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रिठ्ठणेमिचरिउ फुडियंगुलि दुक्खिय गलिय-गत्त हुयवहे पइसेविणु मरणु पत्त पुणु जाय महिसि मुज्झोड्डि(?) सारि मुय तहिं-वि चडाविय लवण-भारि मगहापुरि सूयरि-जम्मे आय हय जणेण साणि पुणु तहिं जि जाय
घत्ता गोट्टहिं णिविडंतरे सुत्त किर अच्छइ जाम विमुक्क-भय। वणयरु उद्धाइउ तावहिं धणु उद्धरियउ स जे मय ।।
पुणु मंडुक्किहिं मंडुक्क-गामे जाया मच्छंधिहे तियय-णामें सुय हुय दुगंधि मायए विमुक्त वर-जाल-हत्थ वड-रुक्खु ढुक्क हेमंते तेत्थु रिसि दिङ णवरि सहसा जालें पच्छइउ उवरि दिणमणि-उग्गमणे णिरंतराई कहियइं तहे चिर-जम्मतराई तहिं धम्मु लइज्जइ धीवरए उवढुक्कु मरणु वहु-दिणेहिं तीए सुणु सोप्पारए पुरे जग-पसिद्धे उप्पण्ण कणय-धण-कण-समिद्धे वहु वय धरंति तव-अज्जिएहिं ..। मगहापुरु गय सहुं अज्जिएहिं पुणु णवेवि सिद्ध-सिल तक्खणेण मुय णीय-गुहहिं सल्लेहणेण अच्चुयइंदहो पुणु जाय देवि पण्णास-पंच-पल्लई गमेवि कुंडिल-पुरे लच्छिहे गब्भे आय पुणु रुप्पिणि भिक्खहो धीय जाय
घत्ता एवहिं इह जम्मे लएवि तउ सग्गे होवि अमराहिवइ। तत्थहो चवेवि पडि तउ करेवि पावसइ पंचमिय राइ॥
[८] तहिं अवसरे पुच्छइ जंवुवइ कहि महु भव-णिवहु जिणाहिवइ तं णिसुणेवि जग-जण-जणिय-दिहि अक्खइ परमेसरु णाण-णिहि इह दीवे मेरु-पुव्वहिं दिसए सुपसिद्धए पुक्खलवइ-विसए सग्गोवम वीयसोय-णयरि सुरयण-मण-णयणाणंदयरि देवमइ-गब्भे देविलहो सुय हालिय-हरि जसमइ-णाम हुय सा दिण्ण दिणेहिं सुमित्त-वरहो णिव्वेइय मणे मरणेण तहो
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