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________________ सत्ताणवइमो संधि घत्ता पुक्खर-वर-दीवहो पच्छिमए मेरु-गिरिहे दाहिण-दिसए सीओय-महाणइ-उत्तरेण तहिं गंधमालिणि-विसए॥ [१६] वेयड्ढ-महागिरिहे पहाणु विज्जाहर-लोय-णिवास-थाणु तहो उत्तर-सेढिहिं पहाण-णयरु सुरप्पहु +++++ जे खयरु पिय धारिणि तहो सुय जाय एय । चिंता-गइ मण-गइ चवल-वेय अच्छंति कुमारत्तणेण जाम एत्तहे जे अरिंदम-णयरे ताम णामेण अरिंदमु खयर-णाहु सोहग्ग-रूव-संपय-सणाहु तहो अजियसेण णामेण देवि सुहवत्तणेण थिय जगु जिणेवि पियसुंदरि तहे उप्पण्ण दुहिय छण-इंद-रुंद-अरविंद-मुहिय पडिघडेवि ण सक्कइ विहि-वि जाहे वप्पे वि समत्थु को पडिम ताहे घत्ता . गिरि-मंदर-सिहरहो परिघिवेवि माल ण पावइ जाम करु। मेरु ति-वार पासेहिं भमेवि जो गेज्झइ सो ताहे वरु॥ ४ विज्जाहर भग्ग पवंड जे-वि जिय-मण-गइ चवल-गइ-वि ते-वि चिंतागइ भायर अवसरेण गउ लइय माल णिविसंतरेण अवगणिय सुंदरि जइ-वि आय तुहुं अम्हहुं वट्टइ भाउजाय कण्णए वर-वयण-परज्जियाए सोहग्ग-मडप्फर-वज्जियाए पव्वज्ज लइय दम-वर-णिवासे गणिणिहे णिव्वुइ-कंतियहे पासे वर तिण्णि-वि तहिं जे गुरुत्तमंगे तउ करेवि मरेवि उप्पण्ण सग्गे माहिंद-कप्पे सामण्ण देव णिवसेवि सत्तंवुहि-समय एव ते विण्णि-वि मणगइ चवलवेय उप्पण्ण अमियगइ अमियतेय घत्ता गिरि-मेरुहे जंवूदीवहो तियसाहिवइ-महा-दिसए। सीओय-महाणइ-उत्तरेण विउले पुक्खलावइ-विसए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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