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सत्तावइमो संधि
घत्ता
हिणि सुगंद सुरसणु सुउ सिरिमइ सिरिचंदु णराहिवइ
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सुपट्टे रज्जु करंतएण एक्क- दिदिणे जसोहरासु तो फलेण तेण किय-तियस तुट्ठि
हय दुंदुहि साहुक्कारु जाउ सुरतरु-कुसुमालि सुरहि मुक्क वइराय - भाउ उप्पण्णु तासु केवल सुकेउपाय - मूले मल - पुव्व - सरीरहो पीडणेहिं
घत्ता
भावेप्पिणु सोलह कारणाई उप्पण्णु माए सो एत्थु हउं
तिण्णि-वि थियई समुण्णयई । उ करेवि सग्गहो गयई ॥
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करिवर- पुरु परिपालंतएण आहार- दाणु सु-तवोहरासु आयासहो पडिय सुवण्ण-वुट्ठि समणोहरु दाहिणु आउ वाउ बहु-दिवसेहिं मंदिरे पडिय उक्क णिय-रज्जु समप्पिउ णंदणासु पव्वज्ज लइय णिपयाणुकुले तव चरणेहिं सीह - णिक्कीडणेहिं
मरेवि जयंते णिवद्ध-रइ । णेमि सयंभुवणाहिवइ ॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव - कए सत्ताणवइमो संधि समत्तो ॥
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