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तिणवइमो संधि
घत्ता
ता उट्ठिय वाणि एत्थु दड्ढ गंगेय-सउ दो दोण-सयाई कण्णज्जुणहं पमाणु णउ ॥
सच्छंद-मरणु मुउ भीसु जेत्थु पुण्णाउस अमर पडंति जावं । पल्लोवरि ससि-रवि-असुरमंति संवच्छर काह-मि ओणु पल्ल णक्खत्तहं पल्ल-चउत्थ-भाउ वंधव पट्ठवेवि कियंत-साल महि अचल जुहिट्ठिल हुव काहं किं णल-णहुस-वलि-रावणाहं किं चक्कवइहिं किं हलहराहं
अजरामरु माणुसु कवणु तेत्थु सामण्ण-णरेहिं को गहणु तावं सम-लक्खु सहसु सउ ते जियंति अवसेस पंच-अद्भुट्ठ पल्ल दुइ तेत्तीसोवहि सुर-णिकाउ जीवेसहि तुहु केत्तडिय काल किं मागहणाह-दुजोहणाहं किं सिवि-दिलीवि-सहसज्जुणाहं किं तित्थयरहं किं कुलयराहं
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घत्ता
मुय णरवर-लक्खु तव-णंदण तो-वि
अमर-सहस वंभाण-सय। काह-मि पच्छए महि ण गय॥
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गउ तव-सुउ कहिउ सहोयराहं जलु देमि जाम मेलविय पाणि इह सउ गंगेयहं दड्ड आसि उपण्ण चोज हरि-हलहराहं थोवंतरु तहिं अच्छंति जाम वेयड्डहो तिण्णि-वि साणुराय पडिवत्ति जहारुह करेवि तेहिं चउ-दिसु संवच्छर भमेवि अट्ठ
वलएव-सामि-दामोयराहं उच्छलिय ताम णहे दिव्व वाणि दो दोणहं कण्णज्जुणहं रासि सामंतहं मंतिहिं किंकराहं जणे उठ्ठिउ तूर-वमालु ताम पज्जुण्ण-संव-वसुएव आय पुणु दिण्णु पयाणउं जायवेहिं पुणु सरहस दारावइ पइट्ठ
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