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________________ रिट्ठणेमिचरिउ ४ लइउ पोसहु समए मरेप्पिणु सोहम्मेसहो कंत हवेविणु कउसंवीहिं सुमित्त-सुभद्दहो जाय पुत्ति गुण-जुत्तहो धम्ममइ त्ति धम्म-संपण्णिय वर-लायण्ण कणय-कण-वण्णिय जिणमइ-अज्जिए पासे लएप्पिणु । जिण-गुण-संपय वउ पालेप्पिणु मुय मह-सुक्केंदहो वल्लह पिय हुय तयवीस-पल्ल-सायर-मिय पुणु गयसोय-णयरे खंदमइहे मेरुचंद-रायहो गुण-गरुयहे गोरी-णाम धीय णं अच्छर तुहं संजाय पयासिय-सर-सर घत्ता आणेवि दिण्ण णारायणहो तेण दिण्णु महएवि-पउ। णर-सुर-सुह भुंजेवि तइय-भवे पुणु पावसहि परम-पउ । [१८] तहिं अवसरे णवेवि जिणिंद-पय पोमावइ पुच्छइ विगय-भय तित्थंकर दुक्ख-णिरंतरई तुहं पभणहि महु जम्मंतरइं जिणु कहइ पुत्ति संभलहि सई उज्जेणिहिं आसि णराहिवइ अपरजिउ-णामें पवर-सिरि तहो विजय-घरिणि सुय विजयसिरि ४ सा हत्थिसीस-पुर-पत्थिवहो दिण्णी हरिसेण-णराहिवहो एक्कहिं दिणे ताम मुणीसरहो हेलाए जिय-वम्मीसरहो आहार-दाणु सुयंधु पवरु अइभत्तिए दिण्णु छुहंतयरु कालागुरु-धूवें गब्भहरे पुणु सुव मह-णिद्दहे तणए भरे रिसि-दाण-भोगि सुहक्कुवइ उप्पण्ण खित्ति सा हइमवइ पल्लेक्कु गमेविणु तहिं-वि मुय पुणु तारा-णाहहो देवि हुय चंदप्पह-णामें सुंदरिय मण-वल्लह णयण-सुहंकरिय णाण-मणि-रयणाहरण-जुय पल्लट्ठम आउ गमेप्पि चुय घत्ता पुणु एत्थु भरहे मगहा-विसए सामिलिसंठि-गामे पवरे। देविल-गब्भंतरे संभविय जयदेवहो गहवइहे घरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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