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रिट्ठणेमिचरिउ
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सो पभणइ धायइ-संडु केत्तु चउ-लक्ख-परम-जोयण-पमेत्तु कालोवहि-वेढिए तहिं असंक णामेण एह पुरि अमरकंक हउं पउमणाहु इह भुंजमाणु विहवेण सक्कु साहण-समाणु वामोरु णियंविणि तुह कएण णवि महु दिहि चंदण-पंकएण ण जलद्दए ण मयलंछणेण आणाविय तें तुहुं कारणेण लइ देसु असेसु वि पुरवराई धय-चिंधई छत्तइं चामराई
घत्ता लइ मणि-रवणइं रह-गय-तूरई वसणउं । उल्हावि वलंतु पिय महु विरह-हुवासणउ॥
[१२] तं णिसुणेवि पभणइ दुमय-पुत्ति आसंक-विवज्जिय धुत्त-धुत्ति गंधव्व पंच पच्छण्ण-वेस कंपति जाहं अमर-वि असेस ते जले थले णहयले परिभमंति अणिवारिय-गोयर संचरंति जे जे जुआण मई अहिलसंति ते ते गंधव्वहं खयहो जंति भंजंति णरिंदाणंदिराई पायार-पओलिउ मंदिराई अहिलसिय आसि हउं कीयएण सो चूरिउ दइवें वीयएण जिह तइं तिह हरिय जयबहेण पच्चेडिउ सो-वि जयद्दहेण मासावहि जइ ते कह-वि णाय तो जंभावइ तं करहि राय
घत्ता
सिरे वेणि णिवद्ध चत्ताहार किलेस-सह। थिय णिरलंकार णं दुक्कइ-किय कव्व-कह॥
[१३]
पंडवेहिं ताम वसुमइ गविट्ठ चक्कवइहे केण-वि कहिय वत्त किर खेडा भमाडइ णियय-सेण्णे माणिज्जइ धायइ-संडु दीउ
णउ कहि-मि धणंजय-धणिय दिट्ठ णिय कंत कण्ह करि विजय-जत्त देव-रिसि पराइउ लग्गु कण्णे तहिं पउमणाहु णिय-कुल-पईउ
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