SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छण्णवइमो संधि घत्ता सारंगु लउ जिण - णाहेण जइ वि महा-करि-कप्पणउं । गुणवंत मोक्खहो भायणु तं किं जिणहो अणप्पणउं ॥ [३] लइउ सरासणु एक्वें हत्थें विणि-वि लेवि जग-तय-सारउ तामणिवारिउ आउह-पालें संखुण पूरिज्जइ सामण्णें तिणि-वि सहइ णवर गोविंदहो आरक्खियहो धरंत-धरतहो वाम - करेण स-चरणंगुट्टे अवरें पंचयण्णु संभाइउ घत्ता फणिचूरि चाउ चडावियउ हरि - जलयरु परिपूरियउ । सो को वि णयरब्भंतरे [४] - घणेण वियंभिउ अंवरे गजिउ जलरु जिण - मुह-वाएं णं दुंदुहि देवाविय इंदें णं खयसंखुणफुण जइ पुणु सव्वायामें पूरइ तो- वि तुरंत तुरंगम तट्ठा जिणवर - वयण-पवण - पब्भारें णिहेलणु तुट्टई घर - सिहर जणु झूरिउ चलिय धराधरेंद धर डोल्लिय अवरें पंचयण्णु वीसत्थें किर सेज्जहिं आरुहइ भडारउ एउ चाउ ण चडप्पड़ वालें नाग - सेज्ज ण मलिज्जइ अण्णें दुसहई पर होज्जइ अमरिंदहो सुत्तु भुअंगम-तलिणे अणं हो चाउचाउ मणे परितुट्ठे चंदु विडप्पे णं मुहे लाइउ Jain Education International 1 - विहिन विसूरियउ ॥ णं खीरोवाहि मंदर - घाएं णं ओरालिउ पलय - मगिंदे विडिउ विज्जु-पुंजु णं महिहरे तं किरणेमि - कुमारहो खेलणु तो तइलोक्क - चक्कु मुसुमूरइ भग्गालाण महा-गय णट्ठा पडिय पओलिय समउ पायारें फणिवइ-फण- कडप्पु संचूरिउ चंदाइच्च स सज्झस झोल्लिय For Private & Personal Use Only ३१ ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy