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________________ बिउत्तर-सउमो संधि १ ४ विहरंतए जिण-णाहे अवहत्थिय-माण-मडप्फर । चउ-गइ-भव-सय-भीय पव्वाइय अणेय णरेसर ॥ (ध्रुवकं) [१] एत्थु-वि ओसारिय-णइवइहिं वइसवण-कियहिं दारावइहिं कामिणि-जण-णयणाणंदणहो तहो देवइ-अट्ठम-णंदणहो णव-णीलुप्पल-दल-सामलहो । पंचाणण-सहस्स-सम-वलहो णारायण-लहु-एक्कोयरहो। गय-णामहो णव-जोव्वण-वरहो चक्काहिव-पमुहेहिं जायवेहिं रोमंचाऊरिय-अवयवेहिं आढत्तु विवाहु महोच्छवेण वद्धावण-तूर-महारवेण सुय सोमसम्म-विप्पहो तणिय णामेण सोम सोमाणणिय धवलुजल-लइय-पसाहणिय वर-वंस-जाय णव-जुव्वणिय अणेक्क विद्दुम-रायंगरुह विवहल-उट्टि सिय-कमल-मुह पहवइ-णामें जग-पायडिय णावइ सइ सग्गहो आवडिय पत्ता वेण्णि-वि कण्णउ ताउ मंडिय जेम मह-तेयउ। तेम विवाहाणामत्तु मउलिय सुयाउ अणेयउ॥ ८ [२] दुद्दम-दणुग्ग-देह-दलवट्टिणि घरे घरे चंदणेण छडु दिण्णउ मणि-तोरण तोरणई णिवद्ध घरे घरे पहयई वर-वाइत्तई घरे घरे मोत्तिय-रंगावलियउ घरे घरे उज्जलियइं वर-चित्तई घरे घरे पुप्फ-पयर वित्थारिय णिम्मिय-सोह महंती पट्टणे घरे घरे उरे उरि रहसुन्भिण्णउ घरे घरे पेक्खणइं पारद्धई ++++++++++++ कियउ स-सोहियाउ देवलियउ घरे घरे पहिरियाई परिणेत्तई घरे घरे समलव्वउ(?) वर-णारिउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001430
Book TitleRitthnemichariyam Part 4 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages122
LanguagePrakrit, Apabhramsha
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size5 MB
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