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________________ ४८ रिट्ठणेमिचरिउ ८ णिहि-रयण-चउत्थ-चउत्थ-भाउ चक्कवइ-अद्ध-अद्धाहिराउ परमाउ परिट्ठिउ पुव्व-कोडि अणुहारिएणं विहि तइया फोडि घत्ता जेत्तडिय विहूइ णराहिवहो विहि महरिसिहि-मि तेत्तडिय मासावसाणे जं मरणु थिउ पर असुहच्छी एत्तडिय ॥ [२३] पक्खेवि रूवई सुह-दसणाई रिसि वंदिय दिण्णइं वइसणाई एहु पभणइ पुलउब्भिण्ण-देहु महु तुम्हहं उप्परि पोढु णेहु णवि जाणहुँ केण-वि कारणेण वोल्लिज्जइ जेट्टे चारणेण सुहे संगमे अवसें पीइ होइ णिय-भायर किं वीसरइ कोइ तुहुं विंझ-राउ तोणीर-धीर एहु रिसि वग्गुर तउ तणिय णारि तुहुं इब्भकेउ एहु मंति तुज्झु हउं कमलाएवि कलत्तु तुज्झु विण्णि-वि देवत्तणु तवेण पत्त एकंवुहि णिवसेवि पडिणियत्त तुहुं चिंतागइ हउँ चित्तवेउ एहु विहिं लहुयारउ चवलवेउ पियसुंदरि अवसरे लइय दिक्ख माहिंद-विमाणहो दिण्ण विक्ख सत्तंवुहि णिवसेवि एत्थु आय रिसि अम्हहुं तुहुं मंडलिउ राय घत्ता अह किं वहु-वाया-वित्थरेण जं जाणहि तं तुहुं करहि । रक्खिज्जइ जइ-वि पुरंदरेण तीसमए दियहे तुहुं मरहि ।। [२४] गय कहेवि महा-रिसि अंवरेण सीहउर-णयर-परमेसरेण जिणवर-पडिमउ अहिसिंचियाउ अट्ठाहिउ कमलेहिं अंचियाउ सुउ रज्जे पियंकरु थवेवि भव्वु धणु दीणाणहहं दिण्णु सव्वु वावीस-दिवसु सण्णासु करेवि संथार-सयण-मरणेण मरेवि सोलहमए सग्गे सुरिंदु जाउ वावीस-महण्णव-सेवियाउ कुरुजंगले करि-पुरे पवर-वीरु सिरिमइ-सिरिचंदुब्भव-सरीरु णामेण णराहिउ सुप्पइडु महि पालइ णिव वइसणे वइडु ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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