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रिठ्ठणेमिचरिउ णमिऊण सहसा केवलिणं जोईऊण सिरि सिरि-सुह-णलिणं मुणिय जीव-जीविय अविरत्तं तहिं गिण्हंति के वि सम्मत्तं के वि पुणु अप्पे(?) पावजं के वि चयंति सया-पिय-भजं ४ के वि वयाइं लिंति रायाणो केहिं विमुक्को रागो माणो केहिं पि हु सा णत्थावियाई गहियइं सुइ-सिक्खा-वयाई केहिं वहुय पुणु धरिय चरित्ता थिय णं गिरि जिह उण्णइवंता अण्णे के वि सगुरुणो पइणो णिव्वण्णंति गिरं जगवइणो के वि करंति णिवित्तिं महुणो सुणहुल्लस्स के वि तह मिहुणो कायस्साहारस्स वि एक्को तह परिणयणो वि अण्णिक्को के वि भाईणं पुत्ताणं
दिति महंताणं संताणं पच्छा भणिय णमो सिद्धाणं उद्धरणं करंति कंजाणं
घत्ता केहिं वि अण्णाणेहिं णाणाविह लइय अवग्गह। केहिं वि कुसलेहिं परिमाणिय णियय-परिग्गह ।।
[१९] तो दीवायणो वि पिय-भिच्च-सुय-वरिट्ठो।
गुरु-चिंता-महण्णवे तक्खणे पइट्ठो ॥ १ (हेला) धिद्धिगत्थु जीविउ मणुयत्तणु धिद्धिगत्थु परियणु वंधव-जणु धिद्धिगत्थु मणि-धणु सकंचणु धिद्धिगत्थु महिलायणु जोव्वणु जहिं महु मणहो कोउ संवज्झइ जहिं महु पासिउ पट्टणु डज्जइ जहिं महु पासिउ जउ-कुलु णासइ जहिं महु पासिउ सयलु वि तासइ तहिं किं णिवसिए णिमिसेक्कु वि विसएहि वेयारिउ जइ लोक्कु वि सव्व पयारे कलुणु रसाहिउ +++++++++++++++ भट्ठि जाउ गिह-धम्मु असारउ णाणाविह दुक्खहं हक्कारउ | वरि अरहंतु देउ आराहिउ मुत्ति-रमणि-रसभर-उम्माहिउ भल्लउ एहु दस वावालंकिउ ससुउ सभज्जा सो दिक्खंकिउ
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