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________________ रिठ्ठणेमिचरिउ कुसुम-वाण जिह होइ कुमारहो लहु अणिरुद्ध-पडिम उप्पाइय उसहे समप्पिय ताए वि दिट्ठी वम्मह-हत्थ-भल्लि णं लग्गी दाहिण-मारुउ परिसंतावइ कमल-सेज कप्पूरु अ-सीयलु पंचमु पंचम-वाणु अणंगहो जिह परिओसु पवड्डइ मारहो णं अहिणव-सोहग-पडाइय विरह-भल्लि णं हियए पइट्ठी णवमी कामावत्थ वलग्गी चंदण-लेउ जलद्द ण भावइ मण-परिपीडणु सव्वु अ-कोमलु सो-वि सुहच्छी जणइ ण अंगहो ८ __घत्ता अहिणव-पड-पच्छिम-छलेण तहुं (?दुहु) जमेण तिंव पाविय। वम्मह-सुय-णट्टावएण रस-भाव सव्व णच्चाविय॥ गउ देवरिसि परिट्ठिय राणी तुहिणाहय व णलिणि विद्दाणी चित्तलेह तहिं काले पराइय णाई सुरंगण सग्गहो आइय वुच्चइ ताए काइं अविचित्ती लइ आहरणइं होहि सइत्ती लइ तंवोलु विलेवणु फुल्लई लइ देवंगई अंगे अमुल्लई करि मुहयंदु चंद-विवुजलु अलयावलि वले विच्छुहि कजलु ता वाणाहिव-दुहियए वुच्चइ करमि सव्वु जइ काइ-मि रुच्चइ आएं सुहएं हउं संताविय कवण अणंगावत्थ ण पाविय पभणइ चित्तलेह एउ कित्तिउ महु असेसु जगु गोप्पय-मेत्तउ पत्ता पढमु णिहालमि वारवइ पच्छए महि सयल गवसमि। पुणु तइलोक्कु परिभमेवि अवसें पडिविंवु लहेसमि। तं पड-पडिम लेवि सुमणोहरि दिट्ठ गविट्ठ सयल दारावइ । कामु स-कामपालु हरि जोइउ तिण्णि-मि अणुहरंति णेवत्थें गय गयणंगणेण विजाहरि णव-जुवाणु तहे को-वि ण भावइ तिहि-मि ताहिं पडिछंदु ण ढोइउ वलु अंतरिउ वण्णवइ हत्थे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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