंतु ताम वहु-सुमरणाई हउं सुमरमि दस-जम्मतराई घत्ता विंझाहिउ इब्भकेउ अमरु चिंतागइ माहिंदु पुणु। अवराजिउ अच्चुय-वसुहवइ पुणु जयंतु पुणु णेमि-जिणु ॥ [१२] उप्पणउं तइयहुं मगह-देसे अइ-विसम-विसमे कंदर-पवेसे तइयहुं हउं विंझे किराय-राउ वग्गुर-जाया-वरु धणु-सहाउ परिसक्कमि जाम वणंतराले गिरि-गहणे महा-दुम-वेल्लि-जाले उम्मग्ग लग्ग जिह वण-गइंद विमलामल-वुद्धि-महा-रिसिंद. ४ किर हणमि वे-वि विहिं सरेहिं जाम णिय-कंतए करयले धरिउ ताम सुणि राय-महा-गिह-रिद्धि-पत्तु किं सेट्टि ण-याणिउ रिसहदत्तु जउ पउम-संख-महकाल-काल चउ-णिहिय णिहेलणे सव्व-काल सो आयह अइ-पेसणु करेइ . आहार-दाणु अणु-दियहु देइ ८ वणयर ण होति रिसि उग्ग-तेय गइ कवण लेहसहि हणेवि एय घत्ता तं वयणु सुणेवि विंझाहिवेण स-सरु सरासणु छंडियउं । पुणु लइयइं पंचाणुव्वयई जेहिं भव्व-कुलु मंडियउं॥ [१३] गय जइवर जायइं सावयाइं दोहिं य पालियइं अणुव्वयाई एक्कहिं दिणे तुंबुरु-तरु-फलाइं वीणिय परिपक्कइं विरलाई अहि-भवण-भरोलिहिं एक्कु णटु तमि लिंतु काल-सप्पेण दट्ठ उप्पण्णु णियाण-णिवंध-हेउ सुउ पउम सिरिब्भहं इब्भकेउ जियसत्तु णराहिउ तहिं जे थामे सुप्पहा-महएवि रइ व्व कामे कमलप्पह दुहिय सयंवरेण पोढत्तणे परिणिय वणि-वरेण अवरुद्धी णवर वसंतसेण तहिं तणय जणिज्जइ पत्थिवेण णामेण मगहसुंदरि कुमारि अवइण्ण जुवाणहं णाई मारि णच्वंतिहे ताहे विचित्त-वेउ हक्कारउ पेक्खइ इन्भकेउ ४ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ पुप्फयलि वियसइ सूइ-संगे उदंड वाय णह तिलय-भंगे घत्ता पोमाइय पच्छए णच्चणिहे विसमिउ सो सुह-वंधणेण । अवरोप्परु ताहं विवाहु किउ राएं धण-मणि-कंचणेण ।। [१४] तो मंदिरे थविराइरिउ आउ संघाहिउ दूरज्झिय-कसाउ तहो पावहो पा-मूले वसंत वेवि वणि-पत्थिव गय पावज लेवि वइसारिउ वइसणे इब्भकेउ थिउ रज्जु करंतु समुग्ग-तेउ मंतित्तणे धीवरु थविउ जं जे परिपुच्छिउ मंदिरे थविरु तं जे | कहि पुव्व-भवंतरे कवणु एहु उप्पण्णु जेण महु गरुउ णेहु परमेसरु कहइ ति-णाण-धारि किं मुणहि ण वग्गुर णियय णारि जइयहुं तुहुं होंतु किराय-राय ___जइयहुं विमलामल वुद्धि आय तइयहुं दरिसाविउ धम्म-मग्गु तुवुरु कतहो उरउ लग्गु घत्ता तइयहुं णिय-मरण-मणहरए विहव-भाय-भय-भंगुरए। आसीविसु विसहरु वसइ जहिं गमिउ हत्थु तहिं वग्गुरए ।। [१५] सा-वि दट्ठ वे णट्ठ वणंतराले उप्पण्णु मंति एहु एत्थु काले तं वयणु सुणेवि मगहाहिवेण किय घर-परियणहो णिवित्ति तेण णिय-सुयहो सुकेउहे दिण्णु रज्जु सयमेव अणुट्ठिउ णियय-कज्जु तव-चरणु चिण्णु जइणिंद-मग्गे उप्पण्णु मरेवि सोहम्म-सग्गे सिरिदेउ ++ णिलए विमाणे एक्वुहि-आउ-परिप्पमाणे कमला-महएवि तवध-साणे(?) विमलप्पहु विमलप्पह-विमाणे उप्पज्जइ विजुप्पह-विमाणे सो मंति सयंपहु तहिं जे थाणे तिण्णि-वि वहु-कालंतरेण आय एकोयर भायर णवर जाय ४ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ताणवइमो संधि घत्ता पुक्खर-वर-दीवहो पच्छिमए मेरु-गिरिहे दाहिण-दिसए सीओय-महाणइ-उत्तरेण तहिं गंधमालिणि-विसए॥ [१६] वेयड्ढ-महागिरिहे पहाणु विज्जाहर-लोय-णिवास-थाणु तहो उत्तर-सेढिहिं पहाण-णयरु सुरप्पहु +++++ जे खयरु पिय धारिणि तहो सुय जाय एय । चिंता-गइ मण-गइ चवल-वेय अच्छंति कुमारत्तणेण जाम एत्तहे जे अरिंदम-णयरे ताम णामेण अरिंदमु खयर-णाहु सोहग्ग-रूव-संपय-सणाहु तहो अजियसेण णामेण देवि सुहवत्तणेण थिय जगु जिणेवि पियसुंदरि तहे उप्पण्ण दुहिय छण-इंद-रुंद-अरविंद-मुहिय पडिघडेवि ण सक्कइ विहि-वि जाहे वप्पे वि समत्थु को पडिम ताहे घत्ता . गिरि-मंदर-सिहरहो परिघिवेवि माल ण पावइ जाम करु। मेरु ति-वार पासेहिं भमेवि जो गेज्झइ सो ताहे वरु॥ ४ विज्जाहर भग्ग पवंड जे-वि जिय-मण-गइ चवल-गइ-वि ते-वि चिंतागइ भायर अवसरेण गउ लइय माल णिविसंतरेण अवगणिय सुंदरि जइ-वि आय तुहुं अम्हहुं वट्टइ भाउजाय कण्णए वर-वयण-परज्जियाए सोहग्ग-मडप्फर-वज्जियाए पव्वज्ज लइय दम-वर-णिवासे गणिणिहे णिव्वुइ-कंतियहे पासे वर तिण्णि-वि तहिं जे गुरुत्तमंगे तउ करेवि मरेवि उप्पण्ण सग्गे माहिंद-कप्पे सामण्ण देव णिवसेवि सत्तंवुहि-समय एव ते विण्णि-वि मणगइ चवलवेय उप्पण्ण अमियगइ अमियतेय घत्ता गिरि-मेरुहे जंवूदीवहो तियसाहिवइ-महा-दिसए। सीओय-महाणइ-उत्तरेण विउले पुक्खलावइ-विसए । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ रिट्ठणेमिचरिउ [१८] वेयड्ढ-महीहरु तहिं पगासु तहो उत्तर-सेणिहे रिद्धि-पत्तु गयणाय-णराहिउ चंदवम्मु गयणाइ-देवि सुंदरि-विराम उप्पण्ण वे-वि णंदण अजेय एक्कहिं दिणे हक्कारेवि जणेरु तो णिएवि महीहरु परम-रम्मु पियसुंदरि होती एत्थु आसि विजाहर-लोयहो तहिं णिवासु गयणाय-णयरु वल्लह-पयत्तु जसु हियए ण फिट्टइ परम-धम्मु लायण्ण-रूव-सोहग्ग-थाम णामेण अमियगइ-अमियतेय गय वंदणहत्तिए णवर मेरु संभरिय कुमारेहिं पुव्व-जम्मु सोहग्ग-रूव-गुण-सील-रासि ८. घत्ता विज्जाहर-चक्कहं सयलह-मि ताई सयंवरु आढविउ। सहुं भाइहिं भायरु अप्पणउ सव्वाहरणई छंडियउ।। ४ हा चिंतागइ गुण-रयण-रासि कहिं अम्हइं मिल्लेवि गयउ आसि कहिं सग्गहो होतउ चविउ एत्थु दीसिहसि सहोयरु अज्जु केत्थु पई विणु अम्हहं कवणु गव्वु णिय-वइयरु जणयहो कहिउ सव्वु कुढे लग्ग सहोयर भायरासु गय पासु सयंपभ-जिणवरासु पणवेप्पिणु पुच्छिउ तेहिं एवं चिंतागइ कहिं उप्पण्णु देव परमेसरु पभणइ तेत्थु काले इह जंवुदीवब्भंतराले मेरुहे पच्छिमेण दिसावरेण सीओय-महाणइ-उत्तरेण घत्ता मणहरे सुगंधि-गंधिल-विसए सीहणयरु णामेण पुरु । तहिं अरुहयासु विसयाहिवइ सग्गहो णं अवइण्णु सुरु॥ [२०] जिणयत्त पाणवल्लहिय तासु रइ कामहो सइ व पुरंदरासु अण्णहिं दिणे देवि सुआणुराय गय तेत्थु जेत्थु जिण-पुज जाय सासण-देविहे णिवद्ध दामु महु पुत्तु होउ जगे णाय-णामु Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ताणवइमो संधि वहु-दिवसेहिं सिविणा पंच दिट्ट अहिसेउ महा-रिसि-देवयाए थोएहिं दिवसेहि उप्पण्णु पुत्तु अपराजिउ णामेण णाय-णामु परिणिज्जइ पियमए पोढ-भावे परमेट्ठि पराइउ स-रिसि-विंदु हरि करि रविंदु जंपाण इट्ठ किउ कंचण-कलसु दुवारे ताए लक्खण-विण्णाण-कलाए जुत्तु सोहग्गे णं पच्चक्खु कामु अण्णहिं दिणे दूरोसरिय-पावें णामेण विमलवाहणु जिणिंदु घत्ता तहो पाय-मूले पहु पव्वइउ रज्जु देवि अपरज्जियहो । णिय-पुत्तहं पंच सयहं सहिउ गउ देसहो भय-वज्जियहो। [२१] उत्तमे गंधमायणे गिरिंदे अइकंते विलमवाहणे जिणिंदे अण्णु-वि उवसंतए अरुहयासे अबराइउ उट्ठिउ अट्ठोववासे उव्वाहुलु धाहा-वाह-वयणु अणवरय-खणंसु-जलोल्ल-णयणु आहारु ण गेण्हइ जिणे अइढे उप्पण्ण चिंत ता सुर-वरिढे ४ वासवेण विणिम्मिउ समवसरणु स-विमाणु स-तोरणु भोय-करणु गिरि-गंधमायणुत्तुंग-सिंगे कल-कोइल-कलयले-मिलिय-भिंगे जिण-विमलवाहणहो पडिम लेवि किउ सहसकूडु णिय-णयरु लेवि घत्ता तो अच्छइ रज्जु करंतु तहिं लहेवि महा-मंडलिय-सिय । तीसमए दिवसे तहो धुउ मरणु जं जाणहो तं करहो किय ।। [२२] तो अमिय-महागइ-अमियतेय दिक्खंकिय गय मण-पवण-वेय अपरजिउ रज्जु करंतु दिङ तिहिं जेम सयंपह-जिणेण सिङ अंतेउरु अट्ठ सहास-मेत्तु हल-कोडिहिं पाएं वहइ खेत्तु पाउण-कोडि घरे घेणुयाहं सेवंति अट्ठ सहसई णिवाहं कोडिउ चउरद्ध तुरंगमाहं । लक्खेक्कवीस तंवेरमाहं सावोग्ग-महागय जेत्तियाहं सोवण्ण-महारह तेत्तियाहं Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ रिट्ठणेमिचरिउ ८ णिहि-रयण-चउत्थ-चउत्थ-भाउ चक्कवइ-अद्ध-अद्धाहिराउ परमाउ परिट्ठिउ पुव्व-कोडि अणुहारिएणं विहि तइया फोडि घत्ता जेत्तडिय विहूइ णराहिवहो विहि महरिसिहि-मि तेत्तडिय मासावसाणे जं मरणु थिउ पर असुहच्छी एत्तडिय ॥ [२३] पक्खेवि रूवई सुह-दसणाई रिसि वंदिय दिण्णइं वइसणाई एहु पभणइ पुलउब्भिण्ण-देहु महु तुम्हहं उप्परि पोढु णेहु णवि जाणहुँ केण-वि कारणेण वोल्लिज्जइ जेट्टे चारणेण सुहे संगमे अवसें पीइ होइ णिय-भायर किं वीसरइ कोइ तुहुं विंझ-राउ तोणीर-धीर एहु रिसि वग्गुर तउ तणिय णारि तुहुं इब्भकेउ एहु मंति तुज्झु हउं कमलाएवि कलत्तु तुज्झु विण्णि-वि देवत्तणु तवेण पत्त एकंवुहि णिवसेवि पडिणियत्त तुहुं चिंतागइ हउँ चित्तवेउ एहु विहिं लहुयारउ चवलवेउ पियसुंदरि अवसरे लइय दिक्ख माहिंद-विमाणहो दिण्ण विक्ख सत्तंवुहि णिवसेवि एत्थु आय रिसि अम्हहुं तुहुं मंडलिउ राय घत्ता अह किं वहु-वाया-वित्थरेण जं जाणहि तं तुहुं करहि । रक्खिज्जइ जइ-वि पुरंदरेण तीसमए दियहे तुहुं मरहि ।। [२४] गय कहेवि महा-रिसि अंवरेण सीहउर-णयर-परमेसरेण जिणवर-पडिमउ अहिसिंचियाउ अट्ठाहिउ कमलेहिं अंचियाउ सुउ रज्जे पियंकरु थवेवि भव्वु धणु दीणाणहहं दिण्णु सव्वु वावीस-दिवसु सण्णासु करेवि संथार-सयण-मरणेण मरेवि सोलहमए सग्गे सुरिंदु जाउ वावीस-महण्णव-सेवियाउ कुरुजंगले करि-पुरे पवर-वीरु सिरिमइ-सिरिचंदुब्भव-सरीरु णामेण णराहिउ सुप्पइडु महि पालइ णिव वइसणे वइडु ८ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावइमो संधि घत्ता हिणि सुगंद सुरसणु सुउ सिरिमइ सिरिचंदु णराहिवइ [२५] सुपट्टे रज्जु करंतएण एक्क- दिदिणे जसोहरासु तो फलेण तेण किय-तियस तुट्ठि हय दुंदुहि साहुक्कारु जाउ सुरतरु-कुसुमालि सुरहि मुक्क वइराय - भाउ उप्पण्णु तासु केवल सुकेउपाय - मूले मल - पुव्व - सरीरहो पीडणेहिं घत्ता भावेप्पिणु सोलह कारणाई उप्पण्णु माए सो एत्थु हउं तिण्णि-वि थियई समुण्णयई । उ करेवि सग्गहो गयई ॥ करिवर- पुरु परिपालंतएण आहार- दाणु सु-तवोहरासु आयासहो पडिय सुवण्ण-वुट्ठि समणोहरु दाहिणु आउ वाउ बहु-दिवसेहिं मंदिरे पडिय उक्क णिय-रज्जु समप्पिउ णंदणासु पव्वज्ज लइय णिपयाणुकुले तव चरणेहिं सीह - णिक्कीडणेहिं मरेवि जयंते णिवद्ध-रइ । णेमि सयंभुवणाहिवइ ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव - कए सत्ताणवइमो संधि समत्तो ॥ *** ४९ ४ ८ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठाणवइमो संधि सिवदेविहे कहेवि भवंतरई सुहि वयणेहिं करेवि णिरुत्तरई। वारमइहे लाएवि रणरणउं गउ जिणु +++ कारणु अप्पणउं ।। १ विंझाहिउ इब्भकेउ चिंतागइ हउं आएहिं अहिहाणेहिं आयउ पढम पुलिंदी कंदाहारिणी पुणु जिणयत्त जणेरी महारी लुद्धउरि(?) सहदत्तु सूरप्पह एत्तिय एए जणेर महारा वेण्णि भवंतर मगहा-मंडले गंधिल-कुरुजंगल-सोरटेहिं पल्लिहिं रायगेहे सूरप्पहे समरु-सुकेउ-पियंकर-णंदण वगुर-कमल पियई वसुणंदउ अपरजिउ सुप्पइकु णेमिवइ माए माए सुणु अक्खमि मायउ पउमलच्छि पुणु पुच्छए धारिणि सिरिमइ तुहुँ सिवएवि भडारी अरुहयासु सिरिचंदु जहुप्पउ कहमि देस देवह-मि पियारा एक्क-वार वेयड्डुत्तर-थले एत्तिएहिं उप्पण्णउ रटेहिं सीहणयरे गयउरे पुणु दारहे सहुं सुअरिसणे णयणाणंदण पियसुंदरि राइमइ सुभज्जउ । घत्ता महु जणणि-जणेर-देस-पुरहुं णंदणंदहं अणेयंततेउरहुं। केत्तियहुं करेसहो संभरणु वरि एवहिं लइसु तवच्चरणु ॥ [२] अच्छमि तो वि माए म झूरहि जइ चिंतविय मणोरह पूरइ अच्छमि जइ महु एत्तिउ सारहि जम्मण-जर-मरणइं विणिवारहि अच्छमि जइ पट्टणु अजरामरु अच्छमि जइ ण होतु जम-डामरु अच्छमि जइ इच्छंति सुहंकर जे गय एक्कवीस तित्थंकर अच्छमि जइ अच्छंति सु-कुलयर जे गय भरह पमुह चक्केसर अच्छमि जइ तिहुवण-सिरि आणहि अच्छमि जइ मई मोक्खु पराणइ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठाणवइमो संधि घत्ता सिवएविहे देहु चमक्कियउ जइ केम-वि धरेवि ण सक्कियउ। तो एवंहि हत्थुत्थल्लिउ जजाहि पुत्त मोक्कल्लियउ॥ [३] तिह करे जिह णिय-णामु पगासहि तिह करे जिह कम्मइं विद्धंसहि तिह करे जिह कसाय ओसारहि तिह करे जिह इंदियई णिवारहि तिह करे जिह कालेण वजंतें तित्थु होइ उज्जंतु पयत्तें तिह करे जिह गुण-थाणु चडप्पइ तिह करे जिह पर-लोउ विढप्पइ ४ तिह करे जिह तइलोक्कु पहावहि तिह करे समवसरणु जिह आवहि तिह करे जिह संपजइ केवलु तिह करे जिह सिज्झइ भामंडलु तिह करे जिह असोउ उप्पज्जइ तिह करे जिह सुर-दुंदुहि वज्जइ तिह करे कुसुम-वासु जिह वासइ तिह करे दिव्व भास जिह भासइ घत्ता तिह करे जिह छत्तइं चामराइं सिंहासण-सुहइं णिरंतरइं। तिह करे जिह तिहुयणे तुहुं जे पहु करे लग्गइ सासय-सिद्धि-वहु ॥ ९ [४] तो ति-णाणि भुवण-त्तय-सारउ होइय सिविय-वलगु भडारउ उत्तर-कुरु णामेण पसिद्धी धणय-सिद्धि-संघडण-समिद्धी जोइस-देवेहिं पच्चुच्चाइय कप्पामरेहिं अमर-पहे लाइय मंगल-तूरइं हयइं अणंतई उब्भियाइं धय-चामर-छत्तइं ४ गउ परमेसरु जय-जय-सद्दे अम्मणुअंचिउ तो वलहदें अम्मणुअंचिउ पंकज-णाहें भड-भोइय-सामंत-सणाहें अम्मणुअंचिउ दसहिं दसारेहिं अम्मणुअंचिउ राय-कुमारेहिं जो जहिं णिसुणइ सो तहिं उज्जइ(?) +++++++++++++++ ८ पुण्ण-पवित्तु सुरठ्ठद्धारणु सिद्ध-खेत्तु सिद्धी-सुह-कारणु महुयर-महुरुल्लाव-मणोहरु कल-कोइल-कुल-कलयल-णियरु इंदणील-मणि-छाया-सामलु णेमि-कुमार-कंति-किय-सामलु Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ १२ सूरकंत-वण-सर-पज्जालिउ चंदकंत-णिब्भर-पक्खालिउ सव्व-महामणि-किरण-समुज्जलु सिहरालिंगिय-दिणमणि-मंडलु गय-मयणइं उग्घाउ कयंदरु णं संचारिउ वीयउ मंदरु घत्ता तं पेक्खेवि णेमिहे णिक्खवणु चउ-देव-णिकाय-समागमणु। हउं अरुहु असेसहं अच्चणहं उज्जंतु लगु णं णच्चणहं।। __ १५ तहो उज्जतहो पच्छिम-पासें लइय दिक्ख सहुं राय-सहासें पंच-मुट्ठि किउ लोउ कुमारें चिहुर पडिच्छिय सुर-णेयारें घत्तिय खीर-समुद्दब्भंतरे सावण-छठिहे जम्मण-वासरे सिय-णिक्खवण-सेउ विरइउ हरि(?)सग्गहो गय णिव्वाण खणंतरे णेमि-णियत्थु वत्थु जहिं घत्तिउ तहिं वत्थावउ तित्थु पवत्तिउ सव्वाहरणइं मुक्कइं जेत्तहिं जाय सवण्ण-वण्ण महि तेत्तहिं केसुप्पाडु णिराहरणंगउ अच्चेलत्तु विवज्जिय-संगउ गउ सव्वु किउ सिद्धिहे कारणे वर करि-दंत-भंगु गिरि-दारणे अहवइ एण काई रस-गहिलए तिहुयणे को ण वसीकिउ महिलए घत्ता सहुं सीस-सहासें जग-पवर आरूढु महा-गिरिवर-सिहरु । जसु चित्तहो किउ ढुक्कडउ खेयउ तासु किर केत्तडउ १० तहिं आरुहेवि जग-त्तय-सारउ णाण-सिलहिं थिउ णेमि-भडारउ करेवि ति-रत्तु णियत्तु पडीवउ तिहुवण-भवणुजोय-पईवउ पइसारुच्छउ किउ गोविंदें दरिसिउ चरिया-मग्गु जिणिंदें घरे वरयत्तहो थक्कु विसेसें रिसहु व पाराविउ सेयंसें दाण-फलेण तेण संजायई पंचच्छरियई तहो घरे जायई दुंदुहि गंध-वाउ वसुहारउ पुप्फ-विट्टि सुर-साहुक्कारउ अण्णहिं दिणे तव-लच्छि-सणाहें णाण-सिलहिं थिएण जग-णाहें Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावइमो संधि पलियंकासणेण पुव्वासें अट्ट-रउद्दई वे परिचत्तइं घत्ता एक्कग्ग-मणेण काय - वलेण तं तेहउं झाइउ झेउ तहिं [७] तो अह-कम-वत्तण- आयामें तवणंताणुवंधि वलु धाइउ पढमु कसाय - चउक्कई लग्गइं दंसण - मोहणीय - संवंधिउ सो अंतर- मुहत्तब्धंतरे पगइ सत्त विणासहो ढोएवि णो- पमत्त - अपमत्त - पमेयइं खवग-सेढि - पउग्गागारउ मंद-मंदणीसासुसासें धम्म-सुक्क - झाणइं आढत्तई घत्ता गुण-थाणु अपुव्व-करणु चडिउ अंतर- मुहुत्त - काले तउ +++ [4] - तहिं णवमिहे महा गुण - थत्तिहे हयई दंसणावरण- पहाणई अवर-वि थीण-गिद्धि अवमाणिय गइ गइ - पुव्वि णरय-तिज्जंचइं ++++++++++++++++ +++++धावइ गिव्वाण - महागिरि - णिच्चलेण । संवरिउ कम्मु णिज्जरिउ जहिं || घत्ता उज्जेति पयट्टे जिणवरेण तं दुक्क सण त्त-वि आपुव्वा - णिवित्ति-परिणामें जेण सव्वु जगु उप्प लाइउ अवरु ति-वग्गु परिट्ठिउ अग्गए अग्गिम-खंध- अणग्गिम-खंधिउ विरयण-सुद्धि करेवि जिउ संगरे खाइय सम्माइट्ठिहिं होएवि रय - तिरिय सुराउ- णिट्ठवियई अप्पमत्तु होएवि भडारउ तहिं एक्कु - वि भडु ण समावडिउ । अणिवित्ति-महा-गुण-थाणु गउ ॥ संवरग्ग - भावें अणिवित्तिहे दुइ णिद्दा वे पयला-ठाणइं तिणि पयड पढमउ संदाणिय एक्खाई जाई चउ - कम्मई +++++++++++++++++ मोह दिण्णु कुमारें णावइ उव्वालु किउ पुरयणेण । अहिमण्णु समत्तउ जेत्हे - वि ॥ ५३ ८ १० ४ ८ ४ ७ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ [९] अण्णेत्तहे सिवएवि स-वेयण अण्णेतहे देवइ णिच्चेयण अण्णेत्तहे रोहिणि रोवाविय अण्णेत्तहे रुप्पिणि मुच्छाविय अण्णेत्तहे रेवइ विद्दाणी अण्णेत्तहे जंवुमइ मिलाणी अण्णेत्तहे लक्खण उम्माहिय अण्णेत्तहे गंधारि स-वाहिय सच्चहाम अण्णेत्तहे कंदइ गउरिहे अंसु-णिवहु णीसंदइ अण्णेत्तहे विलवइ पोमावइ अण्णेत्तहे सुसीम धाहावइ अण्णेत्तहें जसोय अवचित्ती सोय-जलण-जालोलि-पलित्ती अण्णेत्तहे अइसोयाउण्णइं अंतेउरई असेसई रुण्णइं घत्ता पट्टणेण असेसें मुक्क रडि हा हय विहि पई किं कियउ भडि। परिपुण्ण-मणोरहु काई तउ जेणेत्थहो णेमि-कुमार णिउ॥ परिहरियइं घरिणिहिं घर-कम्मई हट्ट-टिंट-चच्चरइं अरम्मई राउल-देउलाई णीसुण्णइं घरई सिवा-सुय-सोयाउण्णइं सलिलु ण वुब्भइ कहि-मि ण रज्झइ तुरय-चलत्थहिं खाणु ण वज्झइ मत्त-गइंदहुं कवलु ण दिज्जइ णायरिया-यणु खणे खणे झिज्जइ ४ क-वि वोल्लइ सहि-कण्णोसारें किह जिज्जइ विणु णेमि-कुमारे क-वि काहे-वि अक्खइ सयवारउ मह पुग्गलेण विणिम्मिउ भारउ क-वि वोल्लइ मयरद्धय-डाहें हउं दूरहो वि ण जोइय णाहें क-वि काहे-वि दक्खवइ दिसावरु ओहु गउ ओहु गउ ओहु गउ जिणवरु घत्ता उट्ठइ पक्खलइ परिब्भमइ साहारु ण वंधइ राइमइ । जिण-मुह-दंसणु अ-लहतियए धाहाविउ विरह-पलित्तियए॥ जिह-जिह दूरीहोइ भडारउ | जिह जिह तूरहं सक्षु सुणिज्जइ तिह तिह मुच्छउ इंति अपारउ तिह तिह णाई तिसूलें भिज्जइ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ अट्ठाणवइमो संधि जिवं जिवं सिविय-जाइ आयासें तिवं तिवं डज्झइ विरह-हुवासें चंदण-लेउ णिरारिउ लावइ स-जल-वि जलइ जलद्द ण भावइ चमरुक्खेव-महावड-वाएहिं अंगु ण उल्हाविजइ आएहिं धुक्कुडुइय सरीरहो लग्गी णवमी कामावत्थ वलग्गी क-वि काए-वि वुच्चइ धव-गारी मंगोसामिणि मरउ महारी मायडी जाहि णियत्ति भडारउ भणु णिरत्थु तव-चरणु तुहारउ धत्ता परमेसरि अच्छइ सोय-भय छुडु दसमी कामावत्थ-गय। जइ मुवइ पमाएं राइमइ तो णाह लहेसहि कवण गइ। [१२] तहिं अवसरे जिणु जावं पवट्टइ आसण-कंपु सुरिंदहो वट्टइ भावण-भवणंतरेहिं आपूरिय संख-णिणाय जाय अइ-धूरिय वितर-भवणंतरेहिं अणाहय पडह पगज्जिय जेम वलाहय जोइस-आवासेहिं अणिट्ठिय सीह-णाय सयमेव समुट्ठिय जय-घंटउ कप्पामर-ठाणेहिं टणटणंति सयमेव विमाणेहिं करेवि सव्व सामग्गी महंतिए चलिउ पुरंदरु वंदणहत्तिए चंपाचंपि जाय सुर-जाणहं रहु खंचेहि देहि महु जाणहं करि ओसारहि वोलउ केसरि धरि तुरंगुमा कुज्झउ वेसरि घत्ता सुर-मिहुणई एम चवंताई णहे पेल्लावेल्लि करंताई। णेमिहे णिक्खवणे पभूआई उज्जतहो दुक्कीहोताई। [१३] दिङ महागिरि दूरुद्देसहो जीव-लोउ णं जगहो असेसहो कणय-महीहर-सिहरुच्चेरउ णं सेहरउ धरित्तिहे केरउ साहारणु थावरु आयाउ-वि सुहम पयडि तहे-वि उज्जोउ-वि तेरह णामई तिह णिट्ठवियई णउ णायइं केत्तहिं पट्टवियई सोलह कम्मई हणेवि खणंतरे तो अंतर-मुहुत्तमेत्तंतरे Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ ८ मज्झिम अट्ठ कसाय वियारिय सीहें जिह गइंद ओसारिय तो अंतर-मुहुत्त-परिणामें अंत-करणु करेवि तुरमाणे किय परिवाडि पड्डिय-तेयह खवग-णउंसय-इत्थी-वेयहं पुणु छण्णोकसाय-वलु घाइउ पुरिसु व पुरिस-वेउ विणिवाइउ घत्ता तो अवगय-वेएं होतएण कम्म-करण-किय-पत्तएण। कम्माणुभाउ ओहट्टियउ णिम्महियउ सग दह किट्टियउ॥ ४ अणुहवमाणे तिण्णि-वि किट्टिउ संजलणारि-भड-त्तउ पिट्टिउ अवरउ तिण्णि जाउ उव्वरियउ लोहु ति-भाय णाई उवसरियउ तहिं वेंवत्तें गमिय पहिल्ली पयणु करेवि किट्टि मज्झिल्ली सुहुम-कसाय-थाणे आवासिउ चरम-समए संजलणु विणासिउ खीण-कसाय-थाणे पडिलग्गउ णिद्द पयल दुइ चरमें भग्गउ चउ-दंसण-आचरणई एक्कई णामावरणइं पंच-वि णेक्का अंतराय-कम्मई मित्त-त्तइं एक्क-वार चउदह-वि समत्तई एवं तिसट्ठि कम्मइं घायंतहो वीयउ सुक्क-झाणु झायंतहो दिक्खा-कालहो ववगय-वाहहो दिण-छप्पण्णाणंतरे णाहहो मास-कुमर-पडिव-चंदिण-दिणे तय-कम्मइं णिहणेवि एक्कहिं खणे घत्ता घण-संघणणहो सुह-सारहो केवलु उप्पण्णु भडारहो। उज्जोउ जाउ णाणुग्गमणे णं दिण्णु पईवउ जग-भवणे॥ ८ जम्महो लग्गेवि णिस्सेयत्तणु मुह-संठाणु-वि संघणणत्तणु सउ लक्खण अमिय-धीरत्तणु इय दस अइसय जिणहो सहावें गाउय-सयहं चउहुं अब्भंतरे विमलिम-खीर-गउर-रुहिरत्तणु सुंदर-भाउ परम-सुरहित्तणु पिय-हिय-पुव्व-वयणु वायत्तणु दस पुणु घाइ-चउक्काभावें। सुट्टु सुहिखिम-गइ वहु-अंतरे Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ अट्ठाणवइमो संधि रोउ ण मारि-भुत्ति-उवसाहं चउ-वयणत्तणु जिण-चउरंगहं णिरवसेस-विज्जा-सामित्तणु छाहि-भंसु अ-णिमिस-णयणत्तणु अंग-समुट्ठिय-णह-केसत्तणु सिद्ध पसिद्ध एम देवत्तणु घत्ता अइसय-संपत्तिउ वद्धियउ णव केवल-लद्धिउ लद्धियउ। तइलोक्क-पहुत्तण-धारएण सयमेव सयंभु-भडारएण। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-संयभुएव-कए अट्ठावणइमो सग्गो॥ ** * Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवणवइमो संधि केवल-णाण-समागमणे तल-मज्झ-सिहर-तिविहोक्कहो। ति-पवण-वलय-णिवद्धहो संखोहु जाउ तइलोक्कहो। __ [१] एक्कु-वि दस-दस-अइसय-जोएं अण्णु-वि परम-सिद्धि-संजोएं तिहुवणु णिरवसेसु उज्जोइउ तहिं चउत्थ-कल्लाणे जिणिंदहो जाय चउविह-देव-वियप्पहं संखाऊरणु पडहप्फालणु चउरमरासण-कंपण-जोएं अग्गए धणउ विसज्जिउ तेत्तहिं अण्णु-वि केवल-णाणुज्जोएं परमाणंत-गुणोह-णिओएं दीसइ मुहु जिण-दप्पणे ढोइउ रिसि-गण-सेवियंधिअ-विंदहो भावण-विंतर-जोइस-कप्पहं सीहणाय-जयघंटा-चालणु चलिउ सुराहिउ सउं सुर-लोएं णेमिहे णाण-समागमु जेत्तहिं समवसरणु तं तिह किउ जक्खें घत्ता सुत्तहारु दस-सय-णयणु कत्तारु धणउ जिणु कारणु। देवागमणु समोसरणु केवलु तहिं कवणु कारणु ॥ [२] जिह रिसहाइहिं णविय विसाणहं तित्थवरहं ति-सत्त-परिमाणहं तिह णेमिहे णव-कमल-दलक्खें समवसरणु उप्पाइउ जक्खें जं उज्जतहो उप्परि छज्जइ मेरुहे रिउ-विमाणु थिउ णज्जइ एक्क-अद्ध-जोयण-वित्थारें मणि-कुट्टिमेण भूमि-पब्भारें रयण-धूलि-पायारं मंडिउ णं जिणेण पडिकोट्ट समंडिउ णं पहरिसइ को-वि पडिवारउ करेवि दुग्गु थिउ णाई भडारउ माणव-थंभु चउक्कु सुहावइ किय चयारि अट्टाला णावइ कामएव-रण-मंडवे संतहो कहो ण होउ उच्छाहु जिणंतहो ८ . Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवइवइमो संधि घत्ता मणि-रयणई कंचण-फलिहमय णिम्मविय तिण्णि पायार। सुरधणु-सुरगिरि-तुहिणगिरि थिय णावइ वलयाकार ॥ थामे थामे णिरवजई कम्मई थामे थामे अवलंविय दामइं थामे थामे कल-कोइल-कलयलु थामे थामे मलयाणिलु सीयलु थामे थामे वल्ली-वण-जालई महुयरि-महुयर-गीय-वमालई थामे थामे पंकयई स-भमरई थामे थामे घड-दप्पण-चमरई थामे थामे मणि-कंचण-सारइं सीह-मयर-करि-तोरण-दारई थामे थामे धय-चित्त-वडायउ थामे थामे वाविउ सच्छायउ थामे थामे खाइयउ विचित्तउ थामे थामे दीहियउ विचित्तउ थामे थामे परिपुण्ण-जलोहउ पुक्खरिणिउ अच्चंत-सुसोहउ थामे थामे सुर-किण्णर-गेयई थामे थामे पेक्खणइं अणेयई घत्ता थामे थामे थाणंतरइं गंधउडी-गोउर-थूहई। पुंजीकयई पयावइण जंजिणवर-पुण्ण-समूहई। १० इंदणील-मणि-पह-पन्भारें सूरकंत-मणि-किरण-किलामिउ समवसरणु केहि-मि सामण्णेहिं वाया-विहवु कहो एवड्डउ वयणुवइत्तणु जइ पर फणिवरे णिव्वुइ पर पउलोमी-कंतहो अलि णच्चंति णवर झंकारें वोलइ कह-वि भाणु ओहामिइ दुक्खु सम्मु च विजइ अण्णेहिं जीहउ जाहं महीहर-जड्डउ जीह-सहासु जासु मुह-कंदरे णयण-सहासु जासु जोयंतहो घत्ता अह किं वहुणा वित्थरेण तइलोक्कु सव्वु जइ आवइ। तो एक्कहिं जे गवक्खडए को केत्तहिं थियउ ण णावइ । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ तिहुयण-सिरि जसु आण-पडिच्छिय तहो पुच्छिज्जइ काइं सुहच्छिय केवल-णाण-णयणु जिणु जेत्तहिं अट्ठ-वि पाडिहेर थिय तेत्तहिं तिण्णि-वि भुवणई जसु आयत्तई अवसें तिण्णि होति तहो छत्तइं जासु पासे सोउ जे ण गच्छइ अवसें तहो असोउ उप्पजइ जसु कल्लाण-काले जगु डोल्लइ सो सामण्ण भास किं वोल्लइ जसु तइलोक्क-रज्जु णिरवजउ अवसें तहो सुर-दुंदुहि वज्जउ जासु पहुत्तणु सलहिउ अमरेहिं अवसे सो विजिज्जइ चमरेहिं जासु कसाय-सेण्ण रणे विहडइ अवसें कुसुम-वासु तहो णिवडइ ___घत्ता छत्तइं रत्तासोय-तरु सुर-दुंदुहि चामर-वासणु । जसु एवड्डु पहुत्तणउं तहो किं ण होउ सीहासणु ॥ ८ गय हरिणक-देव हक्कारा समवसरणु णिम्मविउ भडारा तिहुवण-जण-मण-णयणाणंदहो __ जहिं उप्पण्णु णाणु जिणयंदहो तहिं उप्पाइउ पीढु ति-मेहलु वेत्तागारु सुवण्ण-समुज्जलु तहो पीढहो मेहल पहिलारी अद्ध-दंड-उच्चत्तण-धारी अद्ध-इंदधणु-सयई पइट्ठी आयहिं एहिं एहिं संकिट्ठी चउ-दंडुण्णय मज्झिम मेहल पोमराय-कर-णियर-समुज्जल उवरिम मेहल धणुव-विहाणि पसरणु-उच्चत्तण-परिमाणिं सव्व-महामणि-किरण-विहिण्णी उप्परि धणु-सहास वित्थिण्णी घत्ता रइय ति-मेहल-मंडलिय सोवाण-पंति चउ-पासेहिं । सुक्ख-णिसेणि परिट्ठविय णं सिद्धहिं सिद्धि-णिवासेहिं। ८ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ णवइवइमो संधि [७] उवरिम-मेहलियहे चउ-पासेहिं फलिह-साल-वलयावरियासेहिं चउ गोउरई चयारि दुवारइं पउमराय-मणि-मंडण-सारई दुइ दुइ धणु-सयाई मेल्लेप्पिणु सम-पएस-पमाणु लएप्पिणु किय गंधउडि जिणिंदहो केरी छण्णव-धणु-सयाई उच्चेरी चउराणणिय ति-सालिय छज्जइ मेरु-ति-मेहल चूरिय णज्जइ तहिं चउराणणु थिउ परमेसरु पलियंकासणु कम्म-खयंकरु तहिं असोउ तहिं चामर-वासणु तहिं भामंडलु तहिं सीहासणु छत्तई तहिं तिण्णि-वि विचित्तइं तहिं सुरतरु-कुसुमई विक्खित्तई घत्ता धय-मालाकुल-करयलेण मोत्तिय-माणिक्काभरणे। अमर-विमाणहं पह हरेवि णं णच्चिउ जिणवर-भवणे। [८] पुण्ण-पवित्तई मंगल-दव्वइं णिव्विय अच्चण-जोग्गइं सव्वई अट्ठत्तर-सउ कंचण-पत्तहं सव्व-रयण-परिपूरिय-गत्तहं अट्ठत्तर-सउ सालंकारहं कलस सट्ठि संघाड- भिंगारहं अट्ठत्तर-सउ चामर-छत्तहं धय-दप्पणइं पंच सुरदंतहं मज्झिम मेहल पूरिय सव्वहं अट्ठ महठ्ठय मंगल-दव्वहं हिट्ठिम मेहल मंडिय जक्खेहिं धम्म-रहंग-सिरेहिं चउ-संखेहिं सिरि-मंडउ जोयण-वित्थारें फलिह-सिलामएण पायारें रवि-वण्णेहिं सोवण्णेहिं खंतेहिं मणिमय-हीर-गहण-तुल-तुम्हेहिं घत्ता धणुस-सहास-दुइ-उच्चिमउं धणु-अठ्ठ-सहस-वित्थिण्णउं। सुरहं धरंत-धरंताहं णं सग्गु जे सई अवइण्णउं । [९] चउहिं महा-दिसेहिं चउ-वारइं पउमराय-मणि-गोउर-भारई सय-सय-कंचण-तोरण-राहई कप्पामर-परिहार-सणाहइं ८ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ अंतरे अंतरे ताहं पइट्ठा सोवण्ण-भत्तिउ वारह कोट्ठा ताणभंतरे भामरि-सारइं भित्तिए भित्तिए अण्णिय-दारइं ४ पंगणु कोसु कोसु रवणुज्जलु सायरेण णं दाविउ णिय-तलु वाहिरे जोयणट्ठ-वित्थारें भमेवि परिट्ठिय वलयायारें चउ-दिसु वण-वणसइ-आवरियउ णं सोहम्म-खंडु अवयरियउ चउ-वि दिसउ अच्चंत-अउव्वउ उत्तर-दाहिण-पच्छिम-पुव्वउ घत्ता णव थूहई णव सयइं अंतरे अंतरे सुर-हम्मई। पुंजीहोवि परिट्ठियइं णं णेमिहे सुक्किय-कम्मई ।। [१०] पढम-वेइ वीय-पायारहं कणय-सरीरहं रुप्पय-वारहं जोइस-देव परिट्ठिय रक्खणु दीहिय कोसु कोसु पिहुलत्तणु धूव-महाघड-संघड-सारइं पासेहिं पासेहिं अण्णिय-दारइं सुर-णच्चण-सालउ अण्णेत्तहिं दस दस कप्प-रुक्ख अण्णेत्तहिं ४ मजण-तूर-विहूसण-गारा भायण-भोयण-वहण-विसारा जोइसंग-वत्थंग-महत्तरे दीव-अंग-मल्लंग-मणोहरे चउ-दिसु दुत्थ रुक्ख चउ-पासेहिं ते-वि पसोहिय साह-सहासेहिं मूले ति-मेहलग्गे जिण-पडिमउ सव्व-सुवण्ण-कोस-मणि-जडिमउ ८ घत्ता वीयए जोयणे एह विहि तहिं कासु-वि चित्तु चमक्कइ। दस-सयाई जसु आणणहं धरणिंदु-वि कहेवि ण सक्कइ ।। [११] तइयए मंडले जोयण-वित्थरे विहि-विहेहि-मि अंतरे अंतरे दस दस कप्प-रुक्ख जहिं विजए दस दस तेम महद्धय तिज्जए सव्व-मेहलउ जिण-पडिमंकिय चउरस चित्तागारोवरि थिय पंचवीस धणु मप्पिय मप्पें घड एक्केकउ थिउ अवियप्पें Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवइवइमो संधि जाय णवा हुव वारहं गुणणिहु सहस चयारि तीस वीसोत्तर चित्त-वडायउ ताहं अणेयउ अट्ठोत्तरु अट्ठोत्तरु सय-विहु एवं महद्धय सव्व णिरंतर अडुत्तर-अद्दुत्तर-सय-भेयउ घत्ता वलए वि चउत्थए चउणवई चउवीसई अंतरे हूयई। करेवि पहाणु असोय-वणु सत्तच्छय-चंपय-चूयइं ।। [१२] मज्झिम वेइए तइयहं वारहं णियड-सुवण्णहं रुप्पय-वारहं भावण-देव दिण्ण दउवारिय णिय-णिय-दंड-पाणि पडिहारिय पंचमे जोयणे पुण्ण-पवित्तई वेल्ली-वणइं चयारि विचित्तई छट्ठए जोयणे अट्ठ जल-खाइय अट्ठ-वि सुरघरालि णिम्माविय माणव-थंभ-चउक्कु पहाविउ तहिं एक्केक्कहिं चउ वाविउ णंदीसर-देवय-चुय-णामउ कंडुत्तर-कंदाउ पगामउ पच्छिम-वेइए धूमि थयावहि(?) वितर-देव परिट्ठिय वारेहिं अट्ठ-वि लोय-पाल दिसि-कोणेहि थविया घण-घणेहिं विणोएहिं ४ ८ घत्ता तहिं सिरि-मंडउ कणयमउ पायार-वलएहिं अंकियउ। सोहइ मणहरु मेरु जिह वहु-दीव-समुद्दालंकियउ॥ __[१३] तिहिं वेइहिं चउहु-मि पायारेहिं वण्ण-विचित्त कवाड-दुवारेहिं णिग्गमे णिग्गमे दुइ दुइ जइयउ मणि-कुट्टिम-वण्णुजल पइयउ जइयहे जइयहे णव-णव-णिहियउ अंतरे अंतरे णव-णव-विहियउ अंतरे अंतरे मंगल-दव्वई अट्ठोत्तर-सय-भेयइं सव्वई तोरण विविहाहरण-विहूसिय णं इंदहणु अणेय पदीसिय कप्प-रुक्ख सिद्ध महद्धय थंभ वेय पायार समुण्णय सव्व परिट्ठिय एक्के थाणे वीसुत्तर-सय-धणु-परिमाणे एवं णिरुत्तर-सुरवर-सारा समवसरणु उप्पण्णु भडारा Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ घत्ता तं हरिणंक - वयणु सुवि दीहर - दिस - वित्थिष्णु णहु वाहण - जाण - विमाण - सहासेहिं अमरवरगण णवर मेहलियहिं णं उव्वेल्लइ धय-संघाएहिं णं रसमसइ रसंतेहिं तूरेहिं संख-ताल-पडु-पडह- णिणद्देहिं वहिरिउ अंवरु किं पिण सुव्वइ सो सो पडिव पल्लट्टउ तेण पुरंदरेणभय-दाणें [१४] भावण- पमुह- दसट्ठट्ठारस कप्पामर दस - भेय समासिय अहि पायालहो णर पुरहुं तिहुयणु णीसुण्णउं करेवि घत्ता सत्ताणीयाणीय णिओइय लोयपाल किव्विसय पइण्णय हय-रह-गय-पाइक्काणीयइं आयइं आयइं सत्ताणीयइं जोइस पंच तियाहिय विंतर पुव्व - दिसए पइसरइ पुरंदरु [१५] घत्ता सुरवइ - सिरि जिणवर - सिरिहे तिहुणु णवल्लह-वल्लहहो सग्गहो आइय देव - णिकाय । जिण - वंदण - भत्तिए आय ।। सहसत्ति पुरंदरु आइउ । तो वि सुर- गणु कहि-मिण माइयउ ॥ ९ लंवइ गयणु णाइं चउ-पासेहिं णं विप्र झत्ति विज्जुलियहिं हम सुधेहिं वाएहिं णं जिगजिगइ रयण-पडिसूरेहिं णंद-वद्ध-जिण-जय-जय - सद्देहिं भणइ सक्कु जो रूउ विउव्वइ इयरु सव्वु वंदणहं पयट्टउ थिय सुरवर दस - धणुव - प्रमाणें तेवं तीस पराइय सरहस वासव तायत्तीस समासिय परिस- अंगरक्ख अहिआइय दस कप्पामर ओए समुण्णय वसुहच्छर-गंधव्वाणीयई गंध-धूव-वमालालीवइ भावण दस- पयार णय समवसरण पेक्खंतु मणोहरु रिट्ठणेमिचरिउ जयजयकार करंतु पुण थाइ । महविए वि ए कामिणि णाई || - सिरय-कर ४ ९ ८ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rasasमो संधि [१६] दिट्ठ पुरंदरेण तं तेहउ कहि-म मोहर गोउर - वारेहिं कहि मिति - मेहल - माणव - थंभेहिं खाहिण - विणिम्मिउ जेहउ धूलि - सुवण्ण- फलिह-पायारेहिं कहि-मि सुरंगण - णट्टारंभे हिं कहि-मि सलिल - खाइयहिं विचित्तेहिं कहि-मि महालय-वणेहिं विचित्तेहिं ४ कहि-मि कुसुम-कुवलय- सयवत्तेहिं कहि-मि चेइय-दुमेहिं अणेएहिं णव णव थूणेहिं णव - णव- णिहिएहिं उवयरणेहिं सुर-कर-परिगीढेहिं - कहि-मि महद्धय- चामर-छत्तेहिं कहि-मि कप्परुक्खेहिं दस भेएहिं कहि-मि सुमंगल - दव्वेहिं विविहेहिं सिरिमंडव - गंध उडि-पीढेहिं घत्ता फलिह-साल-वलयावरिउ जिणु दिट्ठउ चारुद्देसहो । पुण्णिम-इंदु परिट्ठियउ अब्भंतरेण णं परिवेसहो । [१७] तोणिय - सिर- किय-कर- अरविंदे जय जय भव-भव-गय-मयणय-पय जय जय पभव- विगम-धुय-मय-गय थुइ आढविय जिणिंदहो इंदे -- जय जय तिहुयण - सिहरर-णयर-गय जय जय भूरि-भुवण - भव- रुय हर जय जय गुण - णिहि-रयण - महोवहि जय जय समवसरण - सिरि-धारा तुहुं गई तुहुं मइ तुहुं महु सरणउं जय जय विसहर - विसम - विसय - खय जय जय सयल - विमल - केवल - धर ४ जय जय परम पुरिस पुरिसावहि तुहुं माया-वि पिया - वि भडारा जय जण होंतु तुहुं अब्भुधरणउं घत्ता वाहि दुक्खु दालिद्दु तहो तिहुयण-सामिउ ति - जग- गुरु [१८] - विकहिउ ताम गोविंदहो सोलह - कारण - भाविय-भावें गिरि - उज्जेत - सिहरे सुमणोहरे सो मुसो चिंतावण्णउ | जिणु जणहो जासु अपसण्णउ ॥ पेक्खु पहुत्तणु मि-जिणंदहो घोर - वीर - तवचरण - पहावें छप्पण्णहं दिवसहं अब्भंतरे ८ ६५ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +++++++++++++++ रिट्ठणेमिचरिउ झत्ति कम्म-वल्लरी उच्छण्णी केवल-णाण-रिद्दि उप्पण्णी ४ धणएं समवसरणु णिम्माणिउ सुर-वलु सयलु सुरिंदें आणीउ पेल्लावेल्लि विमाणहं वट्टइ तो हरि हरिसाहरणु पयट्टइ काम-भोय-सोहग्ग-मरट्टई घत्ता गिरि-उज्जंतु पराइयउ अहिवंदण करेवि भडारए। जायव-सयइं परिट्ठियई वारहमए वक्खारए॥ । [१९] रिसिगण-कप्पंगण-माणिणिउ जोइस-विंतर-भावण-धरिणिउ भावण-पमुहट्ठद्ध-पयारा णर-वणयर वारह वक्खारा समवसरणु तं णिएवि जिणिंदहो अण्णु-वि सग्गागमणु सुरिंदहो सिरिवरइत्त-सामि रंजिय-मणु रोहिणि-पुत्तउ रेवइ-णंदणु ४ तव-चरणेक्क-सुहा-रस-लइयउ दसहिं कुमारेहिं सहुं पव्वइयउ गणहर ते-वि जाय तहिं अवसरे दिव्व वाणि उप्पण्ण जिणेसरे सुणेवि धम्मु दु-चउद्दह-लक्खणु अणु-गुण-सिक्ख-महव्वय-रक्खणु राइमइए सहुँ तियहुं पगासइ पव्वइयइं चालीस सहासई घत्ता सहस अट्ठारह महा-रिसिहिं गणु सत्त-पयारीहूयउ। तिण्णि लक्ख तहिं सावियहं सावयह लक्खु संभूयउ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-संयभूएव-कए कविराज-धवल विणिम्मिए समवसरण-कहणं णाम णिण्याणवो संधि॥ काऊण पउमचरियं सुद्दय-चरियं च गुण-गणग्यवियं । हरिवंस-मोह-हरणे सरस्सई सुढिय-देह व्व॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सउमो संधि केवल-किरण-करालिय-गत्तउ धम्मामय-सिंचिय-भुवण-तउ। स-गणु स-पाडिहेरु सुर-सारउ पल्लवएसहो चलिउ भडारउ ॥ (ध्रुवकं) १ णेमिणाहु सामरु साखंडलु चलिउ णाई तहिं जोइस-मंडलु पभणिउ जक्खाहिउ सुर-सारें जोयण तिण्णि णवर वित्थारें करहिं मग्गु मणि-कुट्टिम-सज्जिउ जिणवर-चित्तु णाई रय-वजिउ तेण-वि तेण विउव्वण-सत्तिए मणिमउ भूमि-भाउ किउ भत्तिए ४ विरइउ सुरहि-कुसुम-रय-राइउ जोयण-अद्ध-पमाणे राइड णाणा-तरुवर-गहणु रवण्णउं पण्ण-फुल्ल-फल-वेल्लिहिं छण्णउं सायर-वेलउ व्व सय-मालउं विसहर-घरिणिउ व्व सु-विसालउं रयणिउ व्व पेल्लिय-दिणणाहउं गोविउ व्व महुमहण-सणाहउं ८ घत्ता ताहं मंज्झे विलसंति विचित्तिउ चूरिय-मोत्तिय-सिय-रयइत्तउ। णिज्जिय छण-ससि-बिंबावलियउ सुरवर-कण्णउ(?) रंगावलियउ॥ ९ [२] सयल-दिसिहिं धरणी सम किजइ मायरिसेण मग्गु सोहिज्जइ गंध-जलेण घणेहिं छडु दिजइ सुरतरुवरु-कुसुमेहिं मंडिजइ गुज्झय-देवेहिं पेसणु किज्जइ कुंकुम-रसेहिं मग्गु सिंचिज्जइ इंदें पडिहारत्तु व किज्जइ अट्ठ वसुहिं सहुं पुरउ चलिजइ हविण धूल-पड-णिवहु लइज्जइ जमु परिमलेण जगु जि धूविजइ लोयंतिएहि-मि अग्गए गम्मइ वायण-तियसेहिं दुंदुहि हम्मइ तुंबुरु-णारय-पमुहेहिं सव्वेहिं मंगलु गाइज्जइ गंधव्वेहिं णच्चिज्जइ थिरकिय-पारंभहिं सइं आहल्ल-तिलोत्तिम-रंभहिं ४ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता णिरुवद्दवउ सव्व-दिस-पमुहउ लोयवाल पालंति स-वाहणु। उवसमियइं चोरारि-विसग्गइं विविह-राग-देसाइ-उवसग्गइं । [३] तो तियसेहिं मेलिय-तारायणु पिहुलत्तणि णिज्जिय-गयणंगणु जंवूणय-तामरस-विहूसिउ कणिर-कणय-किंकिणि-रव-रासिउ वहुविह-मणि-दामेहिं सोहाविउ +++++++++++++ चारु-चमरेहिं विज्जिय-दिसिवहु णाणा-धय-णिवहेहिं पूरिय-णहु ४ चउ-दिसु सुर-कुसुमेहिं मंडिउ परिमल-मिलिय-भसल-कुल-वड्डिउ पासेहिं दिव्वाहरण-पसाहिउ एउ (?) अमर-तरु-पल्लव-राहिउ लंविर-मुद्दि (?)-पुंज-रय-पिंजरु किउ मंडउ दुइ-जोयण-वित्थरु ८ उप्परि सोह जिणिंदहो किज्जइ दिव्वंवरेहि वियाणु रइज्जइ घत्ता तहिं वियाण-तले जिणु संचल्लइ पय-तामरसु जावं उच्चल्लइ। अग्गए हिंडेवि णामवयग्गलु (?) उट्ठइ णिम्मलु वियसिउ कमल।। चलिउ णाहु सुरवर-पुज्जारुहु पाएहिं ण छिवंतु सरोरुहु . भाव-सुणिम्मल-वियसिय-कमलउ कणयंदुरुह-पवल-रय-सवलउ अकलिय-गंभीर-तणु-थाहउ तरल-हार-हंसावलि-राहउ मरगय-सय-भूसण-सेवालउ ++++++++++++++ कर-रत्तुप्पल-पाविय-छाहउ घुसिणारुण-णयण-चक्काहउ गुरु-णियंव-परिणाह-विसालउ । मणि-वलयामल-वाह-मुणालउ वलिरालय-भिंगावलि-मालउ पसरिय-कंकण-विहय-वमालउ दीहरच्छि-मच्छिहि अहिरामउ पसरिय-धम्म-चक्क-रविरामउ घत्ता वर-सरसीउ व सुप्पय-वंतिउ विग्घ-सहासई विणिवारंतिउ। मंदरमउ(?) जिणवर-पय-सेविउ पुरउ णिविठ्ठउ सासण-देविउ॥ ८ १० Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समो संधि [५] चलिउ जाम संसार- कयंतउ ताम तुरिउ वीरेहिं विउव्विय वियरइ सहुं तियसहं अग्गए हरि पास - परिट्ठिय जिण - गुण-वोहिय सोह दिंति णव-तिवलि - तरंगउ लच्छिउ मंगल-कलसेहिं आइय तहिं धरणिंद-देव-फण- कप्पिणु चलिय जक्ख जिणवर-पय- सेविय तरुवर-णव- कुसुमेहिं अणिट्टिय जाउ फलवंति वण- राइउ उब्भिय-कर- - तोसाविय- - सुरवर घत्ता तो विहरंति णेमि णहु णिम्मलु धम्म चक्कु भा - दंडु समुट्ठिउ - सुरयण-‍ अक्कु विभाव एवि लग्गउ तहिं पडिविंवउ - सग्गहो उडु गहय ससि णिम्मलु मणिमय-पसरेहिं जिण - जणियायरु are भत्ति थिय रहसागय जं विज्जाहर संखोहु भरतए मिणाह - विहरणए चलंतए । देवेहिं महि तिह पहतिय ( ? ) पुण्णा जिह णीसेस सग्ग थिय सुण्णा ॥ [६] घत्ता जिणवर - चलण - णवंतहं पवरहं वियड-मउड-थडु णियडु सुहावइ - चमर - सहासेहिं विज्जिज्जंतउ पउम-संख-णिहि पुरउ परिट्ठिय कुल- सेलेहिं णं सोहि सुर- गिरि आसणे पडिहारत्तणे सोहिय वहु-लायण्ण-सलिल - भरियंगउ सरसइ-वीणायर (?) - संपाइय णं सिर- मणि दीवियउ धरेप्पिणु पाडइ कुसुम - वासु वण- देवय सयल - विरिउ (?) णिय-फलेहिं परिडिय महमहंतु मलयाणिलु वाइउ पउर-सास-संपुण्ण-वसुंधर ८ जोइस भावण - विंतर - अमरहं । मणि- कुट्टिमु एहु वीउ णावइ ।। ४ ससहर - किरण - कलाव- समुज्जलु सयल-जणहो दप्पणु व परिट्ठिउ जोयण - एक्क- पवाणु समग्गउ जिण - दंसणे णिम्मिउ णिय - विग्गहु ४ अहिमयरंसु - जालु हिम-सीयलु विज्ज- वलग्गु णाई रयणायरु कंचणमय कुंभयरहिं सागय ६९ १२ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० रिटणेमिचरिउ ४ घण-मणि-किरण-णिवह-पूरिय-णहे तहिं तइलोक्क-णाहु विहरइ पहे कहि-मि सुरंगण-गण-पब्भारेहिं हरइ हार दारिय-थणहारेहिं कहि-मि सरहिं णव-पंकय-णयणेहिं णं पायड जलदेवय वयणेहिं वाविहिं कुसुमई कहिं-मि हरंतिहिं णं अणिमिस-णयणेहिं जोयंतिहिं कहि-मि रेणु पिंजर कुसुमोहहिं णं णव-घुसिण-पंकय-सोहहिं कहि-मि झुणिर फुल्लंधुय पयत्तेहिं णं वीणा-विणोउ दरिसंतेहिं कहि-मि सहइ णाणाविह-चित्तहिं णं जिण-चलण-कमल-गय-चित्तहिं घत्ता कत्थइ वित्थय-कप्पलया-हरे सिढिलिय-मणि-मोत्तियउ मणोहरे । णच्चण-रस-वसु परिसमवंतउ वीसमंति अच्छरउ अणंतउ॥ [८] विज्जाहर-किरण-सांवलिय सुरेहिं विमाण-णिवह णहे पेल्लिय थरहरंतु पवणुद्धय-धयवडु महमहंत-सुरकुसुम-रउक्कडु रणझणंत मणि-वासिय(?)मालिय टणटणंत-घंटा-जालोलिय किंकिणि-रव-पूरिय-भुवणोयर रयण-किरण-कवलिय-तिमिरोयर झुविर-मुत्तावलि-मयराणण सिहरे ठिय णं वण-पंचाणण णच्चमाण-चारण-परिवारिय कल-गंधव्व-गेय-झंकारिय घत्ता कहि-मि वहति विमाणइं णहयले सुरवर-गणु संचरइ महीयले। जिणवर-णाहे पइट्ठिए मग्गहो पल्लवएसु जाउ समु सग्गहो। ४ भासेवि पल्लवएसु भडारउ पुणु गच्छंतु लाड-देसंतरु कुरुजंगलु पंचालु समाइउ पुव्वएसु सयलु-वि परिचड्डेवि पुणु कलिंग देसंतरु लंघेवि गउ सोरट्ठ-विसउ सुर-सारट सूरसेण तत्थहो जि पडतरु पुणु कुसद्ध पुणु मगहे पराइड कोमल-पय-तामरिसें मंडेवि दय-धम्मोवदेस-परिसंघेवि Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सउमो संधि वंग-अंग-पासेहिं परिसक्केवि मलय-विसउ कमेण उवढुक्केवि घत्ता पइसरेवि तहिं भदिल-पट्टणे सहसंव-वणे परिट्ठियउ तक्खणे। कप्प-रुक्ख-रेहंत-णिरंतरु सुरेहि-मि णिम्मिउ थाणु स-वित्थरु॥ ७ [१०] जं संवच्छरु एक्कु भमेप्पिणु धम्म-पहावण लोए करेप्पिणु सव्व-भव्व-जण-जणिउद्धारउ थक्कु महावणे णेमि भडारउ तं सहसाइउ वंदणहत्तिए णामें पउंडराउ गुरु-हत्तिए णाणा-रायउत्त-परिवारिउ णाणा-तूर-राव-झंकारिउ ४ णाणाविह-परिगहिय-पसाहणु सज्जिय-णाणाविह-वर-वाहणु णाणाहरणु स-रज्जु स-परियणु पवर-रहस्स-विणिक्किय-णिय-तणु स-सरु(?) स-मंति स-भिच्चुस-संदणु णिवु सद्देण पत्तु तं उववणु किय पयहिण समसरणु पइट्ठउ जिणु जयकारिउ कोट्टे णिविट्ठउ ८ घत्ता तो महुसूयण-भाइ महंता चरिम-सरीर धीर गुणवंता। जे देवइ-वसुएवेहिं जाया ते-वि तहिं जि छ-वि तक्खणे आया ।। ९ [११] जे-वि जमल सग्गहो अवइण्णा महुराउरिहिं आसि उप्पण्णा जे चिरु माया-वप्पेहि थाविया जाय-मेत्त कंसहो अल्लविया जे चिरु कय-वहु-पुण्णेहिं लक्खिय जे गउतम-सुरेण परिरक्खिय जे वणि-धणियहे सुलसहे दिण्णा मगह-सेट्ठि-घरे रिद्धि पवण्णा जाहं पिय वत्तीस एक्केकहो जे एक्कल्ल-मल्ल तइलोक्कहो तहिं अणीयजसु णामु पहिल्लउ वीउ अणंतसेणु सत्थल्लउ तइयउ पुणु णामेण जियंतउ चउथउ णिहय-सत्तु उब्भिय-भउ पंचमु पुणु जसदेवु पहाणउ छट्ठउ सत्तुसेण-अहिहाणउ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ रिट्ठणेमिचरित घत्ता ते सयल-वि सोहंत विसेसें णं छ-वि रिउवत्थियति(?) वेसें। णं छज्जीव-णिकाय पराइय णं छ-क्काल मिलेविणु आइय ।। ४ । [१२] दूरंतरे रहवर मुएवि तेहिं अइ-भत्तिए हरिवंसुब्भवेहिं सयलेहिं वंदिउ भव-भय-णिसुंभु केवल-जल-पूरिय-ति-जय-कुंभु विस-विसम-विसय-परुिरुद्ध-चित्तु भामंडल-किरणंतरिय-मित्तु संसार-सायरुत्तरण-जाणु दूरयरोसारिय-कुसुमवाणु पीणिय-दय-धम्म-विहय-विवत्त कालोय-जोय-पदत्ति(?)-जुत्त परिसेसिय-राइमई-सुकंत छड्डिय-सयणा विय सोहवंत पुणु धम्मक्खर णिसुणेवि सव्वु मेल्लेवि धणु जोव्वणु रूव-गवु जिणणाहहो पासे णिरंतराई परिपुच्छिज्जति भवंतराई घत्ता इय वयणेहिं तिहुयण-कय-सेवें णेमि-जिणसरेण संखेवें। अक्खिउ मायउ वहिणि जणेरउ चिर-भव-वइयरु कंसहो केरउ॥ ९ [१३] आयाणेवि णाहहो महुर वाणि थिय अग्गए सिर-संपुडिय-पाणि विण्णत्तु करहो दिक्खहे पसाउ अम्हहं कम्म-क्खउ अज्जु जाउ एउ चवेवि अचल-मण-णिम्मलेहिं पावज्ज लइय सहुं परियणेहिं सज्झाय-झाण-णियमेण जुत्त कालोय-जोयण-पहु उत्तिहुत्त(?) ४ परिकलिय-भीम-परिभण(?) विचित्त अण्णोण्ण-णेह-संवलिय-चित्त हुय वारहंग-सुय-णाण-लद्धि संपण्ण परम वीयार(?) वुद्धि एत्थंतरे चलिउ तिलोय-णाहु थिर-वाहंदोलिय-कमल-णाहु कु-विएसेहिं भूमिहिं पइसरंतु गिरि-पुरवर-गामहिं रइ करंतु ८ मंडलिय-सयहं पावज दिंतु दस-दिसए पसिद्धिए धम्म जिंतु Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सउमो संधि ७३ घत्ता णेमि-जिणिंदु एम विहरंतउ दारावइ-पुरवरु संपत्तउ। सुरवर-णिम्मिए थाणे सु-वित्थए थिउ उजिंत-गिरिंदहो मत्थए ॥ १० [१४] जिण-आगमणु सुणेवि अणुराइय वंदणहत्तिए जायव आइय अम(?)रह-णर-कुल-कोडि-पहाणा वासुएव-वलएव-पहाणा(?) णिसतु (?) समुद्दविजय-गय-वारण अचल-विजय-हिमगिरि-सिणि-सारण वसुएवाहिचंद-पिहु-पूरण थिय(?) समुद्द-अक्खोहाऊरण ४ दुंदुहि-दीवायण-मयरद्धय भोय-भाणु-अणिरुद्ध-जरद्धय संवु-सुभाणु विण्णि सुहि उट्ठिय णिसिअंकूर-विओरह वंधव विण्णि वि वारहेद्ध-सिणि-तणुरुह कुंतल-दयवर-विविविय(?)-सीहमुह तिह रोहिणि-देवइ-सिवएविउ सच्चहाम-रुप्पिणि-महएविउ रेवइ-पारि-गोरि-गंधारिउ पोमावइ-लक्खण-रइ-णारिउ तिह सुसीम-जंववइ-सवालउ उवहि-सुवण्णमाल-णामालउ सव्वइं भामरि देवि खणंतरे पइसारेवि समसरणभंतरे पारायण-पमुहेहिं सुर-सारउ णाणा-थोत्तेहिं थुणिउ भडारउ घत्ता जय परमेसर णिम्मल-सासण जाइ-जरा-मरणाइ-विणासण। जय जायव-कुल-णहयल-हिमयर जय संसार-सिंधु-सुर-गिरि-वर ॥१३ [१५] जय वावीसम-तित्थुद्धारण जय भवियायण-मोक्ख-पइसारण वंदण करेवि एवं परिउट्ठा कोट्ठए एयारहमे वइट्ठा सोहइ समवसरणु वित्थिण्णउं एयारह-गणहरेहिं रवण्णउं चउ-सय-पुव्व-धरालंकरियउं पण्णारह-सय-केवलि-भरियउ ४ तेत्तिय-अवहिणाणि विणिउत्तहं विउल-मइहिं णव-सएहिं पउत्तहं तिहिं लक्खेहिं सोहिउ वय-भासिहिं परिमंडिउ सावियहिं पगासिहिं अट्ठारह-रिसि-सहस-विहूसिउ सुहि-रामइं वरदत्तहिं (?) भूसिउ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ रिट्ठणेमिचरित वाइय-अट्ठ-सयहिं सोहंतउ एयारह-सय-वेउव्वंतउ अट्ठ-सएहिं एयारह-सहसेहिं मह-पमाणु सिक्खुएहिं असेसेहिं सावय एक्कु लक्खु दरिसावणु वर चालीस सहस अज्जिय-गणु घत्ता तहिं समवसरणे सुरेहिं पहाणेहिं णिय-मणे भाविय-धम्मक्खाणेहिं। किय-सिर-सेहरे सयं भुय-जुयलेहिं पुणु पुणु जिणु वंदिज्जइ सयलेहिं॥११ इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुव-कए उव्वरिए तिहुअण-सयंभु-महाकइ-समाणिए समवसरण-णाम सउमो सगो।। *** Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कत्तर - समो संधि एत्थंतरे माहव - मायरिए णिसुणंतहुं णरहुं सुरासुरहुं [१] तिहुवण - परमेसर जिणवरिंद चरई (?) पट्टु महु तण गेहु पल्हवियउ दुद्धु सिहिण जेत्तु तो चउ - गइ - विडवि - कुढारएण वहु- कालहिं मिलिएहिं णंदणेहिं पप्फुरइ वाम - डोलउ महंतु सहं उवरि वर- हु होइ जे पढम ति जमल पयण्ण आसि यि इगम - देवें साहिएण अप्पिय सुलसहे वड्डिय कमेण णामिय- सिरए चारु- मइए । जिणु परिपुच्छिउ देवइए || ( ध्रुवकं ) घत्ता माणेवि इह-लोयहो तणउ सुहु परिहरेवि परिग्गहु पुणु लइउ [२] इय जिण वयणेहिं उम्माहिय-मण वियलियंसु-जल-लव-मोत्तिय - सय देवइ पभणइ अहो मम पुत्तहो यमेवं छवि आसि विओइय वसई हत्थे म परिपालिय एवंहिं कह - वि कह - वि परियाणिय किं तव चरणें होहिं पहाणा - गय-दिवस पुच्छमि मुणि- वरिंद पिक्खेवि महु वडिउ परम-णेहु किं कज्जें फुरियउ वाम - णेत्तु उप्फालिउ णेमि - भडारएण अवसें आऊरइ पर थणेहिं जो पेच्छइ तुह सुय भवणु पत्तु यि दिट्ठ- सुयहं पुणु किं ण होइ ते एय महा-गुण- रयण - रासि रावण - महेलि गराएण (?) णं इय-वाह तोयागमेण - पेक्खेवि महु तणउ समोसरणु । अम्हहं पासे तव चरणु ॥ थोर - खीर - धारा - वरिसिय-थण गरुय - हरिस - कारुण्ण-सुरग्गय सयल-पगुण-गुण-गण- संजुत्तहो णिय - णयणहिं वडुंत ण जोइय एक्कु - वि दिवसुण लालिय तालिय एत्तिय कालहो पुण्णेहिं आणिय भूतिखंड मंडिय-महि- राणा - - ४ ११ ४ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरित करहो रज्जु उब्भहो मह-चिंधई मंडलाई सिझंत असिद्धई घत्ता लहु भाइ सहोयरु महुमहणु होउ सयलु भुवणाधरु पवरु । वलएव-पमुहु पेसणु करइ सयलु-वि जायव-णर-णियरु ।। मणे उच्चंत-णेह-संजायए जेवं पउत्तउ देवइ-मायए तं दसारुहेण साणंदें एम होउ वुच्चइ गोविंदें पडिवण्णउं रोहिणि-जाएण-वि इच्छिउ जायव-संघाएण-वि तं णिसुणेवि चवंति ते मुणिवर इय आलावण कहो-वि सुहंकर ४ जणि णरयंतु रज्जु सुणिज्जइ आयहो उवरि मोहु किह किज्जइ तुह गब्भन्भंतरे संभूया चिरु कय-कम्में दूरीहूया परिवड्विय मंदिरे वणि-पवरहो विच्छोइय सुहि-वंधव-णियरहो . रायउत्त हरिवंसुप्पण्णा विहि-वसेण मल परि(?)पवण्णा ८ कवणु कट्टु जो गइयउ पासिउ णेमि-जिणिंदें तो आहासिउ एय वज्ज-संघडण-सरीरा सुरहं वि अचल सुराचल-धीरा आएहिं केवल-णाणु लएव्वउं अविचलु सिद्ध-खेत्तु साहेव्वउं णेमिहो आलावेहिं सविसेसेहिं मुक्कु सोउ जायवेहिं असेसेहिं पत्ता ते देवइ-तणय-वि आरुहेवि उप्परि जावं महंत-गिरिहिं। आऊरिवि सुक्क-झाणु विमलु थिय सम्मुह सासय-सिरिहिं । [४] एत्थंतरे पुच्छइ किय-पणाम णिय पुव्व-भवंतर सच्चहाम जिणु पभणइ भद्दिल-णयरु आसि कमला-मरीइ-सुउ गुणहं रासि होतउ दिण्णउं जणयाहिरामु मुंडस-णयरु णु उद्धरिय-णामु तें णवम-जिणिंदहो तित्थ-छेए मूलहो-वि विणट्ठए धम्म-भेए ४ गोकण्णाइहिं सुवण्ण-दाणु अणेक्कु चउत्थउ भूमि-दाणु आइहिं सु-पसिद्धिहिं जगे णियाए जड-लोएहिं राएहिं मण्णियाए Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ एकुत्तर-सउमो संधि मिच्छत्तु पसंसेवि गयई ताई संचेवि णाणा-दुक्किय-णिहाउ कह-कह-वि कमेण पुणोवइण्णु इय मइरामिस-वस जण कियाई सो मरेवि णरए सत्तमए जाउ तिरियत्तणु मणुयत्तणु पवण्णु घत्ता तीरंतरे गंधावइ-णइहे सिहरे गंधमायण-धरहो। पव्वउ णामेण किराउ हुउ वल्लरि पिय णामें महिल तहो॥ एक्कहिं दिणे सिरिहर-धम्म-णाम दुइ चारण लक्खिय सिद्धि-काम उवसमिउ पासे तुहुँ गरुय-गत्तु उववासु लइउ पुणु मरणु पत्तु महवल-रायहो सलया-पुरिहिं जोइय-मालाधर-खेयरिहिं सय-वलिहिं अणुउ दिढ-कढिण-काउ णंदणु हरिवहणु तासु जाउ सिरिहरहो पासे होएवि स-दिक्खु एहु णाणुप्पाएवि चडिउ मोक्खु जेठूण विरोह-कियायरेण हरिवाहणु वारिउ भायरेण भगली-देसब्भंतरे विसाले उत्तुंगे अंबुआवत्त-सेले दुइ चारण लक्खिय गरुय धीर णामें सिरिधम्माणंतवीर तहो पासे लएप्पिणु तवसि-मगु ___ वहु-दिवसेहिं गउ ईसाण-सग्गु दुइ रयणायरई वसेवि तेत्थु तुहुं सच्चहाम पुणु जाय एत्थु ना घत्ता इह धम्मु लएप्पिणु तव-चरणु आरणे होएवि अमर-पहु। पडिआएवि कम्म-क्खउ करेवि पुणु परिणेसहि सिद्धि-वहु॥ ११ इत्यंतरे पुच्छिउ रुप्पिणिए जिणु अक्खइ अमरालय-विसेसु तहिं लच्छिगामु सु-महा-पहाणु तहो लच्छिमइ णामेण विप्पि एकहिं दिणे दुद्धर-तव-विउत्तु पुणु सत्तहं दिवसहं मज्झे पवर णिय-पुव्व-भवंतरु रुप्पिणिए इह वेणि(?)