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________________ अट्ठाणवइमो संधि सिवदेविहे कहेवि भवंतरई सुहि वयणेहिं करेवि णिरुत्तरई। वारमइहे लाएवि रणरणउं गउ जिणु +++ कारणु अप्पणउं ।। १ विंझाहिउ इब्भकेउ चिंतागइ हउं आएहिं अहिहाणेहिं आयउ पढम पुलिंदी कंदाहारिणी पुणु जिणयत्त जणेरी महारी लुद्धउरि(?) सहदत्तु सूरप्पह एत्तिय एए जणेर महारा वेण्णि भवंतर मगहा-मंडले गंधिल-कुरुजंगल-सोरटेहिं पल्लिहिं रायगेहे सूरप्पहे समरु-सुकेउ-पियंकर-णंदण वगुर-कमल पियई वसुणंदउ अपरजिउ सुप्पइकु णेमिवइ माए माए सुणु अक्खमि मायउ पउमलच्छि पुणु पुच्छए धारिणि सिरिमइ तुहुँ सिवएवि भडारी अरुहयासु सिरिचंदु जहुप्पउ कहमि देस देवह-मि पियारा एक्क-वार वेयड्डुत्तर-थले एत्तिएहिं उप्पण्णउ रटेहिं सीहणयरे गयउरे पुणु दारहे सहुं सुअरिसणे णयणाणंदण पियसुंदरि राइमइ सुभज्जउ । घत्ता महु जणणि-जणेर-देस-पुरहुं णंदणंदहं अणेयंततेउरहुं। केत्तियहुं करेसहो संभरणु वरि एवहिं लइसु तवच्चरणु ॥ [२] अच्छमि तो वि माए म झूरहि जइ चिंतविय मणोरह पूरइ अच्छमि जइ महु एत्तिउ सारहि जम्मण-जर-मरणइं विणिवारहि अच्छमि जइ पट्टणु अजरामरु अच्छमि जइ ण होतु जम-डामरु अच्छमि जइ इच्छंति सुहंकर जे गय एक्कवीस तित्थंकर अच्छमि जइ अच्छंति सु-कुलयर जे गय भरह पमुह चक्केसर अच्छमि जइ तिहुवण-सिरि आणहि अच्छमि जइ मई मोक्खु पराणइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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