________________
णवणवइमो संधि
केवल-णाण-समागमणे तल-मज्झ-सिहर-तिविहोक्कहो। ति-पवण-वलय-णिवद्धहो संखोहु जाउ तइलोक्कहो।
__ [१]
एक्कु-वि दस-दस-अइसय-जोएं अण्णु-वि परम-सिद्धि-संजोएं तिहुवणु णिरवसेसु उज्जोइउ तहिं चउत्थ-कल्लाणे जिणिंदहो जाय चउविह-देव-वियप्पहं संखाऊरणु पडहप्फालणु चउरमरासण-कंपण-जोएं अग्गए धणउ विसज्जिउ तेत्तहिं
अण्णु-वि केवल-णाणुज्जोएं परमाणंत-गुणोह-णिओएं दीसइ मुहु जिण-दप्पणे ढोइउ रिसि-गण-सेवियंधिअ-विंदहो भावण-विंतर-जोइस-कप्पहं सीहणाय-जयघंटा-चालणु चलिउ सुराहिउ सउं सुर-लोएं णेमिहे णाण-समागमु जेत्तहिं समवसरणु तं तिह किउ जक्खें
घत्ता
सुत्तहारु दस-सय-णयणु कत्तारु धणउ जिणु कारणु। देवागमणु समोसरणु केवलु तहिं कवणु कारणु ॥
[२] जिह रिसहाइहिं णविय विसाणहं तित्थवरहं ति-सत्त-परिमाणहं तिह णेमिहे णव-कमल-दलक्खें समवसरणु उप्पाइउ जक्खें जं उज्जतहो उप्परि छज्जइ मेरुहे रिउ-विमाणु थिउ णज्जइ एक्क-अद्ध-जोयण-वित्थारें मणि-कुट्टिमेण भूमि-पब्भारें रयण-धूलि-पायारं मंडिउ णं जिणेण पडिकोट्ट समंडिउ णं पहरिसइ को-वि पडिवारउ करेवि दुग्गु थिउ णाई भडारउ माणव-थंभु चउक्कु सुहावइ किय चयारि अट्टाला णावइ कामएव-रण-मंडवे संतहो कहो ण होउ उच्छाहु जिणंतहो
८
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org