________________
रिठ्ठणेमिचरिउ
घत्ता
तुम्हिहिं दिखेहिं सुह-रस-पसरिय-परिमलई । कर-गिज्झइं होति सग्ग-मोक्ख-सुक्खई फलई ।।
४
सायर-गंभीर-महासरेहिं आसीस दिण्ण परमेसरेहिं जम-जलण-पवण-वइसवण-खंद कुल-सेल-समुद्द-दिसा-गइंद णक्खत्तई चंदाइच्च जावं महि भुंजउ णीसामण्ण तावं णंदउ हरि-वंसु अणेक्क-काल जिह तिण्णि चक्क हल चक्क-पाल हरि-वल तित्थंकर परम देव अमरेहिं करेवी जाह सेव कोती-णंदण णंदंतु सव्व जिण-सासण-वच्छल परम भव्व गंगेउ खमाविउ खमहि ताय महि-कारणे केण ण दिण्ण घाय तुम्हह आसीस-तरंडएण उत्तिण्ण किलेसहो खंडएण
घत्ता आएहिं णियाइं दुक्खइं भयई अमंगलई । पर दिट्ठई ताय एवहिं सव्वइं मंगलई।।
४
सर-णियरालिंगिय-विग्गहेण वुच्चइ मयरद्धय-णिग्गहेण दुजोहण-मागह हीण-सत्त णिय-णिय-दुच्चरिएहिं मरण पत्त तुम्हइं धर-धीर महाणुभाव महि भुंजहु चंदाइच्च जावं मई खमिउ असेसह खमहु तुम्हि लइ ढुक्कु पयाणउ जाहुं अम्हि आउच्छिय सयल-वि किय-णिसल्लु एत्तडउ भणेवि जइ किय-महल्लु तो माणुसु कहि-मि ण दद्धु जेत्थु मइ गंपि डहेज्जहु णवर तेत्थु विण्णवइ जुहिट्ठिलु णवेवि पाय हउं पेसणु एउ करेमि ताय वोल्लंतहो ए आलाव तासु कंठ-ट्ठिय पाण पियामहासु महरिसिहिं पघोसिउ कण्ण-जाउ वंभुत्तरु गउ असरीर-भाउ णीलइ हरिहे उत्तर-गंड-सेले सिर-सिहरे दड्डु मज्झण्ह-वेले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org