________________
तिउत्तर-सउमो संधि
१०१
मागहाणया अत्थए पलंब-णिरत्थए पसरिय-णिय-णहा-सोहए अंघि-पउम-जिय-णलिण-सोहए
(मागधिका छंद)
। घत्ता कमलाणंदणु णिय-भा-भूसिय-भुवणोयरु। वर-दीहर-करु संचल्लिउ णाई दिवायरु॥
तहिं पत्थावि तार-संभार-पबल-दल-मालए
संचलिय महाबलिय ++++++++++++++॥ १॥ (हेला) सो णारायणिट्ठ-सुदेसबुकुमालाए अट्ठमि-यंद-रुंद-पिहुलुण्णय-भालाए विजाहर-कुमार वि सवर-खइ-णेयाए वहु-जरसिंधु-वंधुवरक्खुर-क्खुर-पायाए हेमल-दल-हिडंव-घण-तम-दिणणाहाए सिंधव-हूण-जाण-हुयवह-जल-वाहणाए विवरीहीरवीकसमीर(?)-अणुरत्ताए वर-वारण-वलग्ग-अमर-गिरिंदाए ४ जालंधर-डहार-सुभद्दा-सुरभद्दाए केरल-कामरूव-वण-गहण-हुयासाए पारासय-सुकंत-रुक्ख-फलभर-कीराणणाए खस-जोहेय-दडुर-फणिरायाए पच्छिक्कुडुक्काणरसिरवणिज्जासणिघाय वलकण्णाहु दविडए णमंत-पाय खग्गुज्जल-सूर-प्पहहरु
पचलिउ लीलए णावइ णव-पाउस-जलहरु ८
घत्ता तो हरि-राम-काम-पमुहेहिं जायवेहिं पासु पवण्णएहिं कंटइय-अवयवेहिं॥
[७] दीसइ समवसरणु जग-जणिउज्जोयउ
णं लोहियउ भूहरो जम्मअसेयाहिय-णागिंदउ ॥१ (हेला) भामंडलु समिद्धु णावइ रामायणु सीहासण-सणाहु थिउ णाइ महावणु णावइ छंद-सत्थु सुंदर-जइ-मालाहरु णं मंदर-णियंबु णंदण-वण-मणहरु +++++++++++++++++ दीसइ णाई पाउस ण परतिह जे घय(?) णावइ महि-पवण्ण सुरओय-समप्पहु देविंदु रोस-बहुलु पसरिय-रणप्पहु ४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org