SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ रिट्ठणेमिचरित काहे-वि णयणुल्लउ विगय-मलु । णं वम्मह-हत्थ-भल्लि-जुयलु काहे-वि उब्भंगुर भू-लइय णं काम-चाव-लट्ठि लइय काहे-वि सिर-कमले रेणु पडिउ सेहरउ णवल्लु णाई घडिउ घत्ता काउ-वि हतियउ उप्पत्तियउ जं सलिलब्भंतरे दिट्टियउ। चंद-दिवायरहं मयणाउलहं णिय-णिय-कंतउ उट्टियउ॥ [१८] संकरिसणु केसउ णेमि-जिणु तिण्णि-वि रमंति मच्छरेण विणु गोविंदें सण्णिउ गोवियणु उद्धाइउ सरहसु रमण-मणु सिव-णंदणु सित्तु मणोहरिहिं रयणायरु जेम महा-सरिहिं जल-जंतेहिं सिंगेहिं अंजलिहिं गंडूसय-सयल-पणावइहिं चंदण-कप्पूर-करंवियई सव्वुसिण-जलेहिं अलि-चुंवियई अवरोप्परु हम्मइ उप्पलेहिं णव-कुसुमेहिं कोमल-कोपलेहिं अद्दद्द-महिसि-घण-कद्दमेहिं अवरेहि मि मणोरह-मद्दवेहिं णच्चिज्जइ गिज्जइ रम्मइ-वि णासिज्जइ उप्परि गम्मइ-वि घत्ता हरि-कुल-उप्पत्तियउ उप्पोत्तियउ सलिलंतराले जंण्हाइयउ। जिणेण दयालुएण लज्जालुएण णिय-कंतिए णं पच्छाइयउ॥ . [१९] उत्तिण्णई दिण्णई अंवरइं . अइ-हलुवई पिहुलई दीहरई णारायणेण जिणु सण्णियउ । जइ देवरु जइ-वि वहुण्णियउ तो काहे-वि उप्परि पोत्ति घिवे चरणेण करग्गें माहिं छिवे जंववइ तेण समल्लविय परिपीलणमंतरेण घिविय तो संवुहे मायरि कुविय मणे . णिब्भच्छिउ णेमि-कुमारु खणे जसु महि तिखंड चरणेहिं पडइ सारंगु जासु करे कडयडइ जो णाग-लोग-सेजहे सुवइ जसु पंचयण्णु मुहे घुग्घुवइ महु सो-वि ण पेक्खु देइ हरि को तुडं जो घिवहि पोत्ति उवरि ८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy