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रिट्ठणेमिचरिउ
संवर-पसव-रोज्झ-सस-सूयर णं पिसुणंति रक्ख परमेसर अम्हई णिरवराह विणिवाइय गुत्ति-वासे गिंभे इव ताविय पुच्छिउ सारहि परम-जिणेदें वणयर धरिय काइं गोविंदें आएहिं कवणु कज्जु भणु पेक्खहुँ जम्माउव्वु जेण वरि सिक्खहुं सूएं सूइइ जइ-वि ण रुच्चइ सामि पसुहं वासउ एहु वुच्चइ वणयर हणेवि णियंतहं तुम्हहं दिजउ मंसु सयल-सामंतहं वइयरु कहिउ जं जे जत्तारें धुणियइं अंगई णेमि-कुमारें
घत्ता रहु धरहि तुरंगम खंचहि अवसरु को जाएवाहो। जहिं एक्कु-वि जीउ णिहम्मइ तहो णिवित्ति परिणेवाहो ॥
[१४] खंचिउ रहवरु तो जत्तारें पुणु पुणु वुच्चइ णेमि-कुमारें सारहि सुहइं असउ जइ एहउ दुहइं असउ पुणु होसइ केहउ जीव वहेविणु जहिं परिणिज्जइ तिण कांई संगेण वि किज्जइ अच्छउ कण्ण-करंगुलि-धारणु आरंभु जे संसारहो कारणु अच्छउ भोयणु तं आवग्गउं आपोसणु पढमु गले लग्गउ अच्छउ विसु जं जेण मरिज्जइ माणसु गंधेण जे धारिज्जइ अमिय-महारसु दुक्ख-द्दारहं णारि-णिमित्तु मोक्खु संसारहं चउ-गइ-भव-गमणु जे जइ रम्मइ परिहरिए पर-लोयहो गम्मइ
पत्ता जो आइउ जेण दुवारेण पडिमउ तं दुवारु रमइ। सो अहिणव-गंधायड्डियउ पंकय-भमरु जेम मरइ ।।
[१५] भव-भय-लक्खुप्पाइय-डाहें होउ होउ महु सरिउ विवाहें जहिं विणासु वणयरहं वरायहं सस-सारंग-तुरंगुग्घायहं अपरिग्गह-तणु-तोयाहारहं सिंग-खुरट्ठि-रोम-णीसारहं जिह जिह णाहु विसायहो वच्चइ तिह तिह मणे णारायणु णच्चइ
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