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________________ रिठ्ठणेमिचरिउ भउ जाउ महंतु णराहिवासु विहडफ्फडु गउ दोमइहे पासु परमेसरि पभणइ अभउ देति मई अक्खिउ जिह गंधव्व एंति . घत्ता तिण-दंतु णरिंदु सव्वेहिं पाएहिं पाडियउ। विडु अ-विणयवंतु कउण होइ विब्भाडियउ॥ . [१६] सा पंकयणाहेण सरहसेण मेल्लाविय पत्थहो जण्णसेणि परिपुण्ण मणोरह तुहि जाय पडिवारा छ-वि छहिं रहेहिआय परिपूरिउ कुरु-गुरु-घायणेहिं णिय-जलयरु णर-णारायणेहिं जणु वहिरिउ कंवुअ-महसरेहिं णं गज्जिउ विहिं खय-जलहरेहिं तो चंपापुरि-परमेसरेण कविलेण अद्ध-चक्केसरेण जिणु पुच्छिउ वम्मह-मय-विमद्दु एहु कहो णिसुणिज्जिइ संख-सद्दु वजरइ भडारउ णिरवलेउ एहु जंबूदीवहो वासुएउ पेक्खणहं णराहिउ विणयवंतु विणिवारिजंतु-वि गउ तुरंतु ८ घत्ता अवरोप्परु दिनु उप्परि लवण-महण्णवहो । ण विरुज्झइ जेम जिण-भासिय-परमागमहो। [१७] चंपा-परमेसरु पडिणियत्तु कुरु-जंगलु देसु अणंतु पत्तु पंचालए सहुं वोल्लंतु जाइ धट्ठज्जुणु दुमउ सिहंडि णाई अच्चंत सिंघ गयणम्मि धुत्त ओयरेवि जउण थिय पंडु-पुत्त ल्हिक्कियइं सव्वई तारणाई णं कियई विरोहहो कारणाई तो कण्हु स-कण्णु स-सूउ पत्तु। कालिंदि-महद्दह पुलिणु जत्तु परिपुच्छिय पंच वि विण्ण केवं स-तुरंग स-सारहि ण किय खेव ताह-मि मुह-कुहरुच्छलिय वाय भुय-दंड-तंरडउ करेवि आय पह-परिसमिएण-वि केसवेण स-तुरंग स-दोमइ स-धुरितेण (?) ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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