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रिट्ठणेमिचरिउ झत्ति कम्म-वल्लरी उच्छण्णी केवल-णाण-रिद्दि उप्पण्णी ४ धणएं समवसरणु णिम्माणिउ सुर-वलु सयलु सुरिंदें आणीउ पेल्लावेल्लि विमाणहं वट्टइ तो हरि हरिसाहरणु पयट्टइ काम-भोय-सोहग्ग-मरट्टई
घत्ता गिरि-उज्जंतु पराइयउ अहिवंदण करेवि भडारए। जायव-सयइं परिट्ठियई वारहमए वक्खारए॥
। [१९] रिसिगण-कप्पंगण-माणिणिउ जोइस-विंतर-भावण-धरिणिउ भावण-पमुहट्ठद्ध-पयारा णर-वणयर वारह वक्खारा समवसरणु तं णिएवि जिणिंदहो अण्णु-वि सग्गागमणु सुरिंदहो सिरिवरइत्त-सामि रंजिय-मणु रोहिणि-पुत्तउ रेवइ-णंदणु ४ तव-चरणेक्क-सुहा-रस-लइयउ दसहिं कुमारेहिं सहुं पव्वइयउ गणहर ते-वि जाय तहिं अवसरे दिव्व वाणि उप्पण्ण जिणेसरे सुणेवि धम्मु दु-चउद्दह-लक्खणु अणु-गुण-सिक्ख-महव्वय-रक्खणु राइमइए सहुँ तियहुं पगासइ पव्वइयइं चालीस सहासई
घत्ता सहस अट्ठारह महा-रिसिहिं गणु सत्त-पयारीहूयउ। तिण्णि लक्ख तहिं सावियहं सावयह लक्खु संभूयउ॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-संयभूएव-कए कविराज-धवल
विणिम्मिए समवसरण-कहणं णाम णिण्याणवो संधि॥
काऊण पउमचरियं सुद्दय-चरियं च गुण-गणग्यवियं । हरिवंस-मोह-हरणे सरस्सई सुढिय-देह व्व॥
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