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________________ चउणवइमो संधि घत्ता तहिं वाणाहिउ सहस-भुउ वाणासण-वाण-भयंकरु । हरि णामेण तुहारएण पज्जलइ जेम वइसाणरु ॥ [३] चवइ अत्थाणे ताम किय-जोहेहिं अवरुप्परु उप्पण्ण-विरोहेहिं केण दिण्ण पसंस सिंहडिहे केण-वि गुण णिव्वण्णिय पंडिहे केण-वि दिण्ण लीह अहिमण्णुहो घाइउ जेण पुत्तु सयमण्णुहो केण-वि दुमय-मच्छ-धट्ठज्जुण केण-वि जमल-राय भीमज्जुण केण-वि सच्चइ-णिसढ-दसारुह केण-वि कामपाल-कुसुमाउह मई पुणु वासुएउ पोमाइउ चक्काहिवइ जेण विणिवाइड पत्ता जसु गोवद्धण-उद्धरणे रस रसइ सुसइ मुच्छिज्जइ। तहो देवहो णारायणहो वलु वाण काइं पुच्छिज्जइ ॥ ४ तो विज्जावर-वइ आरुट्ठउ णं विसमाहि महा-विस-दुट्ठर कहि देवरिसि गंपि गोविंदहो जइ पइसरइ सरणु अमरिंदहो जइ-वि कुवेरहो वरुणहो रुद्दहो जइ-वि करइ रइ मज्झे समुद्दहो तो-वि जियंतु ण चुक्कहि वाणहो दस-सय-कर-गहिय-किवाणहो ४ . भणु हेवाइउ तुहुं जरसंधे पाडमि उत्तमंगु सहुँ खंधे एत्तिउ कालु किण्ण परियाणिउं जहिं सो हुयवहु तहिं हउं पाणिउ जहिं सो पारावारु भयंकरु तहिं हउं अमिय-विरोलणु मंदरु जहिं सो णिसि-तमु तहिं हउं वासरु जहिं सो फणि तहिं हउ-मि खगेसरु ८ पत्ता चुक्कड़ पर जीवंतु महु णंतो कल्लए लइउ मई गय संखु चक्कु धणु अप्पेवि॥ भु-दंड-सहासें चप्पेवि ॥ तो मणे चिंतिउ खणे अवदारें कलि करेमि अवरेण पयारें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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