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रिठ्ठणेमिचरिउ
पिय-घर-घरिणि-मोहु विहुणंतउ णिय-मणे पंच-पयई सुमरंतउ जो अभव्वु सो चिंतावण्णउ आगामिय-दुह-कलुसु वहंतउ अट्ट-रउद्दे मणु पोसंतउ हा किं किं होसइ जंपंतउ पिय-घर-वसु-विओय-कंपंतउ मोह-महादहे णिम्मजंतउ
घत्ता
सई भुव विहुणंतउ एम जणु भावि-किलेसादण्णउ। थिर-भावाउल-रस-पूरियउ हरिस-विसाय-पवण्णउ॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-उव्वरिए तिहुवण-सयंभु-रइए बल-पण्ह-णाम तिउत्तर-सउमो संधि॥
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