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एकुत्तर-सउमो संधि
[१९] तहे णामु विणिम्मिउ पउमएवि अवइण्ण णाई सई पउमएवि लहु पउमएउ णामेण भाइ तें सहुं णंदण-वणे जाम जाइ तहिं ताम दिछु वरधम्मु साहु अहिणंदेवि दुहिय-पयंग-दाहु वउ लइउ ण णजइ णामु जासु ___इह-भवे णिवित्तु महु फलहो तासु अवरेक दिवसे वाह-प्पहाणु उक्खंधे आयउ चंडिवाणु सो सहसा सयल्ल-वि गाम लेवि गउ पउमएवि वंदिउ धरेवि चडु वार-सयाइं करंतु ताए ण समिच्छिउ सीलालंकियाए परियाणेवि तं मगहेसरेण सीहरहें णिहउ स-मच्छरेण
घत्ता भय-भीउ असेसु-वि पल्लि-जणु हरिणु णाई समूढ हुउ। भक्खेवि किंपाय-दुमहं फलई काणणे ढुलढुल्लंतु मु॥
[२०] ता पुणु जयएवहो तणिय धीय सा पच्चक्खाणु मणेण लेवि उप्पण्णी पुणु हइमवइ-खेत्ते पुणु तत्थहो दीव-सयंभुरमणे विंतर-सुरवइहे सयपहासु तत्थहो पुणु भरहे जयंत-णयरे उप्पण्ण विमलसिरि सिरिय दुहिय पोढत्ते मलय-विसयाहिवासु सइमेह-णाम-णामंकियासु हुउ मेहघोसु णामेण पुत्तु
भिल्लाहिवेण जा हरेवि णीय दिढ-वय अणसाइय-फलु मरेवि स विएक्क-पल्ल-आउस-णिउत्ते घरिणि हरिसिय-पहि अमर-रमणि ४ हुय णामें सयंपहदेवि तासु सिरिहर-रायहो सिरिमइहे उवरे छण-दिण-समुद्द णं लवण-मुहिय सिरि-भद्दिल-पुरवर-पत्थिवासु ८ अच्चंत-विहोए दिण्ण तासु वहु-कालें णरवइ मरणु पत्तु
घत्ता
तहो तणए विओएं विमलसिरि सहसा कलुणु समुन्भविय। दिढमइ-पउमावइ-कंतियहिं पासु पढुक्केवि पव्वइय ॥
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