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एकुत्तर-सउमो संधि पंच पल्ल अणुवमु सुह-कित्तणु भुजेवि तेत्थु चारु देवित्तणु कालें तहे वि जाउ परियत्तणु इह गंधार-विसए संचिय-धणु राउ पुक्खलावइ चंदाणणु णिय-भुय-वलेण परज्जिय-अरियणु वासवगिरि-मेरुमई-कंतहु हुय गंधारि धूय गुणवंतहु किर मेहुणहो दिजइ लग्गी णारएं कहिउ कण्हु तुह जोग्गी तेण-वि पडिविवक्खु अणिमाणिउ(?) कण्णा-रयणु गिहासमे आणिउ लद्धउं पइं महएवि-पहुत्तणु चारु-लोयणे जिय-अच्छरयणु
घत्ता तउ करेवि हरेवि तिय-जम्मु णिरु पावेवि अमर-पहुत्तणु। सिज्झेसहि कावि भमंतिकरे (?) इह तउ करेवि णिरंजणु ॥
[१६] तं णिसुणेवि सा-वि पमुइय-मणु जिणु पणवेवि णिग्गय णिम्मल-तणु एत्तहिं जिणु पणवेवि सइत्तिय पभणइ गोरि-णाम हरि-पत्तिय चउ-गइ-गमण-दुक्ख-संतत्तिय पुणु-वि पयत्तण-भय-कंपंतिय किं हउं भव्व अभव्व जिणेसर कहहि देव महु उहय-भवंतर पभणइ णेमिणाहु सुणि सुंदरि तुहुं आसण्ण-भव्व न डरु करि करि गयवर-पुरे धणदेउ महा-धणि सेट्ठि तासु पिय णामें जसस्सिणि घर-सिहरोवरि ठिय चारण-मुणि अवलोएवि सुमरिय-गय-भव मणे अक्खिउ सहियहिं धादइसंडए पुव्वामर-गिरि-उत्तर-खंडए तहिं असोय-पुरे जाया सेट्ठिहे णामाणंदहो णिम्मल-दिट्ठिहे
घत्ता अमियाइअ-सायर-मुणिवरहो देविणु दाणु पहिट्ठए। तहो फलेण कियइं पंचुद्धवइं देविहे मणे परितुट्ठई ।।
[१७] विस-जल-संगें स-पिउ मरेप्पिणु गउ सुर-कुमरु णिय-देहु मुएप्पिणु पुणु दिवे ईसाणेदहो कामिणि तत्थहो चएवि जाय हंसहिं मुणि पुणु तिण्णि घर-धण-मोह णिसुंभेवि णामें सुभडु मुणीसरु वंदेवि
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