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________________ १०२ घत्ता तहि जिणु लक्खियउ जायव-जणेण आइ-महेसरु रिसहु व चिरु [८] पुणु ते पउम -सहाव- पियर-गुण-साणुराय बल - गोविंद पुणु पुणु मंति जिणह पाय ।। १ ( हेला) जय जिण मणु-दय-गणवइ-फणवइ - णमिय-पय- जुय अथिर-मण-पवण-दिणमणि-विलयण - वरुण-सणिजुया जय तियसवइ - कुवइ - जमिवइ - रिउ - गहवइ - धणय-वंदिया जय भुवणवइ धीर-चित्तुब्भव - खमणवग्ग-संदिया हय-गय-कणय-पाणिंदादिससर-भड - घाडउदु-गुण- घण घण - उलय - संसिया जय विस विसम - विसय-गह परिसह सुहिय- णिवह साहया ४ - जय तइलोय - णमिय अइसय-वर - 1 र- पाविय-परम- संपया मलिणिलयाणि रणि फेडिय - दुग्गह- जड-लवलय- सामला जय जय जल-जउण-जल - कज्जल - इसि - सुमणस - समुज्जला जय कमलभव - तंब- -तणु भव- अखलिय- - सुण-भ - भवंतया जय भव-समय-समयणविण चउतीसाइसयवंतया - गरुय - अणुराएं । अमर णिहालए ॥ - घत्ता तुम्हहं सग्गहो जइ इह अवयरणु ण होंत । ता दुक्किय-भारेण जगु हिट्ठामुहु जंतउ ॥ जल - कल्लोलुप्पील- रउद्दे जाहं णय कारिउ सहसक्खें जाहं संख-कोडिउ अट्ठारह मंदिर जाहं जाउ जिण - जम्मणु Jain Education International [९] एवमेव मि तित्थंकरहो पहिट्ठा । जायव- णिरवसेस पर-कोट्टई णिविट्ठा ॥ १ ( हेला) - रिमिचरिउ For Private & Personal Use Only जाहं दिणु ओसारु समुदें जाहं हि धणु वरिसिउ जक्खें जाहं अणाय - लक्ख-हय-गय-रह जाहं सामि सयमेव जणद्दणु ८ १२ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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