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________________ ९६ [१६] छुडु छुडु जि पलंविय - पाणि जाम तें दीसइ अहिणव-परम-सवणु णिक्कंपु णाई कंचण - गिरिंदु पुणु णिय-सु-सोयंकिय-मणेण एहु मम दिणिविणास - करणु पाविडुदुडु मारमिण जाम एहु चिंतेवि आसु समल्लिएवि णिहरु णिउ कारणु करेवि तो मत्थइ बंधेवि खणिण पवरु घत्ता पुणु गउ सो महिएउ साहुहिं केरउ णाई [१७] सवणु वि झाणग्गि-पलित्तउ वहु-इंगाल-दड्डु थक्कउ विकंप ण वि गहण (? झाणहो) जं किर कालंतरि णिखमेसइ तं विहि-घडियहिं मज्झि अणुच्छिउ उप्पण्ण सहसति पहाणउं पावविउउपरमेत्त दियत्तणु (?) खणे परमेट्ठि - सुसोहिय - मग्गहो गंधाइ तो तणु किय-सेवेहिं तं अवयासु सुवि उभा हत्थ करेवि Jain Education International णिय - णयरु परत्त - विरोहउ । चउ-घाइ - कम्म-संदेहउं ॥ सोसोमसम्म दिउ आउ ताम मण-चवल - विसय-कयवियलिय-मउ णाई महा-करिंदु चिंतविउ सरोसें बंभणेण घत्ता 1 तव चरणहं कारणु राय-हरणु कउ हियवहो महु संतोसु ताम खिल्लहिं खिल्लिय कर कम णिएवि णिग्गउ सुणिसुणि सो सेणु लेवि ८ किउ जलिय - विहाणिंगाल - सिहरु - णिम्मल - चित्तउ थिर (?) मणु थक्कउ चल्लइ धीर ण मिल्ल कम्म डस खयहो पमिच्छउ (?) केवल - णाणउं [सो धण्णत्तणु ] गउ लोगो पुज्जिउ देवेहिं सहसा परिवड्डिय-सोएं। धाहाविउ जायव - लोएं ॥ रिट्ठणेमिचरिउ For Private & Personal Use Only - विसम-दमणु ४ १० ८ १० www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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