Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 116
________________ १०७ तिउत्तर-सउमो संधि जहिं णारायणु वि दिणिहिं मरइ तहिं अम्हारिसु कहिं पइसरइ जहिं दीवायणु पुरवरु डहइ जहिं जरकुमार केसउ वहइ जहिं वलु खंधेण समुव्वहइ एवड्डु दुक्खु को तं सहइ पुणु पुणु वि वियप्पेवि एम मणि णिय-पए थवेवि अणिरुद्ध खणि हरि-सुउ आगंतुय-भय-लइउ सहुं वीर-सहासिं पव्वइड तिह उहयहिं माल कुरुवइहे सुय दिक्खंकिय जुयइ-सहास-जय घत्ता तिह णर-णंदणि कंचण-माल वि भव-दूसिय। सहु मयरंकेण तव-चरणे झत्ति विहूसिय ॥ [१७] तिह भामा-सुओ वि सहु णियय-परियणेण । भाणुकुमारु वीरु दिक्खंकिउ तक्खणेण॥१ (हेला) तिह सुभाणु तिह जउ तिह सुंदरु तिह सच्चइ जयंतु स-पुरंदरु तिह कियवम्मु सारु तिह सारणु तिह दुंदुहि विऊरु धरि धारणु देवसेणु तिह सिणि तिह णंदणु तिह अपरजिउ णयणाणंदणु चारुजे? तिह चिण्हउ उद्धउ कंचणु णंदु रुडु सुहि दुब्भउ . तहिं अवर वि अणेय जउ-राणा तिह कउरव कसाय-गय-माणा तिह केसव-अणुमइए सुलक्खण पव्वज्जिय पउमावइ लक्खण सच्चहाम तिह रोहिणी रुप्पिणि तिह जंबुवइ गोरि तिह रुप्पिणि तिह गंधारि सुसील सवाली तिह सिरिसंवलि-तणु सोमाली घत्ता तिह अवराउ वि भव-भीरु-मणउ हरि-कंतउ। सहुं वहु-सुण्हहिं पज्जुण्णहो अणु णिक्खंतउ ।। [१८] तव-चरणेण तेण इत्थीण पहु-वयस्स वि। गयसेस-सुरवरा गरुय-विब्भयस्स ।। १ (हेला) सोउ णाणावत्थु-विसेसें अण्णं पि हु आयार-विसेसें ४ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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