अत्थि वर-मगह-देसु दिउ सोमएउ चउ-वेय-णाणु रूविं तहे सम तिय णहि कहि-वि मुणि जिंदिउ णिएवि समाहिगुत्तु ओ दुद्धर-कोढिं गलिय णवर ४ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ फुडियंगुलि दुक्खिय गलिय-गत्त हुयवहे पइसेविणु मरणु पत्त पुणु जाय महिसि मुज्झोड्डि(?) सारि मुय तहिं-वि चडाविय लवण-भारि मगहापुरि सूयरि-जम्मे आय हय जणेण साणि पुणु तहिं जि जाय घत्ता गोट्टहिं णिविडंतरे सुत्त किर अच्छइ जाम विमुक्क-भय। वणयरु उद्धाइउ तावहिं धणु उद्धरियउ स जे मय ।। पुणु मंडुक्किहिं मंडुक्क-गामे जाया मच्छंधिहे तियय-णामें सुय हुय दुगंधि मायए विमुक्त वर-जाल-हत्थ वड-रुक्खु ढुक्क हेमंते तेत्थु रिसि दिङ णवरि सहसा जालें पच्छइउ उवरि दिणमणि-उग्गमणे णिरंतराई कहियइं तहे चिर-जम्मतराई तहिं धम्मु लइज्जइ धीवरए उवढुक्कु मरणु वहु-दिणेहिं तीए सुणु सोप्पारए पुरे जग-पसिद्धे उप्पण्ण कणय-धण-कण-समिद्धे वहु वय धरंति तव-अज्जिएहिं ..। मगहापुरु गय सहुं अज्जिएहिं पुणु णवेवि सिद्ध-सिल तक्खणेण मुय णीय-गुहहिं सल्लेहणेण अच्चुयइंदहो पुणु जाय देवि पण्णास-पंच-पल्लई गमेवि कुंडिल-पुरे लच्छिहे गब्भे आय पुणु रुप्पिणि भिक्खहो धीय जाय घत्ता एवहिं इह जम्मे लएवि तउ सग्गे होवि अमराहिवइ। तत्थहो चवेवि पडि तउ करेवि पावसइ पंचमिय राइ॥ [८] तहिं अवसरे पुच्छइ जंवुवइ कहि महु भव-णिवहु जिणाहिवइ तं णिसुणेवि जग-जण-जणिय-दिहि अक्खइ परमेसरु णाण-णिहि इह दीवे मेरु-पुव्वहिं दिसए सुपसिद्धए पुक्खलवइ-विसए सग्गोवम वीयसोय-णयरि सुरयण-मण-णयणाणंदयरि देवमइ-गब्भे देविलहो सुय हालिय-हरि जसमइ-णाम हुय सा दिण्ण दिणेहिं सुमित्त-वरहो णिव्वेइय मणे मरणेण तहो Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कत्तर - समो संधि सम्मत्तु दुरिय- तिमिरोह - रवि लोइय- दाणेहिं उववास करेवि णंदण-वणि कडणिहिं मंदरहो घत्ता चउरासी वरिस - सहासई जिण - धम्म - रहिय चिरु कालु पुणु [8] पुणु अइरावइ-वर- विजय- पुरे विंधमइहे गब्र्भे चंदमुहिय णामेण वंधुजस कण्ण वर उवलद्ध परम उववास - वय पुणु धणयहो णिरुवम - रूव- जुय पुणु जंवदीवे दीव पवरे आवेविधु वज्जमुट्ठि - पहुहे सुयरिसण अज्जियहे पासु गइय भिंदो जाय मणिट्ठ पिय दाहिण - सेढिहिं वेड-धरे जंवमहि - गब्भे विसुद्ध - मइ घत्ता कांइंहिं- विवासरेहिं करेवि तउ विदणु तुहुं दिक्ख विलहेवि [१०] तहिं अवसरे सई सु-विणय सु-धीम वज्जरहि पवर- चउ-कम्म- डाह रिसि संसग्गुवि तहे लडु णवि वहु कालु गमेप्पिणु पुणु मरेवि हिणि णंदण - विंतरहो देव - भोउ भुंजेवि चविय । चउ - गइ - सायरे परिभमिय ॥ उज्जंगल - विउल - पउर-पउरे हुवंधुसेण - रायो दुहिय सिरिमइ - कंतियहे पासे णवर कण्ण-वि जिण - संणासेण मुय णामेण सह पत्तिय सिय- लिए पुंडरिकणि णयरे हुय सुमइ सुभद्दा - णव- वहुहे मुत्तावलि तउ करेवि मुइय तेरह पल्लई लंघेवि चविय पुणु जंबुद्धुर-जव - णिवहो घरे उप्पण्ण एत्थु तुहुं जंवुवइ होसहि सग्गे पहाणु सुरु । पुणु पइसेसहि मोक्ख- पुरु ॥ कर मउलिकरेवि पुच्छइ सुसीम महु जम्मंतर तिलोय - णाह इय-वयणेहिं तिहुवण- सिरि- णिवासु आहासइ णिग्गय - दिव्व-भासु सिरि-धादइ- संडे विसाले दीवे वर - पुव्व - विदेहहो मज्झे विज‍ पुव्वद्ध-मंदरद्दि समीवे वित्थिपणे मंगलावत्त-विसए ७९ १० ४ १२ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० रिट्ठणेमिचरिउ कणयउरे रयण-संचए सुसेणु पहु होतउ णामें विस्ससेणु तहो भज्ज अणुंधरि सुमइ मंति भाविय-जिण-धम्म-छणिंद-कंति एत्तहे-वि दुहिय महि-कामधेणु वज्झाउरि-राणउ पउमसेणु चउविह-वलेण सहुँ उवरि आउ महा-संगामु रउद्दु जाउ सो भड-संदोहहो भउ जणेवि गउ विस्ससेणु णरवइ हणेवि घत्ता पडिवोहिजंति-विसावएहिं तहिं अप्पमत्त सम्मत्त सुय । साणुंधरि विससेणहो वल्लहिय जलणवेय विंतरि वि हुय॥ १२ [११] दस-वरिस-सहासेहिं तहिं चवेवि संसार-महण्णवे चिरु भमेवि पुणु जंवूदीने विदेह-मज्झे सीया-णइ-दाहिण-तडे दुसज्डो रम्मक्ख-खेत्ते सुहमालि-गामे जक्खिल-सुरसेणहे मिहुण-धामे सुय णामें जक्खाएवि जाय । ति-वेसें जक्खिणि णाई आय एक्कहिं दिणे णिम्मलु करेवि चित्तु गय जक्खं-गुह पुज्जा-णिमित्तु तहिं धम्मसेणु गुरु ताम दिछु तें सावय-धम्मु असेसु सिङ अण्णहिं दिणे मह-भत्तिए समाणु णिरवज्जु देवि तहो अण्ण-दाणु गय विमल-सेलु कीलणहो जाम पीडिय अकाल-वरिसेण ताम णासेवि पइट्ठ गिरि-गुह खणेण तहिं गसिय भीम-पंचाणणेण तुहुं हुय हरिवरिसे दु-पल्ल-आउ पुणु जोइस-गणे पलिओवमाउ पुणु पोक्खलावइ-विसय-मज्झे पुरे वीयसोए सुरेहि-वि दुसज्झे सिरिमइ-असोयरायहं स-रूव णंदणि णामें सिरिकंत हूव जिणयत्ता-गणिणिहे समीवे कण्ण तवयरणु घित्तु णिज्जिणेवि सण्ण णिम्मलु रयणावलि-वउ करेवि माहिंदे सुरंगण हय मरेवि । एयारह पल्लई तहिं गमेवि सहुं सक् सुहु भुंजेवि चवेवि पुणु जाय एत्थु सोरट्ठ-देसे गिरिणयरे सुजेट्ठा-गब्भ-वासे णंदणि सुरद्धवद्धण-णिवासु तुहुं जाय सुसीम ढुक्केवि तासु १६ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कुत्तर-सउमो संधि घत्ता संपइ तव-चरणु करेवि जाएसहि सोलहमए दिवे। तत्थाउ चवेवि छेहिल्लउ वउ पावेवि जायसि परम-सिवे ।। __ [१२] पंचम तह सव्वंग-सलक्खण वासुएव-पिय णाम सुलक्षण पय-णेउर-झंकार करती पुच्छइ णेमि-चलणे णिवडंती अक्खहि महु गय भव परमेसर जह भमियई भव्वज्ज-दिणेसर तं णिसुणेवि जिणेसरु अक्खइ हरि-पिय-पुच्छिउ गुज्झु ण रक्खइ ४ जंवूदीवहो पुव्व-विदेहए कच्छा-जणवए सीयोत्तरे थिए तहिं अरिठ्ठपुरे राउ सुवासउ वासउ णामें णं पुणु वासउ तासु सुमित्त भज्ज गुणवंतउ तसु सुसेणु जायउ पिय-भत्तउ णिसुणेवि सहसंव-वणे स-भज्जउ राउ उवहिसेणहो वंदण गउ ८ जिणवर-धम्म सुणेवि रिसि-भासिउ पुत्तहो रज्जु देवि तव-वणे गउ णउ भज्जए सुय-मोहासत्तए कइवय-दिणेहिं कालु किउ अट्टए जाय पुलिंदी विंझ-गुहाणणे दिट्टु णंदिवद्धणु चारणु वणे णिसुणेवि चिर-भवाइं सावय-वय पडिगाहेवि पुणु सण्णासें मुय अट्टमे दिवे णारिय सुक्खासिणि हुय घणमालिणि-णाम सुहासिणि पुणु इह भरहवरिसे खयरालए दाहिण-सेढिहिं पुरे ससिउरकले राउ महिंदु अणुंधरि-भजहे हुय सुय कणयमाल णिरवजहे हरिवाहणें महिंदपुर-ईसें ऊढिय सयंवरे मंगल-घोसें संजाया पिय-वल्लह कामिणि सिद्धकूडे गय सपिय णहे दिणे घत्ता चारण-रिसि-भासिय-णिय-भवई णिसुणेवि शिंदेवि जम्मु तिय। मुत्तावलि-वउ उद्धरु चरेवि अंतहिं अणसणु करेवि मुय॥ १८ जाया तइए सग्गे सुरवइ-पिय संवररायहो हिरमइ-णारिहे भुंजेवि णव-पल्लाउ स पुणु चुय तुहं संजाय-विविह-गुण-धारिहे Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ पउमसेण-धुयसेणहं लहुई लक्खण-णाम पुत्ति गुण-गरुई हरि-सोहगु सुणेवि तुहुँ पियरें आणेवि दिण्ण भणिउ किं इयरें पुण्णे लडु महएवित्तणु इय तउ करेवि लहेवि अमरत्तणु तइयए भव सव-पउ पावसहि मा महु वयणे भंति करेसहि णिसुणेवि तित्थणाह-रंजिय-गुण मिहो पाए लग्ग पमुइय-मण घत्ता एत्तहिं पणवेवि जिण-चलण-जुय णारी-यण-जण-सारी। केसव-पिय छट्ठिय णिय-भवई पुणु पुच्छइ गंधारी । [१४] भणइ भडारउ सु एम णिसण्णहिं णिय-भवंतराइं आयण्णहि भरह-खेत्ते कोसल-विसयंतरे विणयाउरि वण-सहल-णिरंतरे रुद्ददासु तहिं सेट्ठ रसावइ (?) वियसिय-कमल-वयणु णं भावइ विणयसिरि त्ति भज्ज सु-महुर-सरे पिय-सह गय सिद्धत्थ वणंतरे सिरिहर-मुणिहे दाणु तहिं देप्पिणु मुक्केवि संचिउ समए मरेप्पिणु णिय-पुण्णेण जाय उत्तर-कुरु- णाहु मरेवि कहि-मि जायउ सुरु पल्ल-त्तय भुजेवि रुइ-रुंदहो चंदमई पिय हूई चंदहो पुणु इह जंवूदीव-मज्झंतरे भारह-खेत्तहो खयर-महीहरे ८ उत्तरसेढिहिं णहवल्लह-पुरे विज्जुवेअ-विज्जुमइहिं पिहुसिरि उच्छिणि(?)-णाम पुत्ति उप्पण्णिय जय-पिय वल्लह-हाडय(?) वण्णिय णिच्चालोय-णयरे णिव-चंदहो सुच्छाहें दिण्णिय माहिंदहो घत्ता संपाइए गिहे चारण-जुअले देवि दाणु णिसुणेवि गुरु-भासिउ। णंदणु हरिवाहणु पए ठवेवि तहो पय-मूले उण वासिउ (?)॥ ताए सुहद्दज्जिय-पयमूलए सव्व-भव्व-उववास-विहाणे जाय सुहम्मेसहो मण-वल्लह लइय दिक्ख मण-तुह-पडिकूलए जिणु सुमरंतिए चत्तिय-पाणे पढम-सग्गे अच्छरयण-दुल्लह Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकुत्तर-सउमो संधि पंच पल्ल अणुवमु सुह-कित्तणु भुजेवि तेत्थु चारु देवित्तणु कालें तहे वि जाउ परियत्तणु इह गंधार-विसए संचिय-धणु राउ पुक्खलावइ चंदाणणु णिय-भुय-वलेण परज्जिय-अरियणु वासवगिरि-मेरुमई-कंतहु हुय गंधारि धूय गुणवंतहु किर मेहुणहो दिजइ लग्गी णारएं कहिउ कण्हु तुह जोग्गी तेण-वि पडिविवक्खु अणिमाणिउ(?) कण्णा-रयणु गिहासमे आणिउ लद्धउं पइं महएवि-पहुत्तणु चारु-लोयणे जिय-अच्छरयणु घत्ता तउ करेवि हरेवि तिय-जम्मु णिरु पावेवि अमर-पहुत्तणु। सिज्झेसहि कावि भमंतिकरे (?) इह तउ करेवि णिरंजणु ॥ [१६] तं णिसुणेवि सा-वि पमुइय-मणु जिणु पणवेवि णिग्गय णिम्मल-तणु एत्तहिं जिणु पणवेवि सइत्तिय पभणइ गोरि-णाम हरि-पत्तिय चउ-गइ-गमण-दुक्ख-संतत्तिय पुणु-वि पयत्तण-भय-कंपंतिय किं हउं भव्व अभव्व जिणेसर कहहि देव महु उहय-भवंतर पभणइ णेमिणाहु सुणि सुंदरि तुहुं आसण्ण-भव्व न डरु करि करि गयवर-पुरे धणदेउ महा-धणि सेट्ठि तासु पिय णामें जसस्सिणि घर-सिहरोवरि ठिय चारण-मुणि अवलोएवि सुमरिय-गय-भव मणे अक्खिउ सहियहिं धादइसंडए पुव्वामर-गिरि-उत्तर-खंडए तहिं असोय-पुरे जाया सेट्ठिहे णामाणंदहो णिम्मल-दिट्ठिहे घत्ता अमियाइअ-सायर-मुणिवरहो देविणु दाणु पहिट्ठए। तहो फलेण कियइं पंचुद्धवइं देविहे मणे परितुट्ठई ।। [१७] विस-जल-संगें स-पिउ मरेप्पिणु गउ सुर-कुमरु णिय-देहु मुएप्पिणु पुणु दिवे ईसाणेदहो कामिणि तत्थहो चएवि जाय हंसहिं मुणि पुणु तिण्णि घर-धण-मोह णिसुंभेवि णामें सुभडु मुणीसरु वंदेवि ४ ८ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ ४ लइउ पोसहु समए मरेप्पिणु सोहम्मेसहो कंत हवेविणु कउसंवीहिं सुमित्त-सुभद्दहो जाय पुत्ति गुण-जुत्तहो धम्ममइ त्ति धम्म-संपण्णिय वर-लायण्ण कणय-कण-वण्णिय जिणमइ-अज्जिए पासे लएप्पिणु । जिण-गुण-संपय वउ पालेप्पिणु मुय मह-सुक्केंदहो वल्लह पिय हुय तयवीस-पल्ल-सायर-मिय पुणु गयसोय-णयरे खंदमइहे मेरुचंद-रायहो गुण-गरुयहे गोरी-णाम धीय णं अच्छर तुहं संजाय पयासिय-सर-सर घत्ता आणेवि दिण्ण णारायणहो तेण दिण्णु महएवि-पउ। णर-सुर-सुह भुंजेवि तइय-भवे पुणु पावसहि परम-पउ । [१८] तहिं अवसरे णवेवि जिणिंद-पय पोमावइ पुच्छइ विगय-भय तित्थंकर दुक्ख-णिरंतरई तुहं पभणहि महु जम्मंतरइं जिणु कहइ पुत्ति संभलहि सई उज्जेणिहिं आसि णराहिवइ अपरजिउ-णामें पवर-सिरि तहो विजय-घरिणि सुय विजयसिरि ४ सा हत्थिसीस-पुर-पत्थिवहो दिण्णी हरिसेण-णराहिवहो एक्कहिं दिणे ताम मुणीसरहो हेलाए जिय-वम्मीसरहो आहार-दाणु सुयंधु पवरु अइभत्तिए दिण्णु छुहंतयरु कालागुरु-धूवें गब्भहरे पुणु सुव मह-णिद्दहे तणए भरे रिसि-दाण-भोगि सुहक्कुवइ उप्पण्ण खित्ति सा हइमवइ पल्लेक्कु गमेविणु तहिं-वि मुय पुणु तारा-णाहहो देवि हुय चंदप्पह-णामें सुंदरिय मण-वल्लह णयण-सुहंकरिय णाण-मणि-रयणाहरण-जुय पल्लट्ठम आउ गमेप्पि चुय घत्ता पुणु एत्थु भरहे मगहा-विसए सामिलिसंठि-गामे पवरे। देविल-गब्भंतरे संभविय जयदेवहो गहवइहे घरे । Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ एकुत्तर-सउमो संधि [१९] तहे णामु विणिम्मिउ पउमएवि अवइण्ण णाई सई पउमएवि लहु पउमएउ णामेण भाइ तें सहुं णंदण-वणे जाम जाइ तहिं ताम दिछु वरधम्मु साहु अहिणंदेवि दुहिय-पयंग-दाहु वउ लइउ ण णजइ णामु जासु ___इह-भवे णिवित्तु महु फलहो तासु अवरेक दिवसे वाह-प्पहाणु उक्खंधे आयउ चंडिवाणु सो सहसा सयल्ल-वि गाम लेवि गउ पउमएवि वंदिउ धरेवि चडु वार-सयाइं करंतु ताए ण समिच्छिउ सीलालंकियाए परियाणेवि तं मगहेसरेण सीहरहें णिहउ स-मच्छरेण घत्ता भय-भीउ असेसु-वि पल्लि-जणु हरिणु णाई समूढ हुउ। भक्खेवि किंपाय-दुमहं फलई काणणे ढुलढुल्लंतु मु॥ [२०] ता पुणु जयएवहो तणिय धीय सा पच्चक्खाणु मणेण लेवि उप्पण्णी पुणु हइमवइ-खेत्ते पुणु तत्थहो दीव-सयंभुरमणे विंतर-सुरवइहे सयपहासु तत्थहो पुणु भरहे जयंत-णयरे उप्पण्ण विमलसिरि सिरिय दुहिय पोढत्ते मलय-विसयाहिवासु सइमेह-णाम-णामंकियासु हुउ मेहघोसु णामेण पुत्तु भिल्लाहिवेण जा हरेवि णीय दिढ-वय अणसाइय-फलु मरेवि स विएक्क-पल्ल-आउस-णिउत्ते घरिणि हरिसिय-पहि अमर-रमणि ४ हुय णामें सयंपहदेवि तासु सिरिहर-रायहो सिरिमइहे उवरे छण-दिण-समुद्द णं लवण-मुहिय सिरि-भद्दिल-पुरवर-पत्थिवासु ८ अच्चंत-विहोए दिण्ण तासु वहु-कालें णरवइ मरणु पत्तु घत्ता तहो तणए विओएं विमलसिरि सहसा कलुणु समुन्भविय। दिढमइ-पउमावइ-कंतियहिं पासु पढुक्केवि पव्वइय ॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठणेमिचरिउ [२१] णामें आयंविलु वड्वमाणु वहु-दिणेहिं मरेवि दिण-सार-भूय वंदार-वहुय-सहसहं पहाणु पुणु तुहुं अरिट्ठ-पुरे धण सुणाहि सिरिमइहे गब्भे चामियर-छाय पच्छिमए काले तव-चरणु लेवि इंदत्त-महासुहु अणुहवेवि उप्पाएवि णिम्मलु परम-णाणु ४ तउ घोरु चरेप्पिणु सुह-णिहाणु सहसार-सुरिंदहो देवि हूय एगवीसहिं पल्लंकियवसाणु भुवण-त्तय-पयडु सुवण्णणाहि आएवि पउमावइ एत्थु जाय सोलहमए सग्गे समारुहेवि वावीसहिं रयणाहरहिं एवि जाएसहि पुणु णिव्वाण-ठाणु घत्ता तंणेमि-जिणिंद-वयणु सुणेवि परियाणिय-भव-भव-गइए कर मउलि-करेप्पिणु स-रहसए किय वंदण पउमावइए । [२२] जिह अट्ठ-महाएविहिं तणाई कहियइं भव-सयई चिरंतणाई तिह रोहिणि-रेवइ-देवइहिं अवरहि-मि अणेयहिं थीमइहिं तो केहि-मि तहिं सम्मत्तु गहिउ केहि-मि दंसणु चारित्तु लइउं केहि-मि मग्गियई महव्वयाइं केहि-मि पुणु पंचाणुव्वयाई केहि-मि इच्छियइं गुण-व्वयाई केहि-मि चयारि सिक्खा-वयाई जिणु थुणेवि स-जायव-सुहड-विंद गय स-रहस संकरिसण-उविंद णं विण्णि-वि विजय-तिविट्ठ भाय णं राहवचंद-सुमित्त-जाय परिओसें दारावइ पइट्ठ णिय-णिय-सहाए लीला-णिविट्ठ ८ तेत्थु-वि हरि-भायर परम-सत्त केवलु उप्पाएवि मोक्खु पत्त घत्ता जग-णाहु-वि भव्व-हियत्तणेण अट्ठ महा-गुण-मणि-उयहि। णिरुवम-धम्म-विहूसणेण भमइ सयं भूसंतु महि॥ इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभु-उव्वरिए तिहुवण-सयंभु-महकइ समाणिए कण्ह-महिल-भव-कहणमिणं एकुत्तर-सउमो संधि ।। *** Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिउत्तर-सउमो संधि १ ४ विहरंतए जिण-णाहे अवहत्थिय-माण-मडप्फर । चउ-गइ-भव-सय-भीय पव्वाइय अणेय णरेसर ॥ (ध्रुवकं) [१] एत्थु-वि ओसारिय-णइवइहिं वइसवण-कियहिं दारावइहिं कामिणि-जण-णयणाणंदणहो तहो देवइ-अट्ठम-णंदणहो णव-णीलुप्पल-दल-सामलहो । पंचाणण-सहस्स-सम-वलहो णारायण-लहु-एक्कोयरहो। गय-णामहो णव-जोव्वण-वरहो चक्काहिव-पमुहेहिं जायवेहिं रोमंचाऊरिय-अवयवेहिं आढत्तु विवाहु महोच्छवेण वद्धावण-तूर-महारवेण सुय सोमसम्म-विप्पहो तणिय णामेण सोम सोमाणणिय धवलुजल-लइय-पसाहणिय वर-वंस-जाय णव-जुव्वणिय अणेक्क विद्दुम-रायंगरुह विवहल-उट्टि सिय-कमल-मुह पहवइ-णामें जग-पायडिय णावइ सइ सग्गहो आवडिय पत्ता वेण्णि-वि कण्णउ ताउ मंडिय जेम मह-तेयउ। तेम विवाहाणामत्तु मउलिय सुयाउ अणेयउ॥ ८ [२] दुद्दम-दणुग्ग-देह-दलवट्टिणि घरे घरे चंदणेण छडु दिण्णउ मणि-तोरण तोरणई णिवद्ध घरे घरे पहयई वर-वाइत्तई घरे घरे मोत्तिय-रंगावलियउ घरे घरे उज्जलियइं वर-चित्तई घरे घरे पुप्फ-पयर वित्थारिय णिम्मिय-सोह महंती पट्टणे घरे घरे उरे उरि रहसुन्भिण्णउ घरे घरे पेक्खणइं पारद्धई ++++++++++++ कियउ स-सोहियाउ देवलियउ घरे घरे पहिरियाई परिणेत्तई घरे घरे समलव्वउ(?) वर-णारिउ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ घरे घरे देइ दाणु सयलु-वि जणु ८ घरे घरे किउ कुंकुम-संमज्जणु घत्ता ४ जहिं पुरे जिणु उप्पण्णु जं खणु-वि ण सिय परिवजइ । जहिं णिवसइ सई कण्हु तहिं सोह काई पुच्छिज्जइ । [३] अवरण्हइ किर सोहइ विवाहु तहिं तेहए अवसरे णेमिणाहु अहिणव-कमलोवरि संचरंतु जाइ जीवहं पडिवोहणु करंतु वहु-णयरुज्जाणेहिं पइसरंतु भव-जलहिहे भव्व समुद्धरंतु वंसहर-विसय-सहसई णियंतु | णरवर-लक्खहं पावज दिंतु जीव-दयामए णावए धरंतु उज्जेंत-महीहर-सिहरु पत्तु सु-णिविट्ठ सुणेवि तहिं ण किउ खेउ गउ वंदणहत्तिए वासुएउ गय स-रहस स-महिल दस दसार वसुदेवहो सुय वम्मह-कुमार पिहु-दुंदुहि-सिणि-अणिरुद्ध-भाणु अंकूर-विम्हि-सच्चइ-सुभाणु भोयंधय-संवुकुमार-कुंत णइंद-विउर-हरि विणयवंत सिणि-सढ-जरुद्धव-चारुजेट्ट दीवायण सुहि जउ चारुजेट्ठ (?) , घत्ता एवं-वि अवर-वि सव्व णय-मुह पियएहिं वरिट्ठ। जय जय णाह भणंत जणा वर-समवसरणु पइट्ठ॥ ८ _[४] गय-णामु-वि उत्तमु परम-सत्तु तित्थयर-चलण-वंदण-पसत्तु अहिमयर-सम-प्पह-रहवरत्थु वित्थय-वच्छत्थलु सई महत्थु णिय-मुह-जिय-ससहर-सहसवत्तु जिण-मुणि-गुरु-जणण-जणेरि-भत्तु कडि-वलय-परज्जिय-हरि-णियंवु तव-तेहोहामिय-तवण-विवु भुय-जुय-जिय-वड-पारोह-सोहु वहु-चिहुर-विसोहिय-महुयरोहु गुरु-ए(?)णयालंकिय-सयल-गत्तु अवलक्खण-अवगुण-णिवह-चत्तु मंदार-धराहर-पवर-धीरु जल-वाहिणि-पाल-महा-गहीरु ४ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिउत्तर-सउमो संधि ८ स-पसाहणु महुसूयण-मणिदु अणुलगु कण्ह-रामहं पइड . घत्ता एएहिं विजय-पमुहेहिं सीसग्गे चडाविय हत्थेहिं। जिण-वंदण पारद्ध भत्तिए जायवेहिं समत्थेहिं ।। जय जय चलुच्चारुप्पाय-छत्त-त्तयासोय-दिव्व-ज्झुणी-दुंदुहीपुप्फ-विट्ठि-मइंदासणोरु-प्पहा-मंडलाणेय-चारु-प्पडायाइ-रिद्धिं-जया । जय जय असुरिंद-णागिंद-देविंद-आसिंद-अगिंद-वाइंद-गंधव्व-जक्खिंदभूइंद-पेइंद-खगिंद-विंद-त्थुया। जय जय वर-राय-रोस-च्छुहा-भय-खेय-तिसा-विब्भय-दोस-णिद्दा-जरा-मोहचितारई-मद्दवाहा-विसाया-दुहुप्पत्ति-संताव-लोहुज्झिया। जय जय माण-माया-भराइ-सल्ल-त्तय-दुग्गम-कम्मिंदिय-कसाय-पमाय-अंतराउहसंखोह-मिच्छत्त-विच्छड्ड-दूरस्सया गिज्जिया। जय जय विमलिंदणीलालि-संदोह-कंदोट्ट-कंकाल-जीमुत्त-ईसाण-गीवातमालंधि-वोहायसि-पुप्फंजणोपाय-वाम-पूरोह-कंठ-प्पहा । जय जय महा-वज्ज-राजीव-चंदक्क-साइ-दूसयारमाया-माला-समुद्दा सकुंतावत्तंतणारी-सरिसच्छिए-भारि-मीणाई-सोविल्ल-देहावहा। जय जय तव-संजम-णंत संधीरिय-णाणा-सीलोह-तेलोक्क-पोमा-सिरीवच्छ-लंछच्छया-दया-धम्म-सम्मत्त-चारित्त-एक्कल्ल-माणिक्क-पुंजालया। जय जय घोर-संसार-दुत्तार-दारिद्द-दोहग्ग-दुव्वाह-दुम्मोह-दुब्भावलल्लक्कयाविक्क-दुभिक्ख-काल-कलि-दुम्मई-दारु-पज्जालया॥ ८ ___ (ध्रुव-दंडक) घत्ता विट्ठि-दु-सउण-गहाई अवरइ-मि जाइं अपसत्थई। तुह मुह-दसणे देव धू सव्वई हु होति पसत्थई । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० [६] वंद कवि एवं पुणु पुणु गंतूण पाय-पुरउ णिविट्ठ संमुह जिणवरहो सयल - वि जायव तहिं तित्थर - णाहुतइलोक्कु सव्वु जो पेक्खइ धमक्खाणु झाणु दिव्व-ज्झणि पसरइ अक्खइ समयावलि - समूह - णीसेस - सव्वोवलय - णाडिउ एक्कु मुहत्तु पमुह लक्खणेक्क- परिवाडिउ वर- पुव्वंग - पुव्व - पल्लद्धि-कालु परिचत्तइं कुलयर - समय -जीय- उत्थिह - महिसिय- णामत्तई ॥ तित्थयराण देही हत्तवण्ण-अहिहाणइं अंतर - -जम्म पिउ-माय-परि-परिणामइ - पुव्व हायण - अयण-पवर - रिउ - मावस पक्ख राह - दिवसई सिविणावलि - सुजोय - णक्खत्तई रासी करइ वार - मुहुत्त - लग्ग - मह - दिवस - उवयरण - विहाणइं णाणा- रयण - वरिस - मंदिर सुरिंद किय-हाण लंछामय- पउम-सुकुमार- कार - वाइत्तइं भोगासत्त-समय- वइराय-भाव- - विणिमित्तई ॥ सिवि - दिक्खा - वास-पारणय- पुरिस-कम्मत्थई णाणुपति क्ख देवागमाई सुपसत्थई केवलि - कालु समवसरण -तय-पल-आयामई गणहर-सवण- सर्वाणि-साविय - पमाण- गुण - णामई संचिय- पुव्वायरिउ चउव्विहु विउल - विच्छित्तिउ सिक्खिय- अवहि - णाणि केवलिय- वाइ- उप्पत्तिउ दिव्व-ज्झणि - विणिग्गमाणेय - तत्त वक्खाणइ सयलेहिं गियद्धु चक्केसर थुणियइ जिणेसर - थाई ॥ - - १२ रिट्ठणेमिचरिउ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिउत्तर-सउमो संधि घत्ता जण-मणे उवसमु णेइ जगे समवसरणु संचरइ। सासय-पुर-गमणाई चउब्विह-पुज्जा-करणइं॥ पवर-सयल-चक्काहिव-वम्मह-णारय-रुद्दहं कामपाल-णारायण-महपडिसत्तु-णरिंदहं तिविह-भोग-भूमी-माणुस-जिण-सासण-देवहिं जक्ख-देव-विज्जाहर-देवहिं जिणंघि-सेवहिं णाम-जाइ-संघासंगत्तण-वल-वीरत्तई अंतराउच्छाया-गुण-विक्कम-गंभीरत्तई सिय-विहोय-सुपरक्कम-पोरिस-साहस-सहसइं हि-णिहाण-रयणुब्भव-मेहलि-णिवह-विसालई वर-कुमार-मंडलिय-विजय-महियल-परिभमणइं संगरे खग-पत्तण जिणवर-वंदण-गमणइं अंग-जाय-अंतेउर-किंकर-मंति-पमाणई वेय-दुंदुहि-सिइंत-मउडाहिव-वर-विसयाणइं घत्ता सुह-दुह-विच्छायइं इंदिय-परिसमणासमणई। तव-चरण-तवणाई सासय-गइ-दुग्गइ-गमणइं॥ [८] मंदर-णंदण-वण-कुलगिरि-गण-णव-णव-पसगणवर (?) देवय-परिभूसिय-भवणुब्भासिय-सकमल-कमल-सर जिण-ण्हवण-सिलायल-सिंग-समहियल-कूडई मणहरई णाणा-मणि-भित्ति-मत्तग्गय-कित्तिम-जिणहरई णइ-णिवडण-कुंडई वर-वित्थिण्णइं चक्काल-हुय-मह-सरिउ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ वेड - गुहा वर - खेयरि खेयर उहय सेढी पुरिउ कप्प - हुम-खेत्तई भूमि - विचित्तई चक्काहिव - जिय सु-विभंग - सरीवर - जक्खाहिव - थर - वक्खार - दिसय रायउरारण्णइं सुड्डु रवण्णइं पवराई जाय वेव वर - दारयामर स्तयरविराइं ( ? ) वेलंधर - दीवई सेल - समीवइं गज्झम ( ? ) - भीम - तरु मारुय-गम-भंजणई सुर-रंजण दहिमुह वर णिहरु वावीउ रयण - गिरिंद मेरु- कुरु - दह - संख घत्ता रुहण (?) - देवालय - सिहरई । अनमाण दीव - मयरहरई ॥ - [९] किण्णर- किंपुरिस - गरुड-गंधव्व- जक्ख- रक्ख भूय-1 - पिसाय सुराहिव-करण - सरोरुह-रुक्ख दीवहि थाणिय विज्ज कउर्हाग्गे मरुकुमारा । ससहर - दिवसयर - पवर- गहणियर - रिक्ख - तारा वरसग्ग विमाण पडल सेढी गयंवराई पुप्फवइ - णव-विसाल - सीतय (?) - अणंतराई वित्थार सरूवणामप्पह-दीहरत्तणाइं - - इंद-पडिंद-वाहण-सुरत्तणाई महिसीलो - पवाल - सामण्ण- सुर- सरीउ संखा - वण्णाउ - सत्ती - उच्छेद- हरिसिरिउ । सुरकरि - सरि सरि विधावि पोक्कारिणी तरु अणेय (?) अट्ठावभम पढवीसिद्ध गुणसहस रूखत्ते (?) घत्ता कम्मविणासोवाय- समीर - अनंतायास । णाण - पहावें णासिय अप्फलेइ जणे णिसेसई || रिट्ठणेमिचरिउ ४ १) ४ १२ १३ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिउत्तर - सउमो संधि [१०] -पोग्गल - संजम-पत्तदाणई जीवाजीव - काल-वलधम्माहम्म- परिणाम - काल-समय-पणामई मोक्ख-सुसोक्ख - हेउ - वर - मोक्ख - मग्गय - झाणई वंधव - सुगंध - हेउ - धुय-समिइ - महागुण - जोय - भाणइं लोयालोय - दिक्ख- अणुवेक्खा-णय - अणिउयदारइं वेजावच्च-गुत्ति - उच्छ - गुच्छेण दंसण- सरीरइं इंदिय - दव्व - विणय - वइराय - णास - णिग्गंथ-मयणायया लेसा - रिद्धि-लद्धि-दोस - सेव - पायड-भव - कसायया पायच्छित्त - अप्प - सब्भाव-सील - अण्णाण- संवरा गुणथाणोववास- जिण- पुज्जा- नियम विसुद्धि- णिज्जरा सुक्कासुक्क-सुद्ध-सम्मत्त-भाव- गारव - चत्तइं तच्च भेय-वुद्धि-रसमउणई पोस - विहाणइत्तइं घत्ता आराहय-आरद्ध-परमाराहण- फल-सुत्तरं । उज्जम - णिव्वहणाई सोहण - णिरिक्खण- णिउत्तई ॥ [११] सत्तरय दय-रुंदत्तइं अंगुड वि अंतर- अहिहाणई सेढि - णिबद्ध-पइव्वय - लक्खई वरणाराइआउस-उच्छेयइं वइतरणी-इ-रस-वस- पाणइं असिपत्त-वण- णिगोयई थाणई णारइएकमेक्क- वह - करणई कप्पण-भक्खण-रुंधण - सहणई वालण- वलण - वलण संतलणइं - पडल- विडप्प - पमाण- मंदत्तइ खर - पंक- प्पभाव - परिमाणई सावहि- सेढि -गय- लक्खई अब्भंतरई तं दुहई अणेयई छिंद-भिंदण - णिंदण-धरणई हिट्टिम - भूइ - असुर-पइसरणइं विंधण - बंधण - रुंधण - डहणई गालण- पीलण - पोलण-दलणई कंद - हणण-यम्म-संभरणई ४ ८ ९३ १२ १३ ४ ८ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता ८ संताव-दवणइं कस- ताडण कुंभी पाइक्कई । खलण-चलण-पमुहाई अवराइ मि दहइ लल्लकई॥ [१२] णिसुणेवि जिणधम्मक्खाणु सारु परिचिंतइ णिय-मणि गयकुमार सुरवइ-वंदिय परमेसरा वि जहिं कालें गयइं तित्थंकरा वि जहिं खद्ध कियंतें कुलयरा वि जहिं खयहो ढुक्क चक्केसरा वि जहिं वि मय अद्धचक्काहिवा वि मेहस्स-पमुह सय णरवरा वि जहिं थिर-धम्महं णारय-समत्त एयारह रुद्द वि मरणु पत्त जहिं हणुव-णील-णल-रावणा वि ण वि चुक्क महिंद-विहीसणा वि जहिं णहुस-भरह-रह-दसरहा वि जममेसीहूय हलाउहा वि लवणंकुस-किक्किंधाहिवा वि रवि-कण्णिंदइय-घणवाहणा वि गंगेय-दोण-दुजोहणा वि . भगदत्त-कलिंद-जयद्दहा वि घत्ता एय वि अवर वि सव्व जहिं मरण पत्त गरुआउस। तहिं अम्हारिस केत्तें वटुंति हीण-बल-पोरिस । [१३] पुणु वि पुणु वि गुण-गण-मणि-सायरु मणे चिंतइ णारायण-भायरु जीविउ चंचलु गिरिणइ-वाहु व जोव्वणु दिट्ठ-णट्ठ-इंदहणु व देहु वि चवलु पुव्व-मज्झण्हु व अवयव-लुत्ति-चडुलु अवरण्हु व रूउ अणिच्चलु झडमणु गमणु व घरु वि महणे मंदर-परिभमणु व दव्यु वि एइ जाइ अहो-रत्तु व बालत्तणु वलु कामिणि-चित्तु व रज्जु असासउ संझा-राउ व परियणु घण-घट्टण-संघाउ व सयण चवल मयरहर-तरंगु व किंकर णहे दिवसयर-तुरंगु व पिययम मरु-हय-दीव-सिहा इव संपय सोयामणि-लेहा इव रिद्धि विलोल सीह-जीहा इव घरिणि वि अथिर भीर-रेहा इव सुह भायरछिंछइ-णयणा इव वंधव वंतव-सुहि सुइणा इव ४ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिउत्तर - समो संधि अवरु वि जं जं किंपि मेल्लेप्पिणु जसु धम्मु घत्ता तो एव्वहिं जिणणाह वर-तव-चरण- सयत्तु एउ चिंतेवि यणाणंदणेण तं भणिउ णमेव पुणु मिणाहु णय - णिवह लिउ णिणट्ट - णेहु णव - णीरवाह - णिरु-णील- देहु उणयहिं वर- विट्टर - णिवण्णु णर-णारि - सुरासुर - णमिय- पाउ ++ एम पयंपेवि सुरहं अनंतहं पिक्खंतहं सव्वह मि दसारहं तइलोक्कब्भंतरि दीसइ । तं णिविसेण विणासइ ॥ [१४] एक्कहिं दिणे सो साहु पिणु भीम- मसाणु घत्ता (सिंघवी भासा ) पिक्खंतहं मयरद्धय - वाणहं पिक्खंतहं दुंदुहि अंकूरहं पिक्खंतहं हलहर - हरि-वीरहं पिक्खंतहं अवरह मि असेसहं जिह सो तिह दुमरायहो सुयमइ तिह सा सोमसम्म - दिय दिणि देवय- णिवणंदणि णंदणेण णिरुणिरुवम- णिम्मल - णाण- वाहु संपुण-पुण्ण-वित्थिण-गेहु ++++++++++ दुइ दस-दस - तित्थयराहिगण्णु णिण्णासिय उरु णव - णोकसाउ भविययण - णयण - णव - - णलिण-१ भीयरु संसारहं तट्ठउ । हउं तुम्हहं सरणु पइट्ठउ ॥ [१५] पिक्खंतहं पि हु राम - अनंतह पिक्खंतहं सणि संव- कुमारहं पिक्खंतहं जर संवु- सुभाणहं पिक्खंतह सव्वहं सुइ- सूरहं पिक्खंतह इम विण्णि-णरेसहं वरत्तो यासि दिक्खंकिउ सव्वज्जिय सा कण्ण पहावइ तविण विहूसिय नयणाणंदिणि घत्ता जम- संजम - संजोएं | थिउ रयणिहिं पडिमा जोएं || ९५ ११ ४ - भाणु Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ [१६] छुडु छुडु जि पलंविय - पाणि जाम तें दीसइ अहिणव-परम-सवणु णिक्कंपु णाई कंचण - गिरिंदु पुणु णिय-सु-सोयंकिय-मणेण एहु मम दिणिविणास - करणु पाविडुदुडु मारमिण जाम एहु चिंतेवि आसु समल्लिएवि णिहरु णिउ कारणु करेवि तो मत्थइ बंधेवि खणिण पवरु घत्ता पुणु गउ सो महिएउ साहुहिं केरउ णाई [१७] सवणु वि झाणग्गि-पलित्तउ वहु-इंगाल-दड्डु थक्कउ विकंप ण वि गहण (? झाणहो) जं किर कालंतरि णिखमेसइ तं विहि-घडियहिं मज्झि अणुच्छिउ उप्पण्ण सहसति पहाणउं पावविउउपरमेत्त दियत्तणु (?) खणे परमेट्ठि - सुसोहिय - मग्गहो गंधाइ तो तणु किय-सेवेहिं तं अवयासु सुवि उभा हत्थ करेवि णिय - णयरु परत्त - विरोहउ । चउ-घाइ - कम्म-संदेहउं ॥ सोसोमसम्म दिउ आउ ताम मण-चवल - विसय-कयवियलिय-मउ णाई महा-करिंदु चिंतविउ सरोसें बंभणेण घत्ता 1 तव चरणहं कारणु राय-हरणु कउ हियवहो महु संतोसु ताम खिल्लहिं खिल्लिय कर कम णिएवि णिग्गउ सुणिसुणि सो सेणु लेवि ८ किउ जलिय - विहाणिंगाल - सिहरु - णिम्मल - चित्तउ थिर (?) मणु थक्कउ चल्लइ धीर ण मिल्ल कम्म डस खयहो पमिच्छउ (?) केवल - णाणउं [सो धण्णत्तणु ] गउ लोगो पुज्जिउ देवेहिं सहसा परिवड्डिय-सोएं। धाहाविउ जायव - लोएं ॥ रिट्ठणेमिचरिउ - विसम-दमणु ४ १० ८ १० Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिउत्तर-सउमो संधि [१८] गय-मरणु सुणेवि आउल-मइए धाहाविउ जणणिए देवइए धाहाविउ सकलुणु रोहिणिए धाहाविउ रामहो रोहिणिए धाहाविउ सयल-दसारुहेहिं धाहाविउ णंदहो गोदुहेहिं धाहाविउ रइ-रुप्पिणि-सिविहिं धाहाविउ मंति-णराहिवेहिं धाहाविउ वल-णारायणेहिं धाहाविउ सिणि-दीवायणेहिं धाहाविउ जर-मयरद्धएहिं धाहाविउ विजाहर-सएहिं धाहाविउ उद्धव-सच्चएहिं धाहाविउ दारुइ-दंदुहीहिं धाहाविउ हरि-अंतेउरेण धाहाविउ सयलेण वि पुरेण घत्ता गयकुमार-मरणेण जायवहं दुक्खु तहि जेहउ। णेमिहे तव-चरणे वि मणे हूयउ दुक्कर तेहउ॥ [१९] देमइ-लहुय-तणउं सुमरंतेहिं एक्कमेक्क खणे विणिवारंतेहिं णेमि णमेवि समुद्दविजयाइहिं पव्वजिउ महंतु णव-भाइहिं सिवएवी-पमुहहिं अंवेविहि(?) पव्वज्जिउ दसार-महएविहिं सच्चइ-देमइ-रोहिणि-सहियहिं पव्वज्जिउ वसुएवहो दइयहिं हरिबल-णंदणीहिं ससिमुहियहिं पव्वज्जिउ सयासि-रायमइहिं सुहि-विओय-वरसोयक्कमियहिं पव्वज्जिउ सत्तुत्तम-भवियहिं जिंदिय-चउगइ-भवसंसारेहिं पव्वजिउ वहु-रायकुमारेहिं वर-विज्जाहर-कंत-सहासेहिं पव्वज्जिउ विज्जाहर-राएहिं सज्जण-खंडण-हुय-णिव्वेएहिं पव्वजिउ जायवेहिं अणेएहिं घत्ता जिण-भायरेहिं मि सिग्घ सत्तेहि-मि जणेहिं पचंडेहिं। पंचमुट्ठि-वर-लोउ सिरि दिण्णु सई भुअ-दंडेहिं॥ १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए तिहुवण-सयंभु-महाकइ-विरइए गयकुमार-निव्वाण-गमणं बिउत्तर-सउमो संधि ॥ *** Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिउत्तर-सउमो संधि [तिहुवणे जइ वि ण होतु णंदणो सिरि-सयंभुएवस्स । कव्वं कुल-कवित्तं तो पच्छा को समुद्धरइ॥] ता महि-मंडलि वम्मीसर-सर-विणिवारउ। णेमि जिणेसरु विहरइ णं रिसहु भडारउ ॥ १ पइसेवि मज्झएसु-स-मच्छहु पुव्वएसि जाएवि। धम्मे वइस-दिय-खत्तिय-असेस लाएवि॥२ सहसद्दालए सुल-वल-पवले हलि-हर-वल-कुल-सहस-वले सयलामल-केवल-णाणवले सल-साल-विंद-सुकुमाल-कले दूलयलोसालिय-काम-सलि सासय-सिलि-जयसिरि-वहुय-वले संसाल-सायरा-सामल-सइलि पलिहलिय-स-भज्जा सेसयलि ४ उज्जेंतह बलहले तित्थयले उद्धरिय-सयल-भवि-उहय-कुले णासिय-संभव-जल-मलण-दले चिल-भव-सय-खल-वहु-दुलिय-मले गोलव-थेणासण-चंद-मले विणिवारिय-सल्लत्तय-समले तियसिंद-णमिय-कम-भामलेसि जय-मंगल-दव्व-पुव्व-कलेसि ८ (मागधिका-णाम-वि +++?) घत्ता कालेण सहुं गणिहिं भमेप्पिणु आइउ । पुणु वि पडीवउ रेवइ-उज्जाणु पराइउ ।। [२] जं उजिंत-महीहरे परमगुण-सणाहे थिउ हरि भूसणु तिहुयणेक्क-णाहे ॥ १ (हेला) तं हलिसियंगि सिलिवच्छाए इंदीवल-दल-सलिलच्छाए पलिभूसिय-सिलि-हलिवंसाए अमलासुल-दिण्ण-पसंसाए पूयण-मलट्ट-कय-वहणाए वायस-णिप्पेहुण-कलणाए Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिउत्तर-सउमो संघि माया-लहबल-णिद्दलणाए सुधुलबल-कंजय चलणाए चल-केसि-गलयल-कय-पयाए जमलज्जुण-भूलुह-विलयाए गोवद्धण-वल-उद्धलणाहे गोउलि लीला-संचलणाए विसहल-गुलु-सेज्जा-लहणाए पलसूलत्तणु-लिह-लहणाए आउलिय-जलयल-पवलाए अट्ठत्तर-सय-णाम-हलाए हेला-सुचडाविय-चावाए दस-दिसि णीसलिय-पयावाए कालिंदिय-महदह-मंथाए कालिय-सिय-चिंध-पवण्णाए तोडिय-कोमल-मामलसाए लंगदि गोदुह-किय-कलसाए संघालिय-णिलि-चालूणाए ++++++++++++++ उक्खल-माहुल-तलमूलाए मागह-पुव्वद्धा-कलाए घत्ता णिय-सीहासणु मिल्लिप्पिणु सिरु णामंतउ। जिण सवडंमुहु गउ सत्त-पयाइं तुरंतउ॥ पुणु आणंद-भेरि-सद्देण जय-पहाणो चलिउ महण्णवो व मणि-रयण-सोहमाणो॥ १ (हेला) एक्वंतरि णिग्गइ संकरिसणि वयरि-णरिंद-णियर-दुद्दरिसणि लोहिय-दुहिया रोहिणि तणुमुहि सुरवइ-कुलिस-सरिस-सीराउहि ईसरंगि ससि-तारा-णिम्मलि सुरसरि-णीर-खीर-हारुज्जलि सुटु रुडु मुट्ठिय-संघारणि कंसासुर-किंकर-विणिवारणि रेवइ-वयण-सरोरुह-महुयरि रणउहि वेणुदारि-रिउ-भययरि केसरि-वाहणि विज्जाहारणि खेयरि जंबुमालिणि वसाहणि वंदारय-णिय-णयण-मणण्णिए परियाणिय-विण्णाण-कलालए संगय-सिरियरताणक्करिसणि दस-दसार-रोयण सुय-दरिसणि ८ [इयमण्णि व मागधिका भासा ॥ मत्तमातंग छंद ॥] Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० रिट्ठणेमिचरिउ पत्ता सुमरेवि जिण-चलण रेवइ-रोहिणिहि विहूसिउ। महहत्थिल्लउ णहि णं चंदु जणेण पदीसिउ। ज दूरुश सेयणु लग्गया गया जाइ-कुल-विसुद्धा सच्चइ चारु णिसढरी(?)-दीवायणाणिरुद्धा ॥ १ (हेला) अण्णु वि संचल्लिए मरंकें जे दूरुज्झिय-अयस-कलंकें जे रुप्पिणि-मण-भुवणाणंदें । जे रिउ-णियर-सरोरुह-चंदें जे जगि णारि-चित्त-अवहरणे जे कंचण-माला-परिहरणे जे सोलस-महलंभावण्णे जे सोहग्ग-शव-संपुणे जे महि-कंप-जलहि-सुरसेले जे सयलंगणोह-मण-वोले जे कुरु-खंधावार-विणासें जे दुजोहण-पहु-संफासें जे ससिविर-तवसुय-परिखलणे जे णर-भीम-मडप्फल-दलणे जे सहदेव-पराभव-करणे जे वंदिण-जण-अब्भुद्धरणे [मागधिकायां भाषायां पादाकुल-छंद :।] ८ घत्ता गंजोल्लिय-तणु परिसेसिय-पवर-मरट्टड। सुहि-सय-परिमियउ सविणेउ सकलत्तु पयट्टउ ।। ताव हियोलियहिं चंदो व्व कंतिवंतो। भाणुकुमार-णरवरो णिग्गउ तुरंतो ॥ १ (हेला) कल-विण्णाण-जुत्तए सेविय णरत्तए पारस-लक्खणंगए मेरु-तुंग-सिंगुत्तमं गए चामीयर-चारु-वण्णए कुंडल-जुय-ललंत-कण्णए कंगहरणणिल्लकोरए(?) रेहमाण-गुरुइणिय(?)-दोरए इंदीवर-वर-दलच्छए हार-परिफुरिय-वच्छए केऊराविद्ध-वाहए रयण-खुसिय-अब्भत्थए Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिउत्तर-सउमो संधि १०१ मागहाणया अत्थए पलंब-णिरत्थए पसरिय-णिय-णहा-सोहए अंघि-पउम-जिय-णलिण-सोहए (मागधिका छंद) । घत्ता कमलाणंदणु णिय-भा-भूसिय-भुवणोयरु। वर-दीहर-करु संचल्लिउ णाई दिवायरु॥ तहिं पत्थावि तार-संभार-पबल-दल-मालए संचलिय महाबलिय ++++++++++++++॥ १॥ (हेला) सो णारायणिट्ठ-सुदेसबुकुमालाए अट्ठमि-यंद-रुंद-पिहुलुण्णय-भालाए विजाहर-कुमार वि सवर-खइ-णेयाए वहु-जरसिंधु-वंधुवरक्खुर-क्खुर-पायाए हेमल-दल-हिडंव-घण-तम-दिणणाहाए सिंधव-हूण-जाण-हुयवह-जल-वाहणाए विवरीहीरवीकसमीर(?)-अणुरत्ताए वर-वारण-वलग्ग-अमर-गिरिंदाए ४ जालंधर-डहार-सुभद्दा-सुरभद्दाए केरल-कामरूव-वण-गहण-हुयासाए पारासय-सुकंत-रुक्ख-फलभर-कीराणणाए खस-जोहेय-दडुर-फणिरायाए पच्छिक्कुडुक्काणरसिरवणिज्जासणिघाय वलकण्णाहु दविडए णमंत-पाय खग्गुज्जल-सूर-प्पहहरु पचलिउ लीलए णावइ णव-पाउस-जलहरु ८ घत्ता तो हरि-राम-काम-पमुहेहिं जायवेहिं पासु पवण्णएहिं कंटइय-अवयवेहिं॥ [७] दीसइ समवसरणु जग-जणिउज्जोयउ णं लोहियउ भूहरो जम्मअसेयाहिय-णागिंदउ ॥१ (हेला) भामंडलु समिद्धु णावइ रामायणु सीहासण-सणाहु थिउ णाइ महावणु णावइ छंद-सत्थु सुंदर-जइ-मालाहरु णं मंदर-णियंबु णंदण-वण-मणहरु +++++++++++++++++ दीसइ णाई पाउस ण परतिह जे घय(?) णावइ महि-पवण्ण सुरओय-समप्पहु देविंदु रोस-बहुलु पसरिय-रणप्पहु ४ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ घत्ता तहि जिणु लक्खियउ जायव-जणेण आइ-महेसरु रिसहु व चिरु [८] पुणु ते पउम -सहाव- पियर-गुण-साणुराय बल - गोविंद पुणु पुणु मंति जिणह पाय ।। १ ( हेला) जय जिण मणु-दय-गणवइ-फणवइ - णमिय-पय- जुय अथिर-मण-पवण-दिणमणि-विलयण - वरुण-सणिजुया जय तियसवइ - कुवइ - जमिवइ - रिउ - गहवइ - धणय-वंदिया जय भुवणवइ धीर-चित्तुब्भव - खमणवग्ग-संदिया हय-गय-कणय-पाणिंदादिससर-भड - घाडउदु-गुण- घण घण - उलय - संसिया जय विस विसम - विसय-गह परिसह सुहिय- णिवह साहया ४ - जय तइलोय - णमिय अइसय-वर - 1 र- पाविय-परम- संपया मलिणिलयाणि रणि फेडिय - दुग्गह- जड-लवलय- सामला जय जय जल-जउण-जल - कज्जल - इसि - सुमणस - समुज्जला जय कमलभव - तंब- -तणु भव- अखलिय- - सुण-भ - भवंतया जय भव-समय-समयणविण चउतीसाइसयवंतया - गरुय - अणुराएं । अमर णिहालए ॥ - घत्ता तुम्हहं सग्गहो जइ इह अवयरणु ण होंत । ता दुक्किय-भारेण जगु हिट्ठामुहु जंतउ ॥ जल - कल्लोलुप्पील- रउद्दे जाहं णय कारिउ सहसक्खें जाहं संख-कोडिउ अट्ठारह मंदिर जाहं जाउ जिण - जम्मणु [९] एवमेव मि तित्थंकरहो पहिट्ठा । जायव- णिरवसेस पर-कोट्टई णिविट्ठा ॥ १ ( हेला) - रिमिचरिउ जाहं दिणु ओसारु समुदें जाहं हि धणु वरिसिउ जक्खें जाहं अणाय - लक्ख-हय-गय-रह जाहं सामि सयमेव जणद्दणु ८ १२ ४ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ तिउत्तर-सउमो संघि जेण समरि सिसुपालु विहाइउ जेहिं वीरु भूरीसउ घाइउ जेहिं णिहउ ससेण्णु चक्केसरु मारिउ जेहिं चाणु कलि-केसरु अप्पमाण विस्संभर गोयर सेव करंति जाहं विज्जाहर जाहं परिग्गहि सई मयरद्धउ विजउ जाहं पसिद्धउ सिद्धउ पेसणु करइ जाहं चक्काउहु जाहं मज्झि णवमउ सीराउहु जेहिं कोडि-सिल चिरु उच्चाइय। जाहं कित्ति तइलोक्कि ण माइय जाहं पमाणु णाहि परिवारहो अंतेउरहो विसालंकारहो घत्ता जिण-माहप्पेण ते सयल वि णिरु अणुराइय । णर वक्खारहो एक्क-देसे जे सम्माइय॥ १२ [१०] पुणु पुच्छइ महीसरो सयल-लोयपालो। महुर-महा-झुणीए अक्खइ तिलोयपालो॥ १(हेला) किं इह तिहुयणे सारु भडारा धम्म-रयणु भो महिहर-धारा किं दुल्लहु भव-लक्खेहिं जिणवर पव्वजा-णिहाणु हे सिरिहर किं सुहु लोयालोय-महागुरु वाहरिउ अहो मुसुमूरिय-मुरु के जीवहो वइरिय तित्थंकर कोह-मोह-मय अच्छी हरिहर किं पालणीउ एत्थु सव्वण्ह धुउ सम्मत्तु सीलु अइ विष्णु किं सुंदरु करणिज्जु दयारुह दाणु पुज्जहो देवइ-तणुरुह के दूसह तियसेसर सामिय पवर-परीसह खगवइ-गामिय किं वलवंतउ समर-विमद्दण जीवहो चिर-कय-कम्म जणद्दण कवणु देउ केवल-वर-लोयण दोस-विवज्जिउ हो महसूयण कवणु धम्मु जगि णाणुप्पायण जीवदयावर हे णारायण किं संसारहो मूलु णिरासव गुरुउ पमाउ सुणहि मणि केसव किं कट्टयरु सिद्धि अज्झाहव अण्णाणत्तणु जउवइ माहव ८ १२ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ रिटणेमिचरिउ घत्ता जीव-णिहायहो किं दढ-वंधणु भुवणुत्तम विविह-परिग्गहु गेहिणि-सणेहु पुरिसोत्तम ।। [११] किं मणुयत्ति सासयं मिहिरि-कोडी-दित्ती ए णक्खत्त णेमि ससि-संख-सेय कित्ती ॥ १ (हेला) परमेसरु साहइ जेम जेम हरिसिज्जइ सहायणु तेम तेम सोसिय-सुय-वयणामिय-रसस्स तित्ति ण संभवदि हु केसवस्स ण करणसिदस्स दीवायणस्स ण कुसुमसरस्स सिणिणंदणस्स ण सिणिस्स जरस्स ण सच्चइस्स संवस्स ण तित्ति ण दुंदुहिस्स भाणुस्स सुभाणुहि सुझुवस्स भगदस्स जगस्स सढावियस्स तित्ति ण सारस्स ण सारणस्स तित्ति ण णंदस्साणंदणस्स भोयस्स देवसेणस्स तस्स ण भवदि ससिमुद्द-सणेउरस्स किसमब्भुद्देसंतेउरस्स तित्ति ण पउरस्स महायणस्स सस्सुद्दुसिस्स ण रिसि-गणस्स +++++++++++++ [ढक्काभासा-कवडयं] किय-सर-मउलिहि जिह णरहं तेव सुरवर-वरहिं वि धरणिंदाइहिं णवि होइ तित्ति विसरिहि वि॥ [१२] तहिं पत्थावि णाहि-किय-परम-वंदणेण। रोहिणि-दस-दसार-लहु-भाइ-णंदणेण ।। १ (हेला) कर कोपलु करेवि सुरसारउ चलणि पपुच्छिउ णेमि-भडारउ कहि परमेसर इह दारावइ धणय-विणिम्मिय सुरपुरि णावइ वहु-पुण्णोदएण गोविंदहो विद्धिए गच्छिय मज्झि समुद्दहो तुह जम्मु वि भणेवि जणु वंदइ कित्तिउ कालु सतोरण णंदइ आयहो णामु तिलोय-पगासु वि जिण-सत्थे ण अस्थि विणासु वि अण्णु वि पर-बल-वणतिण-डहणहो कित्तिउ कालु विजउ महुमहणहो Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ तिउत्तर-सउमो संधि जीवउ स-सुहि स-पुत्तु स-भज्जु व कित्तिउ कालु णिरग्गलु रज्जु व अक्खइ णेमि अभाउ स-दारहो वारसमए संवच्छरे दारहो घत्ता अण्णु वि हलहरु तहिं काल-महब्बलवंतहो। णिय-पुव्वक्खइं सइं अवसाणु अणंतहो। [१३] पुणरवि रेवइ-वरो पभणइ देवदेवा। कहु पासिउ अभाउ किं कारणेण के वा ॥१ (हेला) पुर-विणासि किं कण्हु करेसइ कहिं पएसि कहो करेण मरेसइ कम्म पहा किं कत्थ हवेसइ कित्तई जम्मंतरइं भमेसइ कित्तिउ कालु हउं जीवेसमि हरिहे विओए किं णु करेसमि सोय-कालि णिय-रिसणइ(?)दावेवि को मइ संबोहेसइ आवेवि कालु करेवि कित्थु जाएसमि कइ इह कम्मु-वंधु मुंचेसमि इय वयणाहिं वरु कम्म-खयंकर साहइ बावीसमु तित्थंकरु जउण-महाणइ-तड-संजायहो दीवायण-णामहो विक्खायहो घत्ता . आयहो पासिउ जं सयल-जणहो दुह-संदणु। मजहो कारणिहिं दारावइ-विद्धंसणु ॥ [१४] अण्णु वि चंड-कंड-धणुहर-सहाएणं वसुएव-पिय जराए वि जायएणं ॥ १ (हेला) आएं जरेण कउसंवि-वणि परमाउ पवण्णु पसु-रुहणि णिय-भाइ कणिट्ठउ चक्कहरु घाएवउ एहु सिरि-धरणिहरु पुणु होसइ कालि विणासयरु तइयइ जम्मंतरि तित्थयरु एयहो विच्छोइ किलामियउ तुहं राम होसि सुपभावियउ सग्गहो अवयरेवि तेय-पउरु पडिबोहेसइ सिद्धत्थ-सुरु पुणु तुहुं वीसुत्तरु वरिस-सउ सण्णासु करेवि मरेवि तउ ४ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ पावेसइ सुड्डु मणोरमइ अट्ठमउ रामु जहिं गयउ चिरु घत्ता दस-सायर-समइ तहिं गमेवि चवेवि मणुयत्तणि । तव - णिहि पावेवि पुणु पइसे सहि सिव- पट्टणं ॥ [१५] तं णिसुणेवि वयणु मसि - वण्णु गउ णरिंदो । णं थिउ गिंभयाले दव-द ड्ड महिहरिंदो || १ (हेला) भासिएण जिणणाहहो णाहहो कंपइ देह स-रामहो रामहो असुहत्थी असुभाणहि भाणुहि अवलू अणिरुद्धहो णिरुद्धहो गाढउ मणु जिणधम्मो धम्मो दुहुं कुलुदीबायणि दीवायणि संकाविय मणि सारणि सारणिं मुहुं मइलिज्जइ गोरिहिं गोरिहिं सामलइज्जइ रुप्पिणि रुप्पिणि इंदत्तु सुरालइ पंचमइ तो दियर - कोड - किरण-रुइरु परितप्प को कहो भउ वट्टइ तव कामहो कामहो अदिहि वि सविलासंवहो संवहो चिंत पढुक्कइ णिसढहो सिढहो धुक्कुद्धुइ गोणंदहो णंदहो उम्माहउ भुय - पंजरि पंजरि होइ कलुसमइ सच्चहिं सच्चहिं इणि लिहइ सलक्खण लक्खण तिह जिय णियय रोहिणि रोहिणि ( पडिपाय - जमयं छंद) घत्ता तहिं वर-वेलए जउ अवत्थ जा दीसइ । सा आगंतुए पुरु डाहेवि दुक्करु होस || [१६] वरि सुसइ समुद्दु वरि मंदरो णमेइ । वि सव्वहु-भासि एत्थंतरि चिंतइ कुसुमसरु पल व ण चुक्कइ जिण - वयणु दाराव हि वि होइ खउ अण्णहा हवेइ ॥ १ (हेला) रिडणेमिचरिउ एहु सो महु तव चरणावसरु कहो मणि-कंचणु कहो सुहि-सयणु तहिं अण्णहो भुवणि थिरत्तु कउ ८ ९ ४ १० Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७ तिउत्तर-सउमो संधि जहिं णारायणु वि दिणिहिं मरइ तहिं अम्हारिसु कहिं पइसरइ जहिं दीवायणु पुरवरु डहइ जहिं जरकुमार केसउ वहइ जहिं वलु खंधेण समुव्वहइ एवड्डु दुक्खु को तं सहइ पुणु पुणु वि वियप्पेवि एम मणि णिय-पए थवेवि अणिरुद्ध खणि हरि-सुउ आगंतुय-भय-लइउ सहुं वीर-सहासिं पव्वइड तिह उहयहिं माल कुरुवइहे सुय दिक्खंकिय जुयइ-सहास-जय घत्ता तिह णर-णंदणि कंचण-माल वि भव-दूसिय। सहु मयरंकेण तव-चरणे झत्ति विहूसिय ॥ [१७] तिह भामा-सुओ वि सहु णियय-परियणेण । भाणुकुमारु वीरु दिक्खंकिउ तक्खणेण॥१ (हेला) तिह सुभाणु तिह जउ तिह सुंदरु तिह सच्चइ जयंतु स-पुरंदरु तिह कियवम्मु सारु तिह सारणु तिह दुंदुहि विऊरु धरि धारणु देवसेणु तिह सिणि तिह णंदणु तिह अपरजिउ णयणाणंदणु चारुजे? तिह चिण्हउ उद्धउ कंचणु णंदु रुडु सुहि दुब्भउ . तहिं अवर वि अणेय जउ-राणा तिह कउरव कसाय-गय-माणा तिह केसव-अणुमइए सुलक्खण पव्वज्जिय पउमावइ लक्खण सच्चहाम तिह रोहिणी रुप्पिणि तिह जंबुवइ गोरि तिह रुप्पिणि तिह गंधारि सुसील सवाली तिह सिरिसंवलि-तणु सोमाली घत्ता तिह अवराउ वि भव-भीरु-मणउ हरि-कंतउ। सहुं वहु-सुण्हहिं पज्जुण्णहो अणु णिक्खंतउ ।। [१८] तव-चरणेण तेण इत्थीण पहु-वयस्स वि। गयसेस-सुरवरा गरुय-विब्भयस्स ।। १ (हेला) सोउ णाणावत्थु-विसेसें अण्णं पि हु आयार-विसेसें ४ ८ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ रिठ्ठणेमिचरिउ णमिऊण सहसा केवलिणं जोईऊण सिरि सिरि-सुह-णलिणं मुणिय जीव-जीविय अविरत्तं तहिं गिण्हंति के वि सम्मत्तं के वि पुणु अप्पे(?) पावजं के वि चयंति सया-पिय-भजं ४ के वि वयाइं लिंति रायाणो केहिं विमुक्को रागो माणो केहिं पि हु सा णत्थावियाई गहियइं सुइ-सिक्खा-वयाई केहिं वहुय पुणु धरिय चरित्ता थिय णं गिरि जिह उण्णइवंता अण्णे के वि सगुरुणो पइणो णिव्वण्णंति गिरं जगवइणो के वि करंति णिवित्तिं महुणो सुणहुल्लस्स के वि तह मिहुणो कायस्साहारस्स वि एक्को तह परिणयणो वि अण्णिक्को के वि भाईणं पुत्ताणं दिति महंताणं संताणं पच्छा भणिय णमो सिद्धाणं उद्धरणं करंति कंजाणं घत्ता केहिं वि अण्णाणेहिं णाणाविह लइय अवग्गह। केहिं वि कुसलेहिं परिमाणिय णियय-परिग्गह ।। [१९] तो दीवायणो वि पिय-भिच्च-सुय-वरिट्ठो। गुरु-चिंता-महण्णवे तक्खणे पइट्ठो ॥ १ (हेला) धिद्धिगत्थु जीविउ मणुयत्तणु धिद्धिगत्थु परियणु वंधव-जणु धिद्धिगत्थु मणि-धणु सकंचणु धिद्धिगत्थु महिलायणु जोव्वणु जहिं महु मणहो कोउ संवज्झइ जहिं महु पासिउ पट्टणु डज्जइ जहिं महु पासिउ जउ-कुलु णासइ जहिं महु पासिउ सयलु वि तासइ तहिं किं णिवसिए णिमिसेक्कु वि विसएहि वेयारिउ जइ लोक्कु वि सव्व पयारे कलुणु रसाहिउ +++++++++++++++ भट्ठि जाउ गिह-धम्मु असारउ णाणाविह दुक्खहं हक्कारउ | वरि अरहंतु देउ आराहिउ मुत्ति-रमणि-रसभर-उम्माहिउ भल्लउ एहु दस वावालंकिउ ससुउ सभज्जा सो दिक्खंकिउ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिउत्तर-सउमो संधि घत्ता पुणु णिव्वेइउ गउ पुव्वएसु असंहतउ । तव-माहप्पेण थिउ णिय-सरीरु सोसंतउ ।। [२०] ताम जरासुओ वि वसुएव-सुउ एव मण-पियारो। डोल्लइ णिय-मणेण पुणु पुणु वि जरकुमारो॥ १ (हेला) एहु णारायणु महु लहुउ भाइ राहवचंदहो सोमित्ति णाई चक्केसरु जायव-सामिसालु हरिवंसुद्धारणु धरणिपालु किय-वहु-साहसु विद्दविय-देहु हेला उवलद्ध-महा-विरोहु जहिं महु करि मरइ खगिंद-गमणु तर्हि आयहो पासिउ कंडु(?)कवणु ४ जहिं हउं णिग्घिणु सइ-लच्छि-संगि पहरेसमि महुसूयणहो अंगि तहिं वार वार किं बोल्लिएण किं महुमह-हियवइ डोल्लिएण लहु गम्मइ एक्कंगणइ तित्थु मेलावउ कहिं वि ण होइ जेत्थु जम्महो वि ण सुव्वइ जेहिं पवत्ति जहिं कहि वि ण सयणहो तणिय तत्ति ८ घत्ता एवए चिंतेवि भाइ-सोयावरु हरि-पासहो॥ वाण-धणुद्धरु गउ दूरु दुग्ग-वण-वासहो॥ [२२] थिय पिय णलिणि-लोयणे मत्त-मय दिहारे(?)। आउलिय हूय माणसे पवसिए कुमारे ॥ १ (हेला) गुरु-भायरहो तणेण विओएं अण्णु वि दिक्खंकिय-सुहि-लोएं कण्हु सुण्णु मण्णइ अप्पाणउं वंसहरु व कोमाणउ माणउं मण्णइ सोय-असेसह कारणु सोय-विओय मइंदु भयावणु मण्णइ सयल वि सावय सावय । सेस-सयण जायव पासावय मण्णइ सेसप्पियई वण-वेल्लिउ करदल-थणफल-णहकुसुमिल्लिउ तहिं अवसरि सिद्धत्थु अकायरु । सारहि बलएवहु लहु भायरु तेण वुत्तु एरिस-संसारए ण वि सक्कमि अच्छणहं असारए Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ मोकल्लहि सहसा सीराउह जें तवि लग्गमि सररुह-सम-मुह ८ घत्ता तुज्झ पसाएण तव-सिरि-वहु महु करु पावइ । सिग्घु अविग्घेण सुह-णिहि सवडंमुहु आयउ ।। [२३] तं सिद्धत्थ-वयणु णिसुणेवि चवइ रामो। जइ भो वच्छ वच्छ तुहुँ मणि विरत्त-कामो ॥ १ (हेला) तो महु पडिवण्णइ वसण-कालि वलवंति वियंभिइ मोह-जालि धुअवहिए लहु सग्गहो वि पज्ज ___मम चित्तहो संवोहणु कुणेज्ज तं पडिवज्जेवि बलहद्द-सिक्ख सिद्धत्थे तक्खणि लइय दिक्ख तउ करइ विसेसें घोरु वीरु तणु ल्हसइ ल्हसइ णउ मणु वि धीरु ४ गय जिणु पणवेवि वल-वासुएव णिप्पह गह-मुक्क रविंदुं जेव णं विजु-झडप्पिय गिरिवरिंद णं मयवइ-पच्चेडिय करिंद णं विणयासुय-मोडिय फणिंद णं णिण्णासिय-वय-भर मुणिंद रयणी सुण्णइं णं हरिय-वित्त णं खल-वयणे सज्जण दुचित्त जिह सरसिय सिय-करणेण भिण्ण तिह हरि-बलिणो इंदिय-विसण्ण घत्ता उविण्ण सइत्ता रज्ज-कज्ज-आउल-मइ। सुअ-वक्ख-सरीर परिवज्जिय-उच्छव थिय॥ [२४] एत्तहे समवसरण-परिमंडिउ विहरेइ जिणवरिंदो। जिह पंच-मग्गेण उडुगण-जुओ णिसियरिंदो ॥१ (हेला) जो जणु दारावइ पव्वइड तें सहुं अमरासुर-णर-महियउ चउविह-संघ-सहिउ परमेसरु उत्तरदेसि चलिउ जग-णेसरु चरम-सरीरु महा-गुण-जुत्तर वर-अइसय-विहूइ-रेहंतउ वसु-विह-पाडिहेर-विलसंतउ भवियण-पुंडरिय-वोहंतउ वसु-दह-दोस-असेसहं चत्तउ सिवउरि-सिरि-माणिणि-रइ-रत्तउ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिउत्तर-सउमो संघि १११ धम्मामइ तिलोउ सिंचंतउ काह मि दंसण-मग्गु कहतउ दंसणि-जण-मण-धत्थु(?)धुणंतउ काह मि वय-पासाए थवंतउ घत्ता ४ । काह मि सामाइउ वज्जरइ काह मि पोसहु उच्चरइ। सचित्त-चाउ काह मि जणहं फेडंतु वि भव-भमण-रइ ।। [२५] काह मि दिण-मेहुण-णिवित्ति पयडंतो। काह मि सव्वायरेण वंभज्जणु महंतो॥ १ (हेला) काह मि आरंभाइय-वज्जणु तहं अणुमइ परिचाय-समजणु तह परिगह-णिवित्ति साहइ जिणु तह उद्दिट्टाहार-विवज्जणु सावयाहं सावय-वय देंतउ सावयाहं गिह-धम्मु कहंतउ काह मि देंतु महव्वय-सारई चउगइ-गमण-भवण-विणिवारइं उग्गिरंतु दह-लक्खण-भेयई विसहो विसेसरु णेयाणेयई काह मि चक्कि तवई उग्गीरइ वणयराहं जिण विसु पच्चीरइ(?) एम असेसु लोउ वोहंतउ सुर-विसहर-णर-मणु खोहंतउ विहरइ जिणवरिंदु भय-चत्तउ अवियल-वोह-दिट्ठि-संजुत्तउ घत्ता महुमहाणिसंतु जो पव्वइउ णिण्णासिय-भव-भवण-रइ। रायमइ-गणिणि-सयासि थिउ भाव-विसुद्धिए तउ तवइ । [२६] पज्जुणाइ-मुणि-गणा दुविह-गंथ-चत्ता ते जिणवर-सयासि णिप्पह-मण दुद्धरु तउ तवंता॥१ (हेला) एत्तहे दारावइ जो जणवउ जिणवर-भासिए मइ-णिच्चलु थिउ भविय-सत्तु आसण्ण-भवण्णउ भाविय-उवसमु वज्जिय-दुण्णउ दाणु पूय सुह-भावासत्तउ दुण्णय-णय-वसणाइ-विरत्तउ जिणवर-भासिउ णलिउ(?) चवंतउ भव-तणु-धण-वेराउ वहंतउ भंगुरयरु तिलोउ भावंतउ विसय-कसायइं दूरे चयंतउ ८ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ रिठ्ठणेमिचरिउ पिय-घर-घरिणि-मोहु विहुणंतउ णिय-मणे पंच-पयई सुमरंतउ जो अभव्वु सो चिंतावण्णउ आगामिय-दुह-कलुसु वहंतउ अट्ट-रउद्दे मणु पोसंतउ हा किं किं होसइ जंपंतउ पिय-घर-वसु-विओय-कंपंतउ मोह-महादहे णिम्मजंतउ घत्ता सई भुव विहुणंतउ एम जणु भावि-किलेसादण्णउ। थिर-भावाउल-रस-पूरियउ हरिस-विसाय-पवण्णउ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-उव्वरिए तिहुवण-सयंभु-रइए बल-पण्ह-णाम तिउत्तर-सउमो संधि॥ *** Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________